दलदल में सर्वशिक्षा अभियान, जान हथेली पर लेकर पढ़ने जाते हैं बच्चे

स्कूल के मैदान में जानवर चरते हैं और बारिश में ये मैदान तालाब में तब्दील हो जाता है, और बच्चे दलदल से होकर कक्षाओं में पहुंचते हैं। मच्छरों और गंदगी की वजह से कई स्कूली बच्चे संक्रामक रोगों की चपेट में हैं। कक्षाओं के फर्श टूटे हैं। बच्चों के बैठने के लिए बोरे बिछे हैं और वो भी कई जगह से फटे पड़े हैं। स्कूल की दीवार टूटी पड़ी है। छत से भी चूना झडता रहता है। बच्चों की जान हमेशा खतरे में रहती है।

Update: 2016-08-09 08:34 GMT

बागपत: सरकार हर साल प्राइमरी स्कूलों की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए करोड़ों रुपए का फंड देती है। लेकिन न शिक्षण के लिए सुविधाएं मिलती हैं, न शिक्षा का माहौल। पैसे कहां जाते हैं, यह तो नहीं मालूम, लेकिन प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं कि उनकी छतें गिरी हैं, फर्श टूटे हैं, स्कूल पहुंचने के रास्ते नहीं हैं, परिसर में जानवर घूमते हैं और बच्चों की जान हर समय खतरे में रहती है।

Newstrack ने सर्व शिक्षा अभियान की पोल खोलते बागपत के ऐसे ही कुछ प्राइमरी स्कूलों की पड़ताल की।

दलदल में स्कूल

-प्राथमिक विद्यालय पठानकोट नगर बड़ौत। स्कूल लंबे समय से चोरों के निशाने पर है। चोर अन्य सामान के साथ बिजली का तार भी काट ले गए। अब बच्चे भीषण गर्मी में बिना पंखे के ही पढते हैं।

-स्कूल में बच्चों की संख्या काफी है, लेकिन पढ़ाने के लिए टीचर सिर्फ एक है।

 

-स्कूल के मैदान में जानवर चरते हैं और बारिश में ये मैदान तालाब में तब्दील हो जाता है, और बच्चे दलदल से होकर कक्षाओं में पहुंचते हैं।

-मच्छरों और गंदगी की वजह से कई स्कूली बच्चे संक्रामक रोगों की चपेट में हैं।

खतरे में बच्चों की जान

-कक्षाओं के फर्श टूटे हैं। बच्चों के बैठने के लिए बोरे बिछे हैं और वो भी कई जगह से फटे पड़े हैं। स्कूल की दीवार टूटी पड़ी है। छत से भी चूना झडता रहता है।

-कई बार छत से ईंटें निकलकर बच्चों पर गिर चुकी हैं। बड़ा हदसा कभी भी हो सकता है। बच्चे गरीब घरों के हैं, इसलिए किसी दूसरे निजी स्कूल में दाखिला नहीं ले सकते।

-स्कूल में करीब 100 बच्चे हैं। इन 100 बच्चों को पढ़ाने के लिए कम से चार शिक्षक होने चाहिए, लेकिन सिर्फ एक ही शिक्षिका हैं। पढ़ाई क्या होती होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

कौन है जिम्मेदार?

-इन स्कूलों की इस बदहाली पर जब हमने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से बात की तो पता चला कि उन्हें तो इन स्कूलों की बदहाली की जानकारी ही नहीं है। अब जब विभागीय अधिकारियों को जानकारी नहीं है, तो सरकार तक क्या जानकारी पहुंचती होगी।

-ऐसे में सवाल सिर्फ एक ही है- कहां जाता है बच्चों की शिक्षा का फंड? क्या अर्थ है सर्व शिक्षा अभियान का? और कौन है इस अवयवस्था का जिम्मेदार ?

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