आशुतोष सिंह
वाराणसी। देश के प्रधानमंत्री और स्थानीय सांसद नरेंद्र मोदी अपनी मेहमान नवाजी के लिए मशहूर हैं। मोदी अपने विदेशी दोस्तों से हर बार कुछ अलग अंदाज में मिलते हैं। चाहे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ साबरमती रिवर फ्रंट के किनारे झूला झूलने वाली तस्वीर हो या फिर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ गंगा आरती देखना हो।
मेहमान नवाजी का यह अंदाज हमेशा ही सुर्खियों में रहता है। मोदी एक बार फिर अपने विदेशी दोस्त की खातिरदारी के लिए तैयार हैं। इस बार वे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुल मैक्रों का अलग अंदाज में स्वागत करेंगे। अपने खास मेहमान के साथ मोदी 12 मार्च को वाराणसी आ रहे हैं। मोदी के इस खास दोस्त के लिए पूरी काशी को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। पूरे शहर को नया रंग दिया जा रहा है।
लगभग 6 घंटे के प्रवास के दौरान दोनों हस्तियां यूं तो कई कार्यक्रमों में शिरकत करेंगी, लेकिन सबकी नजरें गंगा की लहरों पर होने वाले नौकाविहार पर टिकी हुई है। मोदी अपने विदेशी मेहमान को गंगा और उसके किनारे घाटों की शृंखला का दीदार कराएंगे।
दरक रहीं घाटों की सीढिय़ां
तय कार्यक्रम के मुताबिक मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के साथ अस्सी घाट से लेकर खिड़किया घाट तक नौकायन करेंगे। इन दोनों घाटों के बीच काशी की धरोहर की एक लंबी लिस्ट है। गंगा किनारे घाटों के अलावा कई प्राचीन इमारतें और मंदिर भी हैं। कहते हैं कि इन घाटों और इमारतों में ही काशी की जान बसती है, लेकिन वक्त बीतने के साथ काशी की ये धरोहर धंसने लगी है।
मां गंगा गुस्से में हैं तो घाटों और उसके किनारे बनी इमारतों की सांसें थमने लगी हैं। आस्था के इन धार्मिक स्थलों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जिन घाटों पर हर रोज हजारों भक्त पहुंचते हैं वहां प्रशासनिक लापरवाही चरम पर है। वो भी तब जब खुद मोदी यहां से सांसद हैं।
बरसों बाद बनारस में किसी नेता ने गंगा को चुनावी मुद्दा बनाया। मोदी की जीत ने यहां के लोगों में उम्मीद की एक लौ जगाई, लेकिन हकीकत की जमीं पर न तो गंगा साफ हुई और न ही गंगा किनारे बने धरोहर ही महफूज रह गए हैं। बनारस में एक दर्जन से अधिक ऐसे घाट हैं जिनकी सीढिय़ा दरकती जा रही हैं। कुछ जगहों पर तो सीढिय़ों ने अपना स्थान ही छोड़ दिया है।
टूटे घाटों को लेकर गुस्से में लोग
अब सवाल इस बात का है कि क्या मोदी अपने विदेशी मेहमान को जहरीली होती गंगा और टूटे-फूटे घाट दिखाएंगे। लोग पूछ रहे हैं कि क्या मैली होती गंगा का दीदार कराकर मोदी देश की बेइज्जती कराने पर तुले हैं? खैर लोगों का गुस्सा जायज भी है। घाटों और गंगा की दुर्दशा के लिए जितना जिला प्रशासन जिम्मेदार है उतना ही केंद्र सरकार।
लगभग डेढ़ साल पहले अपना भारत की टीम ने काशी के प्रभु घाट, भदैनी घाट, शिवाला घाट, जानकी घाट, शिवाला घाट, माता आनंदमयी घाट, तुलसी घाट, गंगा महल घाट, रीवा घाट और महानिर्वाण घाट की दुर्दशा को प्रकाशित किया था। खतरे में पड़ते इनके वजूद की जानकारी दी थी, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी अब तक इस दिशा में कोई खास पहल नहीं हुई।
