पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले प्रदेश का शायद ही कोई चौराहा ऐसा रहा हो जहां होर्डिंगों पर प्रधानमंत्री आवास योजना की उपलब्धियों के बीच लाभार्थियों का खिलखिलाता चेहरा नजर नहीं आया हो। उम्मीदें कुलांचे मार रही थीं कि इस योजना से शहरी गरीबों के सिर पर छत होगा। शहरी गरीबों को बारिश में टपकते झोपड़ी और जर्जर मकानों में नहीं रहना पड़ेगा। बारिश के दिन गुजरने को है, ठंड आने वाली है। बदलते मौसम के बीच गरीबों की दुश्वारियां बढ़ रही हैं, लेकिन उनकी किस्तम में पक्का मकान नसीब नहीं है। मुश्किल यह है कि अब उन पात्रों को भी अपात्र किया जा रहा है, जिन्होंने मुख्यमंत्री के हाथों आवास स्वीकृति का प्रमाण पत्र पाया था। टिन शेड और जर्जर मकान में रहने वाले गरीब किस्त की टकटकी लगाए हुए हैं। वहीं लेखपाल को खुश नहीं कर पाने वाले लाभार्थियों पर अपात्र की तलवार लटक रही है। कई को किस्त के लिए डूडा के अफसरों का चक्कर लगाना पड़ रहा है। तमाम दावों, नारों के बीच खुद मुख्यमंत्री के इलाके में सिर्फ 20 फीसदी शहरी गरीबों को छत नसीब हो सकी है।
16 हजार को ही मिली छत
गोरखपुर मंडल में 88 हजार से अधिक शहरी गरीबों को पीएम आवास के लिए पात्र पाया गया है जिनमें से बमुश्किल 16 हजार को ही छत मिली है। गोरखपुर मंडल में विकास प्राधिकरण और आवास विकास परिषद को मिलकर कुल 8300 आवास का निर्माण करना है, लेकिन अभी तक एक भी मकान हकीकत की शक्ल नहीं ले सका है। गोरखपुर विकास प्राधिकरण को मार्च 2020 तक 4428 आवास तो मंडल में आवास विकास परिषद को 3900 आवास का निर्माण कराना है। इनमें से 1536 आवास का निर्माण प्राधिकरण द्वारा किया जा रहा है, शेष की बुनियाद तक नहीं रखी जा सकी है। गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया और कुशीनगर में आवास विकास परिषद को प्रशासन द्वारा जमीन उपलब्ध कराई जानी है, लेकिन कहीं भी जमीन की उपलब्धता नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद गोरखपुर से प्रदेश में योजना का शुभारंभ किया था। जहां उनके हाथों से हजारों लोगों को प्रमाण पत्र भी मिला था, लेकिन इनमें से कई को आज तक आवास के लिए एक किस्त भी नहीं मिली। और तो और सैकड़ों लोगों को अपात्र घोषित किया जा रहा है।
खेल करने का आरोप
कृष्णानगर वार्ड के पार्षद और पूर्व कार्यकारिणी सदस्य आकाश चौहान का कहना है कि कृष्णानगर वार्ड में आधा दर्जन पात्रों को जानबूझ कर अपात्र किया जा रहा है। लेखपाल और राजस्व विभाग के कर्मचारी लाभार्थियों को चेतावनी दे रहे हैं कि पार्षद को बताया तो अपात्र कर देंगे। आकाश का दावा है कि एक लेखपाल ने लाभार्थी से इस प्रत्याशा में ब्लैंक चेक ले लिया है कि योजना की किस्त मिलते ही वह चेक से धन की निकासी कर लेगा। डूडा के परियोजना निदेशक तेज प्रताप सिंह पात्रता के सवाल के जवाब में बताते हैं कि लाभार्थी या उसके परिवार के किसी सदस्य के नाम पर कोई पक्का मकान नहीं होना चाहिए। इस योजना के लिए आवेदन के वक्त अविभाजित परिवार के सभी सदस्यों का आधार कार्ड का नंबर देना जरूरी है। इसमें पति-पत्नी और अविवाहित बेटे और बेटी शामिल हैं।
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शादी के बाद बेटा या बेटी इस योजना के लिए अलग से आवेदन कर सकते हैं। जिलाधिकारी गोरखपुर के बिजयेन्द्र पाण्डियन का कहना है कि पीएम आवास की पात्रता को लेकर क्रास चेकिंग कराई जा रही है। जांच में कुछ शिकायतें मिली हैं जिनकी गोपनीय जांच की जा रही है। पीएम आवास का कोई पात्र नहीं छूटेगा। अपात्र के खाते में रकम गई तो उसकी रिकवरी कराई जाएगी।
