धनंजय सिंह
लखनऊ: लोकसभा चुनाव के नतीजे न केवल राहुल गांधी और बल्कि प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए भी बुरे सपने से कम नहीं हैं। बड़ी उम्मीदों के साथ प्रियंका गांधी को जिस पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया,वहां पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका है। यही नहीं, राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव से भी खराब रहा है। पार्टी सिर्फ रायबरेली की सीट पर जीत सकी है, जबकि अमेठी से राहुल गांधी हार की हार पार्टी के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है।
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44 सीटों पर सभा व रोडशो किए
कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी भले ही बनाया हो, किन्तु वह पूर्वी के साथ पश्चिमी उ.प्र. की चुनावी कमान अपने हाथ में लिए हुए थीं। कांग्रेस ने 85 लोकसभा क्षेत्रों में से 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें कांग्रेस सिर्फ एक रायबरेली की सीट जीत सकी। यहां से सोनिया गांधी उम्मीदवार थीं। स्टार प्रचारकों के रूप में सबसे अधिक डिमांड प्रियंका और राहुल गांधी की ही थी। कांग्रेस ने 70 सीटों को तीन कैटेगरी में बांटा था। पार्टी ने जो सीटें 2009 में जीती थी और 2014 में दूसरे स्थान पर थी, ऐसे 23 को प्रथम कैटेगरी में रखा था। दूसरी कैटेगरी में 2004, 2009 और 2014 में दूसरे व तीसरे स्थान वाली सीटों और तीसरी कैटेगरी में बाकी बची सीटों को रखा गया था। कांग्रेस ने लगभग 50 सीटों पर फोकस किया। उम्मीदवारों की मांग और कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के आधार पर प्रियंका ने सहारनपुर से लेकर वाराणसी तक 44 लोकसभा क्षेत्रों में जनसभा और रोड शो किए।
एक सीट पर जीत, तीन सीटों पर दूसरा स्थान
प्रियंका के चुनावी कमान संभालने के बावजूद कांग्रेस की यूपी में काफी दुर्गति हुई है। यूपी में कांग्रेस 70 सीटों में से अमेठी, कानपुर और फतहेपुर सीकरी में ही दूसरे स्थान पर रही। रायबरेली में इस बार जीत का आंकड़ा कम हो गया। रायबरेली में इस बार यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी 531741 वोट पाकर भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से 167291 वोट से जीत सकी हैं जबकि 2014 में सोनिया गांधी ने 352713 मतों से जीत दर्ज की थी। अमेठी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2014 में स्मृति ईरानी को 107903 मतों से हराया था। इस बार राहुल गांधी को पहले ही कुछ गड़बड़ होने का आभास हो गया। इसीलिए वह अमेठी के साथ केरल के वायनाड से भी चुनावी मैदान में उतरे। अमेठी में प्रियंका गांधी ने पांचवें चरण में चुनावी जनसभा, रोड शो के साथ नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। उसके बावजूद प्रियंका कार्यकर्ताओं की नाराजगी नहीं दूर कर सकी और अमेठी से राहुल गांधी हार गए। प्रियंका के धुंआधार प्रचार के बावजूद करीब 60 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई।
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भीड़ तो उमड़ी मगर नहीं मिले वोट
जब तक प्रियंका गांधी ने पार्टी में कोई पद नहीं संभाला था और सिर्फ अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी की रायबरेली और अमेठी सीटों पर प्रचार तक खुद को सीमित रखा था तब तक तो यह उम्मीद थी कि वे सक्रिय राजनीति में आईं तो पार्टी को दोबारा पटरी पर लाने में कामयाब होंगी क्योंकि उनकी तुलना अक्सर उनकी दादी इंदिरा गांधी से की जाती रही है। इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार में उन्होंने इसकी झलक भी दिखाई मगर वे अपनी सभाओं व रोड शो में उमड़ी भीड़ को वोटों में में नहीं तब्दील कर सकीं।
सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसके लिए कहीं न कहीं कांग्रेस और राहुल गांधी भी जिम्मेदार हैं। इसमें खुद प्रियंका की भी कम भूमिका नहीं है। राहुल ने प्रियंका के 2022 के विधानसभा चुनाव में कारगर होने की बात कहकर सबको अचरज में डाल दिया। उसके बाद प्रियंका गांधी ने वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लडऩे का इशारा करने के बाद अपने कदम वापस खींच लिए। इसका बहुत गलत संदेश गया। अगर वह पीएम के खिलाफ चुनाव लड़तीं तो पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के उत्साह में इजाफा होता। प्रियंका ने दूसरी गलती कि वोटकटवा वाला बयान देकर। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार भले ही न जीतें, लेकिन वे भाजपा के लिए वोटकटवा जरूर साबित होंगे। कांग्रेस, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की उत्तर प्रदेश में जो बुरी गत हुई है, वह पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। वैसे अब देश का मिजाज वंशवादी राजनीति के खिलाफ बनता दिख रहा है। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, वंशवाद की राह पर चल रही समाजवादी पार्टी का भी यही हश्र होता नजर आ रहा है।