Gorakhpur News: जीडीए में फर्जी तरीके से नक्शा पास कराने का मामला उजागर, आर्किटेक्ट की आईडी का इस्तेमाल
Gorakhpur News: लखनऊ के आर्किटेक्ट के आईडी से 100 से अधिक नक्शा मंजूर होने के बाद जीडीए में हड़कंप मचा है। नक्शा पास कराने वालों का 3 करोड़ से अधिक फंसता दिख रहा है।
Gorakhpur News: सरकार ने सिस्टम को लगभग पूरी तरह डिजिटल कर दिया है फिर भी जालसाज फर्जीवाड़ा करने से बाज नहीं आ रहे हैं। गोरखपुर से एक फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है जिसमे जालसाजों ने फर्जी आईडी का इस्तेमाल कर नक्याा पास कराया है।
गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) में नक्शा मंजूर करने में बड़ा फर्जीवाड़ा मिला है। लखनऊ के आर्किटेक्ट के आईडी से 100 से अधिक नक्शा मंजूर होने के बाद जीडीए में हड़कंप मचा है। आर्किटेक्ट की शिकायत के बाद भी प्राधिकरण के गैर जिम्मेदार रवैया अपनाए हुए हैं। आर्किटेक्ट ने फर्जीवाड़ा का खुलासा कर पूरे खेल में शामिल लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। ऐसे में 100 से अधिक नक्शा पास कराने वालों का 3 करोड़ से अधिक फंसता दिख रहा है।
बता दें कि मानचित्रों में पारदर्शिता को लेकर शासन ने प्राधिकरणों में ऑनलाइन मानचित्र की मंजूरी की व्यवस्था दी थी। जालसाजों ने इस व्यवस्था में भी सेंध लगा दिया है। जालसाजों ने लखनऊ के एक प्रसिद्ध आर्किटेक्ट जितेन्द्र त्रिपाठी की आईडी-पासवर्ड से दर्जनों नाक्शा जारी करा लिया है। इनमें आवासीय ही नहीं व्यवसायिक मानचित्र भी शामिल है। जीडीए उपाध्यक्ष आशीष कुमार का कहना है कि मामला संज्ञान में आया है। लखनऊ के आर्किटेक्ट की शिकायत मिली है, सभी मामले पुराने सिस्टम के हैं। नये सिस्टम में कोई भी मानचित्र मंजूर नहीं हुआ है। मामले की जांच कराई जा रही है अगर कोई दोषी मिलता है तो कड़ी कार्रवाई होगी।
आपको जानकारी दे दें कि यह मुद्दा स्थानीय आर्किटेक्टों ने कमिश्नर की मौजूदगी में भी उठाया था लेकिन जीडीए के जिम्मेदारों ने गोलमोल जवाब देकर प्रकरण को टाल दिया। कार्रवाई नहीं होता देख आर्किटेक्ट ने एक बार फिर कमिश्नर और जीडीए उपाध्यक्ष को पत्र लिखा है।
मेरठ में मुकदमा दर्ज, गोरखपुर में चुप्पी
आर्किटेक्ट जितेन्द्र त्रिपाठी का कहना है कि मेरी आईडी से फर्जी वाड़ा कर नक्शे पिछले तीन साल से जारी हो रहे हैं। 20 ऐसे नक्शों को दिखाकर प्राधिकरण के अधिकारियों से कार्रवाई की मांग की गई। उनके तरफ से जवाब दिया गया कि मानचित्रों को जमा करने का पोर्टल शासन के द्वारा बनाया गया है। विकास प्राधिकरण इसमें कोई भी सुधार करने में असमर्थ है।
वहीं प्राधिकरण की दलील है कि आर्किटेक्ट आईडी का गलत इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। उधर आर्किटेक्ट का कहना है कि कल को मुंबई की तरह यहां भी कोई हादसा हो जाए तो अधिकारी सबसे पहले आर्किटेक्ट पर ही मुकदमा दर्ज कराएंगे। सवाल यह उठता है कि आखिर प्राधिकरण के अधिकारी जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई से क्यो बच रहे हैं। ऐसे ही मामले में मेरठ विकास प्राधिकरण ने मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की है।
आर्किटेक्ट आज बैठक कर बनाएंगे रणनीति
स्थानीय आर्किटेक्ट संगठन ने भी फर्जीवाड़े को गम्भीरता से लेते हुए आर्किटेक्ट मनीष मिश्रा का कहना है कि ऑनलाइन व्यवस्था में पारदर्शिता के साथ फर्जीवाड़े की भी गुंजाइश रहती है। जब आर्किटेक्ट खुद कह रहे हैं कि मेरे आईडी का गलत इस्तेमाल हुआ है तो प्राधिकरण कार्रवाई से क्यो बच रहा है। जो मानचित्र प्राधिकरण को मुहैया कराये गए हैं उन्हें तो तत्काल निरस्त किया जाना चाहिए।
पूरे प्रकरण की अच्छे से जांच हो तो कई और मामले पकड़ में आएंगे। अधिकारी दलील दे रहे हैं कि पुराने व्यवस्था में फर्जीवाड़े की गुंजाइश थी लेकिन हकीकत यह है कि नये सिस्टम में भी वास्तुविद के लाइसेंस नंबर को उठाकर अपना मोबाइल नंबर, ईमेल डालकर नक्शे को जमा किया जा सकता है। डिजिटल सिग्नेचर के माध्यम से वास्तुविद के जमा मानचित्र पर हस्ताक्षर करने के सुझाव पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश आवास एवं शहरी नियोजन विभाग भी सिस्टम में सुधार नहीं कर रहा है।