Sonbhadra News: अदिवासी तीरंदाजों के बारे में ये बातें नहीं जानते होंगे आप, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें
आदिवासी तीरंदाजो ने लोकल लेवल पर चल रहे तीरंदाजी प्रतियोगिता में काफी सराहनीय प्रदर्शन किया है।
Sonbhadra News:तीरंदाजों की नर्सरी कहे जाने वाले सोनभद्र में आदिवासी युवाओं के बीच इस विधा को जीवंत रखने के लिए सोमवार को म्योरपुर ब्लॉक के सिदहवा (अनपरा परिक्षेत्र) में तीर-धनुष प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। सोन आदिवासी शिल्पकला ग्रामोद्योग समिति के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में देशज धनुर्धरों ने अपना जौहर दिखाया। सर्वाधिक सटीक निशाना साधने वाले युवाओं को पुरस्कृत कर उनका हौसला बढ़ाया गया।
सिदहवा गांव के डीहबाबा की पूजा कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। सात चरणों में प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें 37 प्रतिभागियों ने भाग लिया। सबसे ज्यादा सटीक निशानेबाजी पर देवी प्रसाद खरवार ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। द्वितीय विजेता जगदीश , तृतीय विजेता ऋशू बैसवार बने। शेष प्रतिभागियों को भी शाबाशी देकर आगे और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया गया।
बदले परिवेश में परंपरागत विधा से दूर हो रहे आदिवासी युवक:
मुख्य अतिथि ने प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान कर उत्साहवर्धन किया। कहा कि प्राचीन समय में जंगल-पहाड़ में रहने वाले आदिवासी अपने आत्मरक्षा और जंगली जानवरों से बचने के लिए तीर-धनुष का प्रयोग करते थे। बदले परिवेश में यह विधा तेजी से विलुप्त हो रही है, जिसे संरक्षण देने की जरूरत है। कार्यक्रम संयोजक आदिवासी शिल्पकला ग्रामोद्योग समिति के अध्यक्ष जगदीश साहनी ने कहा कि सरकार की तरफ से इस विभाग के प्रोत्साहन के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। ऊर्जांचल के औद्योगिक संस्थानों से भी इस विधा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए आगे आने की अपील की।
सेवा समर्पण संस्थान बनता जा रहा है तीरंदाजों की नर्सरी:
छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे बभनी अंचल के चपकी में स्थापित सेवा समर्पण संस्थान का सेवा कुंज आश्रम धीरे-धीरे तीरंदाजों की नर्सरी बनता जा रहा है। यहां दिए जाने वाले प्रशिक्षण प्रति वर्ष कई आदिवासी युवक तीरंदाजी का प्रशिक्षण लेकर निकलते हैं। यहां प्रशिक्षण लेने वाले आदिवासी युवा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं। कई को स्पोर्ट्स कालेज में भी दाखिला मिल चुका है। अब उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए तराशने की तैयारी चल रही है।
सरकारी तंत्र दिखाए संजीदगी तो यहां के युवा भी ला सकते हैं मेडल:
यहां के आदिवासियों में तीरंदाजी को लेकर अपार प्रतिभा छिपी हुई है। इस परंपरागत विधा को लेकर उनमें उत्साह भी दिखता है लेकिन आर्थिक तंगी और समुचित प्रशिक्षण का अभाव उनकी राह का रोड़ा बन जाता है। अगर उन्हें समुचित प्रशिक्षण के साथ ही अत्याधुनिक तीर धनुष उपलब्ध कराकर अभ्यास कराया जाए तो यहां के युवा देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ढेरों मेडल ला सकते हैं।