धनंजय सिंह
लखनऊ: लोकसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी रहते कोई करिश्मा न कर पाने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा पर कांग्रेस एक बार फिर दांव लगाने जा रहे है। प्रियंका को यूपी प्रभारी की अहम जिम्मेदारी देकर 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में कांग्रेस लग गयी है। माना जा रहा है कि प्रियंका को 2022 में सीएम कैंडीडेट के तौर पर यूपी के चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। माना जा रहा है कि कांग्रेस यूपी के 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका को सीएम के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करेगी। वैसे भी यूपी में कांग्रेस पार्टी का कोई ऐसा कद्दावर नेता नहीं है जो कांग्रेस की नैय्या को पार लगा सके। प्रियंका के सामने 2019 के लोकसभा चुनाव की भांति पहले यूपी में विधानसभा उपचुनाव और पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को दुरुस्त करने की कठिन चुनौती है। प्रियंका को यूपी का प्रभार मिलते ही कांग्रेस योगी सरकार को सोशल मीडिया के माध्यम से घेरने में लग गयी है।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए दो प्रभारी नियुक्त किए। पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा और पश्चिम के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को नियुक्त किया। लोकसभा के चुनाव के दौरान चुनावी रैलियों में प्रियंका कहती थीं कि ‘मैं २०२२ की विधानसभा के चुनाव की तैयारी के लिए आयी हूं।’ यूपी में कांग्रेस के मात्र सात विधायक और एक लोकसभा सांसद है। कांग्रेस को 2017 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बाद सात सीटें मिल पायीं थीं। पिछले चार लोकसभा या विधानसभा चुनाव में प्रियंका भले ही सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित रहती थीं लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को मिलता था। अमेठी और रायबरेली की अधिकतम सीटें कांग्रेस जीतने में कामयाब हो जाती थीं। लेकिन प्रियंका का जादू 2017 के विधानसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली में नहीं चल पाया। इन दोनों क्षेत्रों में महज दो सीट कांग्रेस जीत पायी।
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प्रियंका और ज्योतिरादित्य के चुनावी ट्रैक रिकार्ड का आंकलन किया जाए तो ज्योतिरादित्य का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा। ज्योतिरादित्य के क्षेत्र में लगभग 11 उम्मीदवार 1 लाख से उससे ज्यादा वोट के आंकड़े पर पहुंचे थे। जबकि प्रियंका के क्षेत्र में अमेठी, रायबरेली को छोड़ कर महज तीन उम्मीदवार ही 1 लाख वोट के आंकड़े तक पहुंचने में कामयाब रहे।
प्रियंका को यूपी का प्रभार संभालते ही सबसे पहले विधानसभा उपचुनाव का इम्तिहान होने वाला है। उपचुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने तैयारी शुरू कर दी है। सपा और बसपा ने अकेले उपचुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस ने भी चुनाव मैदान में अकेले जाने का फैसला किया है।
प्रियंका गांधी के प्रभार वाले क्षेत्र से भाजपा के सात विधायक इस बार सांसद बनने में सफल रहे हैं, जिसके चलते उनकी विधानसभा सीटें खाली हुई हैं। इनमें कानपुर के गोविंदनगर से सत्यदेव पचौरी, लखनऊ कैंट से रीता बहुगुणा जोशी, बांदा के मानिकपुर से आरके पटेल, बाराबंकी के जैदपुर से उपेंद्र रावत, बहराइच के बलहा से अक्षयवार लाल गौंड, प्रतापगढ़ से संगमलाल गुप्ता और अंबेडकरनगर के जलालपुर से रितेश पांडेय शामिल हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से फेल रही हैं। जबकि उन्होंने कई लोकसभा सीटों पर रैली करने के साथ-साथ रोड शो भी किया था। इतना ही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तक को अमेठी में हार का मुंह देखना पड़ा है। ऐसे में सात सीटों पर होने वाला उपचुनाव उनके लिए अपने राजनीतिक कुशलता को दिखाने के बेहतर मौका है।
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पश्चिम यूपी के चार विधायक इस बार सांसद बने हैं, जिसके चलते उनकी सीटें रिक्त हो गई है। इनमें रामपुर से सपा के आजम खान, गंगोह से बीजेपी के प्रदीप चौधरी, इगलास से बीजेपी के राजबीर दलेर, टुंडला से बीजेपी के एसपी सिंह बघेल शामिल हैं। इसके अलावा मीरापुर से बीजेपी के अवतार सिंह भड़ाना ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया और हमीरपुर सीट से विधायक अशोक कुमार को हत्या के मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। इस कारण मीरपुर और हमीरपुर सीट पर भी उपचुनाव होने हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा चुनाव में करिश्मा नहीं दिखा सके। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महज एक सीट सहारनपुर रही, जहां पार्टी के उम्मीदवार इमरान मसूद करीब दो लाख वोट पाने में सफल रहे हैं। इसके अलावा बाकी उम्मीदवारों को अपनी जमानत बचाने के लाले पड़ गए थे।
अब पूर्व से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक कि जिम्मेदारी प्रियंका के ऊपर है। प्रियंका को यूपी में स्थापित करने के लिए उपचुनाव बेहतर मौका है। पश्चिमी यूपी की जो 6 सीटें खाली हुई हैं, इनमें से 2017 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटें बीजेपी और एक सीट पर सपा ने जीत दर्ज की थी। इस तरह से कांग्रेस के पास इनमें से एक भी सीट नहीं थी, ऐसे में कांग्रेस के पास उपचुनाव में खोने के लिए कुछ नहीं बल्कि अपने आधार को बढ़ाने का बेहतर मौका है।
कांग्रेस उपचुनाव में अपनी मौजूदगी दिखाने और जीत के लिए सभी 13 सीटों पर एक-एक प्रभारी भी नियुक्त कर दिया है। वह सीधे ब्लॉक, सेक्टर और बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से मिलेगा। उम्मीदवार कौन बेहतर होगा उसका नाम जानेगा। चुनाव कैसे जीतें, उस पर राय लेगा। इसकी रिपोर्ट पर ही कांग्रेस अपना कैंडिडेट तय करेगी।
इसके अलावा कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में जमकर मेहनत करने वाले लोगों की लिस्ट तैयार की जा रही है, जिससे संगठन में उन्हें अहम जिम्मेदारी देकर सम्मानित किया जा सके। अब सवाल उठना लाजमी है जब प्रदेश से लेकर बूथ स्तर की कमेटी शून्य है, तो पहले संगठनात्मक ढांचे को खड़ा करने की सबसे बड़ी चुनौती है। प्रियंका अपने मनसूबे में कितना कामयाब होंगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।