Akhada parishad ke adhyaksh: आज रवींद्र पुरी महाराज की हुई ताजपोशी, हरिद्वार के फैसले का अनुमोदन
Akhada parishad ke adhyaksh: अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद पर पंचायती निरंजनी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी महाराज को नया अध्यक्ष बनाया गया है।
Akhada parishad ke adhyaksh: अखाड़ा परिषद (Akhada parishad) के अध्यक्ष पद पर रवींद्र पुरी महाराज (Ravindra Puri Maharaj) के नाम का एलान हो गया है। पंचायती निरंजनी अखाड़े (Panchayati Niranjani Akhara) के सचिव रवींद्र पुरी महाराज को नया अध्यक्ष बनाया गया है। बहुमत से लिए गए फैसले और अखाड़ा परिषद के नियम के मुताबिक हुई रवींद्र पुरी महाराज की ताजपोशी की गई। जिसका जूना, निरंजनी, अग्नि और आह्वाहन अखाड़े ने समर्थन किया। इसके अलावा आनंद और नया उदासीन अखाड़े ने भी रवींद्र पुरी महाराज को समर्थन दिया है। निर्मल अखाड़े के बागी गुट और निर्मोही अनि अखाड़े के सचिव मदन मोहन दास ने भी पत्र भेजकर फैसले का समर्थन किया है। आज की बैठक में कुल आठ अखाड़ों के प्रतिनिधियों के समर्थन का दावा किया गया है। पंचायती निरंजनी अखाड़ा प्रयागराज में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया है।
महंत नरेंद्र गिरी (Mahant Narendra Giri) के ब्रह्मलीन होने के बाद से अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का पद खाली पड़ा हुआ था। नियमानुसार जिस अखाड़े की तरफ से पद खाली होता है उसी अखाड़े के सदस्य को नियुक्त किया जाता है। ब्रह्मलीन महंत नरेंद्र गिरी पंचायती निरंजनी अखाड़े के सचिव थे। हरिद्वार मे 21 अक्टूबर को सात अखाड़ों के समर्थन का दावा करते हुए अखाड़ा परिषद की नई कार्यकारिणी का एलान किया गया है। महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी को अध्यक्ष और निर्मोही अखाड़े के राजेंद्र दास को महामंत्री चुना गया है।
गौरतलब है कि हरिद्वार में 21 अक्टूबर की सुबह महानिर्वाणी अखाड़े की बैठक में सात अखाड़ों के साधु-संतों की मौजूदगी में अखाड़ा परिषद की नई कार्यकारिणी की घोषणा की गई थी। इस बैठक में अखाड़ा परिषद के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष देवेंद्र शास्त्री महाराज की उपस्थिति उल्लेखनीय रही थी। नई कार्यकारिणी में दामोदर दास महाराज को उपाध्यक्ष, जसविंदर सिंह शास्त्री को कोषाध्यक्ष, राम किशोर दास महाराज को मंत्री, गौरीशंकर दास महाराज को प्रवक्ता और धर्मदास महाराज और महेश्वर दास को संरक्षक बनाया गया था
इस चुनाव के बाद रविन्द्र पुरी महाराज ने कहा था कि अखाड़ों की ओर से इस संबंध में फैसला पहले भी होता आया है। ब्रह्मलीन महंत नरेंद्र गिरी का चुनाव भी उज्जैन में बहुमत के आधार पर ही हुआ था। उनसे पहले ज्ञानदास महाराज को भी ऐसे ही चुना गया था। यह कोई नई बात नहीं है।
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