सरकार से 140 करोड़ मांग रहा जीडीए
मानबेला और खोराबार में 3136 आवास पर गोरखपुर विकास प्राधिकरण 140 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च कर रहा है। लैंड बैंक से लेकर योजनाओं की जांच के कंगाली के हाल पर पहुंच चुके जीडीए के समाने वित्तीय संकट का खतरा है। प्राधिकरण के अफसरों ने कमिश्नर की अध्यक्षता में बीते दिनों हुई बोर्ड बैठक में निर्णय लिया कि पीएम आवास को लेकर शासन से 140 करोड़ रुपये की मांग की है।
जीडीए को प्रति फ्लैट 2.26 लाख रुपये अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा हैं। जीडीए सचिव राम सिंह गौतम का कहना है कि जमीन की कीमत को जोडक़र जीडीए को प्रति लैट करीब साढ़े छह लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इनमें से 2.50 लाख रुपये केन्द्र और प्रदेश सरकार में मिलना है। वहीं दो लाख रुपये आवंटी को देना है। प्रति फ्लैट 2.26 लाख रुपये अतिरिक्त खर्च के चलते जीडीए पर 140.21 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ रहा है। प्राधिकरण में टेंडर हासिल करने के लिए जहां हत्याएं होती थीं अब कोई टेंडर लेने वाला नहीं है। खोराबार में प्रस्तावित पीएम आवास को लेकर जीडीए को ठेकेदार नहीं मिल रहे हैं। जीडीए ने पांचवीं बार टेंडर निकाला है, लेकिन एक ठेकेदार ने ही टेंडर भरा है।
लेखपाल की जांच में पात्र बन रहे अपात्र
गोरखपुर के जिलाधिकारी के.बिजयेन्द्र पांडियन ने पीएम आवास में गोलमाल के आरोपों को लेकर क्रास चेकिंग का आदेश दिया है। इसे लेकर वार्डों में लेखपाल और राजस्व विभाग के कर्मचारी जांच कर रहे हैं। लेखपालों ने 70 में से 25 वार्ड का सत्यापन पूरा कर लिया है। जांच रिपोर्ट अभी जमा नहीं हुई है,लेकिन सूत्रों के मुताबिक लेखपालों ने 300 से अधिक लाभार्थियों को अपात्र किया जा चुका है। लेखपालों की जांच प्रक्रिया को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं। भाजपा के विधायक से लेकर पार्षद तक धनउगाही का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक डीएम को सभी लेखपाल पाक साफ ही नजर आ रहे हैं। सबसे दिलचस्प मामला बिलन्दपुर वार्ड के चंदन शर्मा का है। चंदन ने नगर विधायक डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल से शिकायत की है कि जांच करने वाला लेखपाल अपात्र करने का भय दिखाकर 15 हजार रुपये की रिश्वत मांग रहा है।
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विधायक ने चंदन का वीडियो फेसबुक पर पोस्ट करते हुए पीएम आवास में भ्रष्टाचार की बात कही है। इसके साथ ही कर्मचारी से बातचीत की वाइस रिकॉर्डिंग भी डीएम को दी है। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी तरह इलाहीबाग वार्ड निवासी बदरे आलम को लेखपाल ने निरीक्षण के बाद अपात्र कर दिया है। रिपोर्ट लगा दी कि पक्का मकान होने के चलते पीएम आवास नहीं दिया जा सकता है। प्रकरण को लेकर पार्षद ने डीएम से शिकायत की है। साथ ही टूटे-फूटे मकान की फोटो भी दी है। वहीं कृष्णानगर वार्ड निवासी सुनील को भी लेखपाल ने जांच के बाद अपात्र घोषित कर दिया है। दलील दी गई है कि सुनील का पक्का मकान है। करीब 40 साल पुराना मकान पूरी तरह जर्जर हो चुका है। छत बीच से टूट चुकी है। पूर्व में डूडा के अधिकारियों ने सुनील को पीएम आवास के लिए पात्र पाया था। इलाहीबाग के पार्षद प्रतिनिधि मोहम्मद अख्तर ने डीएम से मिलकर जांच में वसूली की शिकायत की है।
