पढ़िये ऐसे ब्रिटिश थाने की कहानी, जहां किसानों को दी जाती थी फांसी

 सबसे खास बात यह है कि भारत माता के अमर सपूत जिन्होंने देश की आजादी के खातिर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया उनसे जुड़े ऐतिहासिक स्थलों को सहेजने की जरूरत है ।

Update:2019-10-30 15:56 IST
पढ़िये ऐसे ब्रिटिश थाने की कहानी, जहां किसानों को दी जाती थी फांसी

अनुज हनुमत

बुन्देलखण्ड : सबसे खास बात यह है कि भारत माता के अमर सपूत जिन्होंने देश की आजादी के खातिर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया उनसे जुड़े ऐतिहासिक स्थलों को सहेजने की जरूरत है । ऐसे ही अंग्रेजों के समय की जेल मानिकपुर में थी जो आज सरकार की उदासीनता के चलते लगभग धूल धूसरित हो गया है ।

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अमर शहीदों की याद दिलाता

इन्ही में से एक मानिकपुर ब्लाक संसाधन केंद्र के ठीक पीछे पड़ा खंडहर जो आज भी चींख-चींखकर अपने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले अमर शहीदों की याद दिलाता है।

आपको बता दें कि मानिकपुर (चित्रकूट) जिला मुख्यालय से 30 किमी की दूरी पर है । मानिकपुर नगर में स्वतन्त्रता संग्राम और उस समय के बहुत अवशेष जीवित हैं परन्तु मात्र खंडहरों के रूप में ,अगर अगले 2-3 साल तक इनकी देखरेख नही की गई तो ये धूल धूसरित हो जायेंगे।

हमारी शुरुआती जांच पड़ताल से यह स्थान 100 साल से भी अधिक पुराना है । नगर के कुछ बुजुर्गो के अनुसार यहाँ 60 साल पूर्व थाने में ब्रिटिशो के द्वारा देशभक्तो को फाँसी दी जाती थी । आप आज इसकी हालत देखें तो आपको बहुत दुःख होगा ।

यहाँ का हर कीमती सामान व् दस्तावेज लोहे से बने दरवाजे व् छड़ व् अन्य बेशकीमती सामान सरकार की उदासीनता के कारण चोरी हो गए । क्या शहीदों को ऐसा ही सम्मान मिलता रहेगा । पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश भक्तों के ऐसे शहीद स्थल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं ।

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देशभक्तों को अंग्रेज फाँसी देते थे

इसके चलते इतिहास की बेशकीमती धरोहर के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है । जिले के इक्का दुक्का शहीदों की यादों के इस तरह के खजाने को लेकर शासन और प्रशासन की उदासीनता लोगो को परेशान करती है ।

पुराने लोग बताते हैं की यहाँ पर देशभक्तों को अंग्रेज फाँसी देते थे । ब्लाक संसाधन केंद्र के पीछे खंडहरों में बिखरे अवशेष हमारे देशभक्तों की बहादुरी के किस्से बताते हैं । आस पास के लोगों का कहना है कि इस थाने मे थानेदार पेड़ से लटकाकर देशभक्तों को फाँसी देता था और इसको रजिस्टर में दर्ज भी नही करता था ।

जब इसकी जानकारी जमींदार को होती थी तो बवाल भी हो जाता था । माताबदल बताते है की तब अंग्रेजों की सरपरस्ती में थानेदार और सिपाही पास के तालाब नहाने आने वाली महिलाओं से भी अभद्रता करते थे । जब ये बातें जमीदार को पता चली तो उसने गाँवों वालो को इकट्ठा किया और थानेदार को जमकर पीटा और बाहर निकाल दिया।

एक बार जरूर सोंचिये की खंडहर हो रही इन ऐतिहासिक धरोहरों के मामले में सरकार का ध्यान कभी गया हो !सरकार के पास सौ काम है फिर उसको दोष देना भी जायज नही । यह मामला सरकार के सामने प्रभावशाली ढंग से रखने का भी किसी ने कोई प्रयास किया?

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हमारी वैभवशाली विरासत

हमारी वैभवशाली विरासत गर्त में जा रही है और हम आज भी इससे अंजान बने है । स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या किसी वीर सपूत के शहीद दिवस के मौके पर एक बार जरूर सोंचिये की कल कहीं आपके नाती-पोते ने कोई तस्वीर देखकर कहा की दादा-बाबा हमें इस जगह जाना है तो उनसे क्या यह कह पाएंगे की हमारे नकारेपन की वजह से अब इसका वजूद नही रह गया है।

ऐसे में पुरातत्व विभाग को इस भवन को अपने कब्जे में लेकर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इसका विकास करना चाहिए ताकि ऐसे क्षेत्रों के नवयुवक शहीदों की कुर्बानी के सम्बन्ध में जान सके । इसके आलावा भवन को शहीद स्थल के रूप में घोषित करते हुए यहाँ से चोरी हुई सामग्री बरामद की जाये।

ऐसे ऐतिहासिक स्थलों को सहेजने के लिए योगी सरकार को 'शहीद विभाग' का गठन करना चाहिए जो ऐसे शहीद स्थलों को खोजे ,उनकी मरम्मत कराये ,विचार गोष्ठीयां कराये ! पूरे देश में एक ऐसा आंदोलन बन जाये जहाँ शहीदों की कुर्बानी को वाकई में महसूस किया जाये। सदियों से देश में इसी बात की कमी थी की हमने शहीदों को सम्मान नही दिया।

नगर में स्वतन्त्रता संग्राम और उस समय के बहुत से अवशेष जीवित हैं परन्तु मात्र खंडहरों के रूप में ,अगर अगले 2-3 साल तक इनकी देखरेख नही की गई तो ये धूल धूसरित हो जायेंगे।

'थाना मानिकपुर'

उन्होंने बताया कि जानकारी इकठ्ठा करने के दौरान मुझे 1906 से 1909 ई. के बीच का नक्शा प्राप्त हुआ जिसका अध्ययन करने पर 684 नं. पर यह स्थान 'थाना मानिकपुर' के नाम से दर्ज है ।अर्थात् शुरुआती जांच पड़ताल से यह स्थान 100 साल से भी अधिक पुराना है ।

नगर के कुछ बुजुर्गो के अनुसार यहाँ 60 साल पूर्व थाने में ब्रिटिशो के द्वारा देशभक्तो को फाँसी दी जाती थी । जब मैंने इसकी हालत देखी तो मुझे बहुत दुःख हुआ यहाँ का हर कीमती सामान व् दस्तावेज लोहे से बने दरवाजे व् छड़ व् अन्य बेशकीमती सामान सरकार की उदासीनता के कारण चोरी हो गए ।

क्या शहीदों को ऐसा ही सम्मान मिलता रहेगा । पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश भक्तों के ऐसे शहीद स्थल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं ।इसके चलते इतिहास की बेशकीमती धरोहर के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है । जिले के इक्का दुक्का शहीदों की यादों के इस तरह के खजाने को लेकर शासन और प्रशासन की उदासीनता लोगो को परेशान करती है ।

सरकार को 'शहीद विभाग' का गठन करना चाहिए जो ऐसे शहीद स्थलों को खोजे ,उनकी मरम्मत कराये ,विचार गोष्ठीयां कराये !पूरे देश में एक ऐसा आंदोलन बन जाये जहाँ शहीदों की कुर्बानी को वाकई में महसूस किया जाये।

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