Rathyatra Varanasi : काशी में रथयात्रा का दिलचस्प है इतिहास, मेले में नानखटाई का होता है जबरदस्त आकर्षण

Rathyatra Varanasi: कोरोना महामारी के कारण पिछले साल वाराणसी में रथयात्रा का आयोजन ही नहीं हो सका। वाराणसी में यह रथयात्रा 218 साल से निकाली जा रही है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2021-07-07 01:02 GMT

वाराणसी रथयात्रा (फोटो- सोशल मीडिया)

Rathyatra Varanasi: पुरी में निकालने जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का देश में काफी धार्मिक महत्व है। इस रथयात्रा का ऐसा जबर्दस्त आकर्षण है कि देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्त रथयात्रा में शामिल होने के लिए खिंचे चले आते हैं। पुरी के अलावा देश के विभिन्न प्रदेशों में भी रथयात्रा का आयोजन किया जाता है।

यदि हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और मथुरा में रथयात्रा निकाली जाती हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा आकर्षण वाराणसी की रथयात्रा का होता है।

कोरोना महामारी का असर रथयात्रा पर भी पड़ा है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पुरी में रथयात्रा का आयोजन तो जरूर किया गया मगर इसमें केवल मंदिर से जुड़े पुजारियों और कर्मचारियों ने ही हिस्सा लिया।

कोरोना महामारी के कारण पिछले साल वाराणसी में रथयात्रा का आयोजन ही नहीं हो सका। वाराणसी में रथयात्रा के आयोजन का दिलचस्प इतिहास रहा है और यह रथयात्रा 218 साल से निकाली जा रही है। इस मेले में बिकने वाली नानखटाई सबके लिए आकर्षण का अलग केंद्र होती है।

पिछले साल टूट गई 218 साल पुरानी परंपरा

पिछले साल कोरोना महामारी के कारण वाराणसी जिला प्रशासन की ओर से रथयात्रा की अनुमति नहीं दी गई थी। रथयात्रा न निकलने से वाराणसी में 218 साल पुरानी परंपरा टूट गई। वाराणसी में रथयात्रा का तीन दिवसीय आयोजन किया जाता है और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को नगर भ्रमण कराया जाता है।

रथयात्रा पर लगने वाले मेले का लोगों में जबर्दस्त आकर्षण होता है और इसमें इतनी भीड़ उमड़ती है कि इसे वाराणसी के लक्खा मेलों में शुमार किया जाता है। जिस इलाके में इस मेले का आयोजन किया जाता है उसका नाम ही अब रथयात्रा पड़ चुका है।

रथयात्रा वाराणसी (फोटो-सोशल मीडिया)

पुरी के पुजारी ने शुरू कराई रथयात्रा

वाराणसी में श्री जगन्नाथ जी ट्रस्ट के अध्यक्ष दीपक शापुरी का कहना है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पुजारी व मुख्य प्रबंधक पंडित नित्यानंद 1780 में काशी पधारे थे। भगवान जगन्नाथ जी की प्रेरणा से उन्होंने पवित्र असि क्षेत्र में पुरी जैसी छवि वाला काष्ठ विग्रह स्थापित किया।

बाद में पंडित जी के परिवार ने पुरी की परंपरा के अनुसार देवोपन रथ का निर्माण कराकर तीन दिवसीय रथयात्रा के आयोजन की शुरुआत की। इसके बाद 1802 से काशी में रथयात्रा मेले का आयोजन किया जाता रहा है मगर पिछले साल कोरोना महामारी के कारण इस परंपरा पर ब्रेक लग गया था।

भगवान जगन्नाथ के लिए 14 पहिए वाला रथ

वाराणसी में रथयात्रा के दौरान रथ सड़क के मध्य सजता है और इसे गर्भगृह का रूप दे दिया जाता है। ट्रस्ट के सचिव आलोक शाहपुरी का कहना है कि वाराणसी में भी पुरी की तरह ही सारी रस्म और विधान पूरे किए जाते हैं।

पुरी की तरह ही काशी में भी भगवान जगन्नाथ तीन दिनों के लिए पंडित बेनीराम बाग के सिंहद्वार पर आते हैं जहां पर देव विग्रहों को 14 पहिए वाले रथ पर विराजमान कराया जाता है। यह रथ 20 फीट चौड़ा और 18 फीट चौड़ा होता है। मंदिर नुमा अष्टकोणीय रथ पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन के लिए तीन दिनों तक भक्तों का तांता लगा रहता है।

नानखटाई होती है आकर्षण का केंद्र

रथयात्रा मेले में नानखटाई लोगों के आकर्षण का विशेष केंद्र होती है। रथयात्रा मेले में भगवान जगन्नाथ को वाराणसी की इस विशेष मिठाई का भोग लगाया जाता है। यही कारण है कि तीन दिवसीय रथयात्रा मेले में नानखटाई का विशेष महत्व है।

वैसे तो नानखटाई पूरे साल मिलती है मगर रथयात्रा के मेले में इसका अलग ही महत्व होता है। नानखटाई की यह खासियत होती है कि यह मुंह में रखते ही घुल जाती है।

नानखटाई के 40 से अधिक फ्लेवर

रथयात्रा के मेले में नानखटाई के 40 से अधिक फ्लेवर लोगों को आकर्षित करते हैं। रथयात्रा के मेले में चॉकलेट,नशीला और स्ट्रॉबेरी सहित नानखटाई के कई आकर्षक फ्लेवर उपलब्ध होते हैं। इस मेले में वाराणसी ही नहीं बल्कि लखनऊ, कानपुर और आगरा तक की नानखटाई लोगों के लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र होती है।

श्रद्धालुओं के साथ ही नानखटाई के व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों को भी रथयात्रा मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है। नारियल, काजू, किशमिश और पिसूते से बनी नानखटाई महंगी तो जरूर होती है मगर इसका गजब का स्वाद लोगों का मन मोह लेता है।

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