प्राधिकरण और आवास विकास नहीं दे सके एक भी आवास
शहरी गरीबों को आवास देने के मामले में प्राधिकरण और आवास विकास परिषद का बुरा हाल है। मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर में विकास प्राधिकरण को 7000 पीएम आवास बनाने का लक्ष्य दिया है जिसमें से सिर्फ 3136 पीएम आवास की कार्ययोजना पर काम हो रहा है। योजना 2022 में खत्म होनी है, लेकिन जीडीए एक भी शहरी गरीब को आवास नहीं दे सका है। गोरखपुर विकास प्राधिकरण द्वारा मानबेला में 1500 आवास का निर्माण कराया जा रहा है, जहां अभी 50 फीसदी कार्य भी पूरा नहीं है। जबकि इन आवासों को लेकर 1700 से अधिक लोगों ने 10 हजार से लेकर 25 हजार रुपये जीडीए में जमा कर आवेदन कर रखा है। वहीं खोराबार में भी 1536 आवास का निर्माण प्रस्तावित है, लेकिन जीडीए अभी तक टेंडर की प्रक्रिया ही पूरी नहीं कर सका है।
बारिश में गिर गया जर्जर मकान, नहीं आई किस्त
गोरखपुर में छोटे काजीपुर वार्ड की गायत्री को दो साल पहले मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में पीएम आवास के प्रमाणपत्र के साथ सप्ताह भर में 50 हजार रुपये की पहली किस्त पहुंचने का भरोसा भी मिला था। तब से अब तक 50 से अधिक बार सर्वे हो चुका है मगर गायत्री का इंतजार खत्म नहीं हुआ है। किस्त की उम्मीद में वह कभी बैंक तो कभी डूडा दफ्तर की दौड़ लगाती हैं। जीर्ण-शीर्ण मकान पर पॉलीथिन डालकर टपकती बूंदों के बीच जैसे-तैसे परिवार का गुजर-बसर हो रहा था। गायत्री कहती हैं कि सर्वे के नाम पर कभी चूना छिडक़ा जाता है, तो कभी वीडियो बनाते हैं। कभी मकान के साथ मेरी फोटो ली तो कभी परिवार के साथ। लेकिन खाते में किस्त नहीं आती है। उम्मीद में गोरखनाथ मंदिर भी गई थीं। वहां अफसर किस्त जल्द मिलने का भरोसा देकर लौटा देते हैं। वार्ड के पार्षद अमरनाथ यादव कहते हैं कि गायत्री जैसे वार्ड में 50 लाभार्थियों को किस्त की उम्मीद है, लेकिन डूडा के अधिकारियों से सिर्फ आश्वासन मिल रहा है।
बमुश्किल 20 फीसदी आवास का निर्माण पूरा
गोरखपुर मंडल में टारगेट के सापेक्ष आवास पाने वालों की संख्या काफी कम है। महराजगंज में डीपीआर के अनुसार आवास की संख्या 10278 है जिनमें से सिर्फ 5643 की जियो टैगिंग हो सकी है। इनमें 5302 आवास का निर्माण शुरू हो चुका है। 1872 आवासों का निर्माण पूरा हुआ है। 7 हजार से अधिक लाभार्थियों को अभी दूसरी किस्त भी नहीं मिली है। मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर में कागजों में स्थिति को अन्य जिलों की तुलना में बेहतर दिखती है, लेकिन जमीन पर उतनी ही बदहाल है। गोरखपुर में 38318 स्वीकृत पीएम आवास के सापेक्ष सिर्फ 10048 आवास का ही निर्माण पूरा हो चुका है। यानी लक्ष्य के सापेक्ष सिर्फ 26 फीसदी। वहीं कुशीनगर जिले में स्वीकृत 23170 आवास के सापेक्ष सिर्फ 2554 आवास का निर्माण ही पूरा हो सका है।
11 फीसदी लक्ष्य प्राप्ति को अफसर उपलब्धि बता रहे हैं। सबसे बुरी स्थिति देवरिया जिले की है जहां स्वीकृत 16321 आवास की तुलना में सिर्फ 1705 आवास का निर्माण पूरा हो चुका है। 13 हजार से अधिक लाभार्थियों में से सिर्फ 3570 लाभार्थियों को ही योजना की दूसरी किस्त मिल सकी है। डूडा पीओ तेज प्रताप सिंह की दलील है कि कई लाभार्थियों ने अकाउंट नंबर गलत दे दिया है। कई मामलों में आवेदन में लगाए गए दस्तावेज में स्पेलिंग या अन्य त्रुटियां हैं। बिना जांच के केंद्र की योजना का लाभ नहीं दे सकते हैं।