हालांकि उस वक्त यह दावा किया गया था कि जल्द ही घाट की सीढिय़ों की मरम्मत कर ली जाएगी, लेकिन आज भी तस्वीर जस की तस है। हकीकत यह है कि गंगा किनारे 26 घाटों को संवारने के लिए लगातार तीसरी बार कोई कंपनी आगे नहीं आई। नगर निगम फिर इन घाटों के सुदृढ़ीकरण के काम का री-टेंडर करने जा रहा है। तीन महीने पहले नमामि गंगे के तहत 10.76 करोड़ रुपए की कार्ययोजना स्वीकृत हुई थी।
घाटों को छोड़ती गंगा
प्रशासन के ध्यान न देने से सीढिय़ों में दरारें चौड़ी होती जा रही है। दरारों के बीच से हर वक्त पानी रिसता रहता है। प्रभु घाट पर तो सीढिय़ां पूरी तरह दब गई हैं, जिससे दूसरे घाटों से इसका संपर्क कटने लगा है। इसके बावजूद लोग जान खतरे में डालकर दूसरे घाटों पर जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि हर साल आने वाली बाढ़ से इन घाटों की सीढिय़ों में सीलन आ गयी है। इसके अलावा घाटों पर सीवर के पानी के चलते सीढिय़ों में हर वक्त नमी बनी रहती है।
घाटों पर बनी सिर्फ सीढिय़ां ही नहीं किनारे पर बने पुराने मकानों और किलों की दीवारें भी सीलन के साथ दरकने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि इन घाटों के रखरखाव और सफाई के लिए जिला प्रशासन की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गई है। घाटों के देखरेख के लिए हर साल लाखों रुपए पानी की तरह बहाया जाता है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात की
तरह है।
बाढ़ के बाद घाटों पर जमे सिल्ट को हटाने के लिए हर रोज नगर निगम की ओर से पंप से घाटों की धुलाई होती है, लेकिन अब तक काम अधूरा है। यही नहीं घाट किनारे गिरने वाले सीवर के पानी को रोकने की भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। लिहाजा घाट की सीढिय़ों पर हर वक्त गंदा पानी फैला रहता है। इस बीच दूसरी सबसे बड़ी चिंता गंगा के बदलते स्वरूप को लेकर है। बाढ़ खत्म होने के बाद गंगा के प्रवाह क्षेत्र में परिवर्तन साफ दिखाई पड़ रहा है।
विश्वप्रसिद्ध अस्सी घाट से गंगा लगभग 20 मीटर दूर हो चुकी हैं। घाट किनारे गंगा का पानी नहीं बल्कि बालू का उभार सामने हैं। गंगा तक पहुंचने के लिए घाट की सीढिय़ों से कुछ दूर बालू पर चलना पड़ता है। पर्यावरणविदों के मुताबिक अप्रैल और मई महीने में यह दूरी और बढ़ सकती है। घाट किनारे रहने वाले लोगों के मुताबिक पांच साल पहले इस तरह की तस्वीर नजर आई थी।
कैलाश से करेंगे घाटों का दर्शन
अतिथियों के नौका विहार के लिए प्रशासन ने डेढ़ करोड़ की लागत वाली बेहद खास मोटरबोट कैलाश को चुना है। पूरी तरह वातानुकूलित दो मंजिली इस मोटर बोट में तीन कमरे, एक लग्जरी बेडरूम से लेकर डाइनिंग रूम व वॉशरूम जैसी सुविधाएं मौजूद हैं।
बताया जा रहा है कि इसी विशेष मोटरबोट पर पीएम मोदी और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों वाराणसी के सौंदर्य का अवलोकन करेंगे। दोनों राष्ट्राध्यक्ष अस्सी घाट से इस स्पेशल बोट पर सवार होंगे और राजघाट के पास खिड़किया घाट तक जाएंगे।
इस खास बोट पर ही पीएम संग फ्रांस के राष्ट्रपति भारत और फ्रांस के संबंधों को और मजबूत बनाने पर चर्चा करेंगे। इस दौरान अस्सी से खिड़किया घाट तक की घाटों की श्रंखला में कई तरह के सांस्कृतिक आयोजनों का दौर चलता रहेगा। इसके जरिये फ्रांस के राष्ट्रपति भारत की संस्कृति और सभ्यता के बारे में भी समझेंगे।
क्या कहते हैं लोग
अच्छे लाल, स्थानीय निवासी
सतीश, नाविक
मुन्ना खां, स्थानीय निवासी
प्रियंका सिंह, स्थानीय निवासी