लखनऊ: भारत में मौसमी चक्र करवट ले रहा है। पृथ्वी पर सबसे ज्यादा बारिश वाला चेरापूंजी सूखे जैसे हालात से जूझने लगा है तो राजस्थान के वो इलाके बाढ़ से डूबने लगे हैं जहां कभी मामूली बरसात हुआ करती थी। २०१५ में जहां चेन्नई में भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई थी वहीं इस साल पानी की जबर्दस्त किल्लत हो गई।
इस साल देश में सर्वाधिक गर्म ग्रीष्म ऋतु का रिकार्ड बनने के बाद लंबे समय तक मानसून और बाढ़ का प्रकोप बना रहा है। सबसे पहले असम में बाढ़ से तबाही मची और उसके बाद महाराष्ट्र और केरल इसकी चपेट में आए। जब ये लग रहा था कि बाढ़ का दायरा इन्हीं राज्यों तक सीमित है तभी अगस्त के दूसरे हफ्ते में मध्य भारत में बाढ़ आनी शुरू हो गई।
देश में मौसम के ये बदलाव बहुत तेजी से हो रहे हैं। गर्मी, बरसात और जाड़े के एक्सट्रीम मौसम अब भयावह होते जा रहे हैं। पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (आईआईटीएम) के अनुसार १९५० से २०१५ के बीच मध्य भारत में अतितीव्र बरसात की घटनाहं तीन गुना बढ़ गई हैं। इससे ८२ करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं, डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं और ६९ हजार लोगों की जानें गईं हैं। जो ट्रेंड चल रहा है उसके अनुसार आने वाले वर्षों में मध्य भारत में बाढ़ की विभीषिकाएं होती रहेंगी। इसका एक कारण ग्लोबल तापमान में १ डिग्री सेल्यिस की बढ़ोतरी होना भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार कुल बरसात का वॉल्यूम कोई ज्यादा नहीं बदला है लेकिन अतितीव्र बरसात के वाकये बढ़ गए हैं। इसी वजह से बाढ़ अब ज्यादा आ रही हैं।
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भारत में जितनी बरसात होती है उसमें ८५ फीसदी मानसून के कारण होती है और देश के अधिकांश हिस्सों में साल के चार महीनों में ही बरसात का कोटा पूरा हो जाता है। बाकी के आठ महीने बिना बरसात के बीतते हैं। हमेशा से ही भारतीय मानसून का रूटीन एक समान नहीं रहता है। कभी अधिक बारिशा, कभी सामान्य तो कभी कम बारिश होती है। लेकिन अब मानूस की बरसात से निपटने में दिक्कतें आ रही हैं। २०१९ के मानसून सीजन में भारत में औसत से १ फीसदी ज्यादा बरसात होने का अनुमान है। लेकिन फिर भी देश के बड़े हिस्से में औसत से काफी कम बरसात हुई है। मानूस का पैटर्न भी बदलता जा रहा है। ५० के दशक से मध्य भारत में बरसात घटती गई है और हाल के वर्षों में उत्तर पश्चिमी राजस्थान और दक्षिण के कुछ हिस्सों में बरसात बढ़ी है।
सबसे बड़ा बदलाव
मानसूनी बरसात का सिलसिला तो अपने हिसाब से चलता ही रहा है लेकिन सबसे बड़ा बदलाव ये हुआ है कि अब बरसात अचानक तेज झटकों में होने लगी है। इसके अलावा बिन बरसात की लंबी अवधि के बाद तेज और भारी बारिश के वाकये हो रहे हैं। इसके कारण खेती में बहुत नुकसान होने लगा है। ध्यान देने वाली बात है कि औसत बरसात में खास बदलाव न होने के बावजूद ये हालात अभी और खराब ही होने वाले हैं।
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प्रदूषण का असर
बरसात कई फैक्टर पर निर्भर करती है। इसमें स्थानीय कारण जैसे कि प्रदूषण व पड़-पौधों की कमी तथा ग्लोबल कारण जैसे कि तापमान में वृद्धि शामिल होते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रदूषण के कारण बारिश कमजोर पड़ती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ के अनुसार भारतीय शहर विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं। भारत में बरसात इस फैक्टर से भी प्रभावित होती है।
मानव निर्मित बाढ़
बाढ़ से देश के तमाम हिस्सों में होने वाले नुकसान की वजहों में भारी बारिश के अलावा इंसानी गतिविधियां भी शुमार हैं। अतिक्रमण के कारण सिकुड़ चुकी नदियों में जब अचानक लबालब भरे बांधों से पानी छोड़ा जाता है तो भारी नुकसान होता है। बांध से पानी न भी छोड़ा जाए तब भी भारी बारिश के कारण नदियां भर जाती हैं और चूंकि नदियों के प्राकृतिक फ्लो की जगह ही सीमित रह गई है सो बाढ़ आ जाती है। मुम्बई, बंगलुरु, चेन्नई आदि इसके हाल के उदाहरण हैं। इसके अलावा पहाड़ों में अंधाधुंध निर्माण काय कंस्ट्रक्शन और खनन के कारण बरसात के दौरान तबाही होती है। केरल, हिमाचल और उत्तराखंड में यही होता है।
चेरापूंजी में पानी की कमी
चेरापूंजी (मेघालय) को कभी सर्वाधिक बरसात वाली जगह का खिताब मिला हुआ था लेकिन अब आलम ये है कि यहां पानी का संकट बना रहता है। पिछले कई वर्षों से चेरापूंजी में हर साल सूखे जैसे हालात बन जाते हैं। उधर महाबलेश्वर (महाराष्ट्र) जहां सामान्य बरसात होती थी उसने इस साल सर्वाधिक बरसात का रिकार्ड तोड़ दिया है।