रेलवे से भी मिली आजादी के सेनानियों को काफी मदद

Update:2019-08-17 12:53 IST
रेलवे से भी मिली आजादी के सेनानियों को काफी मदद

फिरोजपुर : क्या आप जानते हैं ब्रिटिश इंडियन रेलवे देश की आजादी में क्रांतिकारियों के लिए कितनी कारगर हथियार साबित हुई थी? 1853 में 21 तोपों की सलामी के साथ दोपहर 3:45 बजे पोरबंदर से ठाणे के लिए जब पहली बार 14 डिब्बों को लेकर भारतीय ट्रेन रवाना हुई थी तब अंग्रेजों ने शायद यह सोचा भी नहीं था कि उनकी यही ट्रेन उन्हीं के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई हथियार की तरह इस्तेमाल की जाएगी। अगर 1846 में अमेरिका में कपास की फसल खराब न हुई होती तो कदाचित रेलवे को भारत मे आने में कुछ वक्त और लग जाता। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बहादुर शाह जफर ने साफ कहा था कि अगर हम दोबारा भारत के बादशाह बनते हैं तो यह हमारा वादा है कि भारत के व्यापारियों को शासन की तरफ से रेलवे लाइनें उपलब्ध करवाई जाएंगी।

फ्रंटियर मेल से पेशावर पहुंचे थे सुभाष चंद्र बोस

एसपी सिंह रेलवे के अभिलेखागार से मिली जानकारियों का हवाला देते हुए कहते हैं कि 1941 में सुभाष चंद्र बोस अपने घर में नजरबंद थे। उस समय वह मोहम्मद जियाउद्दीन का भेष बनाकर पहले कार से गोमो रेलवे स्टेशन गए थे और फिर वहां से कालका मेल पकड़कर दिल्ली और फिर वहां से फ्रंटियर मेल से पेशावर पहुंचे थे।

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सगत बोस की पुस्तक में मिलता है उल्ले

सगत बोस अपनी पुस्तक हिज मैजिस्टीज अपोनेंट में लिखते हैं कि ठीक एक बज कर 35 मिनट पर सुभाष ने मोहम्मद जियाउद्दीन का भेष धारण किया। उन्होंने उस सुनहरे फ्रेम के चश्मे को पहना जिसे वह करीब दस वर्ष पहले पहनना छोड़ चुके थे। उन्होंने अपना पुराना यूरोपियन जूता पहना और घर से विदा ली। वो आगे लिखते हैं कि गोमो स्टेशन पर एक कुली ने बोस का सामान उठाया और उन्हें कालका मेल में बिठा दिया। इसके बाद सुभाष अपने परिवार वालों से कभी नहीं मिले।

काकोरी में क्रांतिकारियों ने ट्रेन से लूटा था खजाना

नौ अगस्त 1925 की उस घटना ने अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया था जब रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी के पास 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर को रोक कर क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया था। इस पैसे से क्रांतिकारियों ने हथियार खरीदे थे।

भगत सिंह भी भागे थे ट्रेन से

फिरोजपुर रेल मंडल के एक अन्य अधिकारी बताते हैं कि भगत सिंह भी सांडर्स की हत्या के बाद किस तरह ट्रेन से कलकत्ता भागे थे। ईश्वर दयाल गौड़ अपनी किताब मार्टियर्स एज ब्राइडग्रूम अ फोक रिप्रेेजेन्टेशन ऑफ भगत सिंह में लिखते हैं कि सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने 17 दिसंबर 1928 की रात लाहौर के डीएवी कॉलेज के आहते में बिताई। दूसरे दिन सुबह भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा देवी के यहां चले गए।

इसके बाद वे वेष बदलकर लाहौर रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां से उन्होंने कलकत्ता के लिए दो फस्र्ट और दो थर्ड क्लास के टिकट खरीदे। उनके साथी राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद तीसरे दर्जे के डिब्बे में सफर करते हुए लखनऊ रेलवे स्टेशन पहुंचे और फिर वेष बदलकर कलकत्ता पहुंच गए। यही नहीं पलवल में गांधी जी की पहली गिरफ्तारी भी ट्रेन से ही हुई। नील आंदोलन के दौरान पश्चिमी चंपारन तक का सफर भी गांधी जी ने ट्रेन से ही किया।

गांधी ने सबसे अधिक किया राजनीति में रेलवे का इस्तेमाल

फिरोजपुर के मंडलीय परिचालन प्रबंधन एवं रेलवे हेरिटेज कमेटी के सदस्य एसपी सिंह भाटिया कहते हैं कि देश को आजादी दिलाने में रेलवे का इस्तेमाल सबसे अधिक किसी ने किया है तो वह हैं महात्मा गांधी। वो कहते हैं कि इसकी शुरुआत दक्षिण अफ्रीका से हुई थी। पीटरमैरिट्जबर्ग में एक रात एक गोरे ने रेलवे के फस्र्ट क्लास के डिब्बे से महात्मा गांधी का सामान प्लेटफार्म पर फेंक दिया था। उस समय महात्मा गांधी महात्मा नहीं बल्कि मोहनदास करमचंद गांधी हुआ करते थे। एसपी सिंह कहते हैं कि इस घटना के बाद जब महात्मा गांधी भारत लौटे तो उन्होंने कभी भी फस्र्ट क्लास डिब्बे में सफर नहीं किया। वे कहते हैं कि जितना गांधी ने रेलवे का राजनीतिक इस्तेमाल किया उतना किसी ने नहीं किया।

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