Same-Sex Marriage: ‘दोस्ताना’ नहीं मंजूर, ज्ञापन सौंपकर जताया विरोध

Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाहों में यह संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। हमारी प्राचीन वैवाहिक पद्धति को कमजोर करने के प्रयास का समाज द्वारा मुखारविंद विरोध किया जाना चाहिए। यदि इसकी अनुमति दे दी गई तो कई प्रकार के विवादों का जन्म होगा। दत्तक देने के नियम, उत्तराधिकार के नियम, तलाक संबंधित नियम आदि को विवाद के अन्तर्गत लाया जाएगा।

Update:2023-04-30 16:29 IST
Same-Sex Marriage in India (Photo: Social Media)

Same-Sex Marriage in Hardoi News: समलैंगिक विवाह भारतीय संस्कृति के लिए घातक है। समलैंगिक विवाह नए विवादों को जन्म देगा, यह देश की संस्कृति व भारतीय समाज को नुकसान पहुंचाएगा। यह बातें राष्ट्र सेविका समिति के सदस्यों ने कहीं। उन्होंने समाजसेविका कीर्ति सिंह की अगुवाई में राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। जिसके माध्यम से इसपर रोक लगाने की मांग की गई।

जल्दबाजी में न लिया जाए यह फैसला

समिति के सदस्यों ने ज्ञापन के माध्यम से कहा गया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका पर कार्रवाई के लिए जिस प्रकार की जल्दबाजी की जा रही है। वह किसी भी तरह से उचित नहीं है। यह नए विवादों को जन्म देगी और भारत की संस्कृति के लिए घातक सिद्ध होगी। भारत में विवाह का एक सभ्यतागत महत्व है। जिसमें एक स्त्री और पुरुष अपने जीवनसाथी को चुनते हैं और परिवार को आगे बढ़ाते हैं।

वैवाहिक पद्धति को कमजोर करने के प्रयास

समलैंगिक विवाहों में यह संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। हमारी प्राचीन वैवाहिक पद्धति को कमजोर करने के प्रयास का समाज द्वारा मुखारविंद विरोध किया जाना चाहिए। यदि इसकी अनुमति दे दी गई तो कई प्रकार के विवादों का जन्म होगा। दत्तक देने के नियम, उत्तराधिकार के नियम, तलाक संबंधित नियम आदि को विवाद के अन्तर्गत लाया जाएगा। अभी से समलैंगिक संबंध वाले अपने आप को लैंगिक अल्पसंख्यक घोषित कर विभिन्न प्रकार के आरक्षण की मांग भी कर रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की अतुरता से हुई पीड़ा

समाजसेविका कीर्ति सिंह ने न्यायालय द्वारा दिखाई जा रही आतुरता पर अपनी गहन पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि स्थापना एवं न्याय तक पहुंचने के मार्ग को सुनिश्चित करने तथा न्याय पालिका की विश्वनीयता को कायम रखने के लिए ऐसे मामले को खारिज होना चाहिए। महत्वपूर्ण सुधार करने के स्थान पर एक काल्पनिक मुद्दे पर न्यायालयीन समय एवं समाज के बुनियादी ढांचे को नष्ट किया जा रहा है, जो सर्वथा अनुचित है।

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