Ravan Dahan Meerut: मेरठ का ऐसा गांव जहां नहीं होता है रावण का दहन, घरों में नहीं जलता चूल्हा, जानें क्या है परंपरा

Ravan Dahan Meerut: मेरठ के गगोल में 1857 के बाद से ही दशहरा नहीं मनाया गया। स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों की याद में 1857 से आज तक गगोल गांव में दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता।

Report :  Sushil Kumar
Update: 2022-10-04 10:08 GMT

गगोल गांव में नहीं होता है दशानन लंकेश का दहन

Ravan Dahan Meerut: वैसे तो दशहरे के दिन पूरे देश में दशानन लंकेश का दहन किया जाता है, लेकिन मेरठ का एक गांव ऐसा भी है जहां विजयादशमी (vijayadashmi) के दिन रावण को जलाया नहीं जाता है बल्कि इस दिन हवन पूजन का आयोजन किया जाता है। इस गांव का नाम गगोल है। गगोल में 1857 के बाद से ही दशहरा नहीं मनाया गया। दरअसल, यहां पर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया था. उन्हीं की याद में 1857 से आज तक गगोल गांव में दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता। इस बार भी दशहरे के मौके पर गांव में स्थित शहीद स्मारक में हवन इत्यादी का आयोजन किया जाएगा।

ब्राह्मण होते हुए रावण दहन देखना उनके लिए गलत: पुजारी

यही नही शहर के ऐतिहासिक बिलेश्वर नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के परिवार में रावण दहन नहीं देखने की परंपरा चली आ रही है। इस मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित हरीश चंद्र जोशी इसकी वजह स्पष्ट करते हुए बताते हैं,-रावण ना सिर्फ ब्राह्मण था बल्कि वह महाविद्वान, वेद पुराणों का ज्ञाता भी था। जोशी आगे कहते हैं,- ब्राह्मण होते हुए रावण दहन देखना उनके लिए गलत है इसीलिए वह अपने परिवार की सालों पुरानी चली आ रही परंपरा को निभाते हुए आ रहे हैं।

रावण दहन न करने की दूसरी वजह

वैसे यह एक अकेली वजह नहीं है एक दूसरी वजह भी है, जिसके कारण बिलेश्वर नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के परिवार में रावण दहन नहीं देखने की परंपरा चली आ रही है। जैसा कि बताते हैं,-असल में यह मान्यता भी है कि मेरठ मंदोदरी का मायका था। कहा जाता है कि मंदोदरी ने ही बाबा बिलेश्वर नाथ मंदिर की भी स्थापना कराई थी और वह रोज़ाना यहां बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करती थी। यह क्योंकि हमारी परंपरा नहीं है कि घर में दामाद का दहन हो और शोक के बजाय उत्सव मनाया जाए।

गगोल गांव में विजयादशमी के दिन रावण को नहीं जलाये जाने का अपना इतिहास

मेरठ से 15 किलोमीटर दूर स्थित गगोल गांव में विजयादशमी के दिन रावण को नहीं जलाये जाने का भी अपना इतिहास है। इस गांव में दशहरे के दिन गांव में मायूसी रहती है। जहां लोगों का दिन में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है। दरअसल,दशहरे के दिन कई क्रांतिकारियों को जिनमें गांव के नौ लोग भी शामिल थे को एक साथ इस गांव में पीपल के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गई थी। शहीदों की याद में गांव वालों ने फांसी वाली जगह पर ही उनका मंदिर बनवा दिए। त्योहारों में गांव वाले इन मंदिरों में शहीदों की पूजा कर उनके अमर बलिदान को नमन करते हैं।

इन क्रान्तिकारियों के परिवार के ही एक सदस्य नरेश गुर्जर कहते हैं, हमारे गांव में दशहरे पर कोई आयोजन नहीं होता। यहां तक कि दिन में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है। क्योंकि गांव के 9 लोगों को दशहरे के दिन 1857 में फांसी पर लटकाया गया था। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर विग्नेश त्यागी भी इतिहास के हवाले से गांव वालों के बयान की पुष्टि करते हैं,वे कहते हैं , 3 जून 1857 को मेरठ के गगोल गांव में क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी। उन्होंने बताया कि जिस स्थान पर फांसी दी गई थी वहां पीपल के पेड़ के पास एक कुआं बना हुआ है, जिसका उल्लेख ऐतिहासिक तथ्यों में भी पढ़ने को मिलता है।

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