अपने ही बनाए 'जाल' में फंसते जा रहे ओमप्रकाश राजभर, ओवैसी के बाद संजय सिंह ने बढ़ा दी परेशानी

Omprakash Rajbhar : बीजेपी के खिलाफ जोरशोर से मोर्चा खोले ओमप्रकाश राजभर की मुश्किलें इन दिनों बढ़ रही हैं।

Written By :  Raj Kumar Singh
Published By :  Shraddha
Update:2021-07-14 14:03 IST

 ओमप्रकाश राजभर (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

Omprakash Rajbhar : बीजेपी (BJP) के खिलाफ जोरशोर से मोर्चा खोले ओमप्रकाश राजभर (Omprakash Rajbhar) की मुश्किलें इन दिनों बढ़ रही हैं। राजभर की मुश्किलें और कोई नहीं बल्कि वे लोग बढ़ा रहे हैं जिन्हें वे अपना सहयोगी मानते हैं। हाल ही में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह (Sanjay Singh) के ट्वीट से ओमप्रकाश राजभर की काफी किरकिरी हुई।

संजय सिंह ने कहा राजभर झूठ बोल रहे हैं और कहा कि केजरीवाल से उनकी कोई मुलाकात तय नहीं है और न ही उनसे किसी तरह का गठबंधन हो रहा है। इससे पहले राजभर के सहयोगी असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने बहराइच में सैयद सालार गाज़ी की दरगाह पर जाकर जियारत की थी। इसको लेकर पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर का राजभर समाज के लोग भारी विरोध कर रहे हैं। सैयद सालार गाजी को महाराजा सुहैलदेव ने सन 1034 में हराया था।

 असदुद्दीन ओवैसी व ओमप्रकाश राजभर (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)


 ओमप्रकाश राजभर के तीखे तेवरों और बड़बोलेपन से परेशान बीजेपी की अब राजभर को घेरने का मौका मिला है जिसे वो गंवाना नहीं चाहती। ओमप्रकाश राजभर के विरोध के पीछे बीजेपी की रणनीति से इनकार नहीं किया जा सकता। राजभर समाज के बीजेपी से जुड़े नेता खुलकर इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं। बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने कहा था कि ओमप्रकाश राजभर ने राजभर समाज का अपमान किया है। उधर संजय सिंह द्वारा राजभर को झूठा कहने के बाद बीजेपी ने इस पर राजनीति शुरू कर दी है। बीजेपी नेता शलभमणि त्रिपाठी ने इसे राजभर समाज और पिछड़े वर्ग का अपमान बताया है। शलभमणि ने कहा है कि राजभर सम्मानित नेता और संजय सिंह द्वारा उनका अपमान उचित नहीं है।

दरअसल ओमप्रकाश राजभर अपने फैलाए जाल में ही फंस रहे हैं। उन्होंने जिस तरह से ओवैसी से खुलकर गठबंधन की बात कही उससे बाकी विपक्षी दलों के दरवाजे उनके लिए बंद हो गए हैं। ओवैसी के साथ यूपी का कोई भी बड़ा विपक्षी दल नहीं जाएगा क्योंकि इससे बहुसंख्यक हिंदुओं के नाराज होने का खतरा है। बीएसपी ने ओवैसी के साथ जाने से साफ मना कर दिया है। सपा और कांग्रेस पहले से ही दूरी बनाए हैं।

आम आदमी पार्टी ने जिस तरस से ओमप्रकाश राजभर का अपमान किया है उससे ये साफ है कि राजभर अब अकेले पड़ रहे हैं। संजय सिंह का बयान भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद आया है। ऐसे में ये साफ है कि समाजवादी पार्टी छोटे दलों के साथ जो मोर्चा बनाएगी उसमें राजभर के लिए स्थान मुश्किल है। सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा, कृष्णा राजभर समेत कई छोटे दलों से बातचीत शुरू की है लेकिन ओमप्रकाश राजभर से नहीं।


राजभर सुहैलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष हैं। वे बीजेपी की वर्तमान सरकार में मंत्री भी रहे हैं। 2017 में राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उनके रिश्ते बीजेपी से काफी खराब हो गए और उन्हें सरकार से अलग होना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में राजभर की पार्टी कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाई। हाल ही में हुए जिला पंचायत चुनाव में भी उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। यूपी की राजनीति में ओमप्रकाश राजभर अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं। बीजेपी नेताओं पर वे बहुत तल्ख टिप्पणियां करते रहे हैं।

हाल ही में उन्होंने प्रदेश में अपनी सरकार बनने पर पांच साल में पांच मुख्यमंत्री और बीस उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करके सबको हैरत में डाल दिया था। उनके इस बयान को राजनीतिक गलियारों में गंभीरता से नहीं लिया गया। कुल मिलाकर ओमप्रकाश राजभर को बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में अन्य दलों का साथ मिलता नहीं दिख रहा है। आम आदमी पार्टी से तालमेल की संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं। उधर ओवैसी ने जिस तरह से यूपी के चुनाव में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है उससे ओवैसी और राजभर के साथ रहने पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। सालार गाजी की दरगाह पर चादर चढ़ाने के बाद भी दोनों के बीच संबंध बिगड़ सकते हैं।

ओमप्रकाश राजभर की बढ़ती मुश्किलों से सबसे ज्यादा राहत बीजेपी को मिली है. बीजेपी नेता काफी खुश हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनावों में बीजेपी की सफलता के पीछे बड़ा हाथ प्रदेश के ओबीसी वोटों का रहा है। ओमप्रकाश राजभर इसी वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में लगे हैं लेकिन जिस तरह से उनकी रणनीति को एक के बाद एक झटका लग रहा है उससे उनकी बीजेपी विरोधी मुहिम फिलहाल रंग लाती नहीं दिखाई दे रही है।

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