Saintkabirnagar news: आचार्य धरणी धर महाराज ने मानव जीवन में गुरु के महत्व को बताया
अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक आचार्य धरणी धर जी महाराज ने कहा की गुरू आराध्य हैं और ये पर्व अपने गुरू को श्रद्धा अर्पित करने का दिन है।
Saintkabirnagar news: हर वर्ष आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा पर महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा पर गुरु पूजा की जाती है। नारदपुराण के अनुसार गुरु पूर्णिमा पर ज्ञान और जीवन की सही दिशा बताने वाले गुरु के प्रति अपनी आस्था प्रकट की जाती है। गुरु पूर्णिमा के पर्व को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महाभारत और चारों वेदों की रचना करने वाले वेद व्यास जी की पूजा करने की परंपरा है।
यह पर्व अपने आराध्य गुरु को श्रद्धा अर्पित करने का महापर्व है। उक्त बातें अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक आचार्य धरणी धर जी महाराज ने कही। उन्होंने ने कहा कि गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। जैसे सूर्य के प्रकाश की पहली किरण ही रात्रि के घोर अंधकार को चेतावनी देकर मूल रूप से नष्ट कर देती है, इसी प्रकार सद्गुरुदेव का जीवन में प्राकट्य ही अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर जीवन को ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान करता है।
गुरु ही तो जो हमारे सभी संशयों का मिटाने वाले है
इसलिए कभी भी गुरु में संशय न करें। गुरु ही तो जो हमारे सभी संशयों का मिटाने वाले है। गुरु ही तो है जो हमारे विश्वास, यानी भरोसे का स्तंभ है। इसीलिए तो कहा गया है, गुरु शब्द ही स्वयं में योग और एक संयोग है। गु (अंधकार) और रु (प्रकाश) की संधि, यानी दोनों का योग ही तो गुरु है। जो व्यक्ति को आत्मा से परमात्मा के मिलन की यात्रा को सफलता प्रदान करे, उसका मूलाधार योग और सदगुरु ही है। उसके बिना सभी मार्ग, द्वार और ज्ञान अधूरे ही जानिए।
सदगुरु और शिष्य के मध्य आस्था, श्रद्धा, समर्पण ही पूजा की सामग्री है। जिसका प्रतिफल ज्ञान, सदाचरण, आध्यात्मिक उन्नति और गुरुवर की अहेतु (बिना कारण) कृपा है। इसके अतिरिक्त आप गुरुवर को कुछ दे नहीं सकते हैं। यह सब लेना-देना तो व्यक्ति के मन का भाव है, जिसके माध्यम से वह अपने जीवन में परिवर्तन लाना चाहता है। व्यक्ति के कर्मों से ही व्यक्ति के प्रारब्ध की उत्पत्ति होती है, जो जन्म जन्मांतर व्यक्ति के कर्मों के भोग के लिए साथ-साथ रहते हैं।
कर्मों का लेखा-जोखा भगवान भी नहीं मिटाते
सब कुछ मिट सकता है, लेकिन कर्मों का लेखा-जोखा भगवान भी नहीं मिटाते। व्यक्ति को वह स्वयं भोगना ही होता है। कष्ट आने पर वह कह देता है कि मैंने अपनी याद में तो ऐसा कुछ किया नहीं, फिर भी जाने-अनजाने में कुछ हुआ हो तो पता नहीं। वह सब प्रारब्ध ही है। हंसकर, रोकर कैसे भी उसे पूरा करना ही होता है। सद्गुरु कृपा ही व्यक्ति के जीवन में सुविचार, सदगुण, सद्व्यवहार, सदाचरण और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है।