84 साल बाद आया सामने: बेहद खूबसूरत है ये सांप, नाम में छुपा है ये राज

ये सांप बेहद शर्मीले स्वाभाव के होते हैं, और सिर्फ रात में ही निकलना पसंद करते हैं। यह सांप पहली बार 1936 में लखीमपुर खीरी में देखा गया था इसलिए इस सांप का वैज्ञानिक नाम ओलिगोडॉन खीरीएनसिस रखा गया था।

Update: 2020-07-17 13:08 GMT

लखनऊ: लखीमपुर खीरी स्थित दुधवा रिजर्व टाइगर सेंचुरी में उस समय ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी जब दुर्लभ प्रजाति का सांप देखा गया। इस सांप को देखते ही पार्क कर्मियों ने उसे अपने कैमरे में कैद कर लिया। इस सांप को रेड कोरल खुखरी के नाम से भी जाना जाता है। इससे पहले यह सांप यहाँ 1936 में देखा गया था। 1936 के बाद से ही कभी किसी ने इस सांप को नहीं देखा हालॉकि कर्तनियाघाट में इस सांप को देखने की बात सामने आती रहीं हैं।

क्यों कहते हैं इसे रेड कोरल खुखरी

यह सांप चटक लाल रंग का होता है और इसके दांतों की बनावट खुखरी की तरह होती है, इसलिए इन साँपों को लाल मूंगा खुखरी या रेड कोरल खुखरी कहते हैं। ये सांप बेहद शर्मीले स्वाभाव के होते हैं, और सिर्फ रात में ही निकलना पसंद करते हैं।

यह सांप पहली बार 1936 में लखीमपुर खीरी में देखा गया था इसलिए इस सांप का वैज्ञानिक नाम ओलिगोडॉन खीरीएनसिस रखा गया था। यह सांप जल्दी किसी को काटते नहीं हैं, ये सांप फन नहीं निकाल सकते हैं, इनका खाना रेंगने वाले छोटे कीड़े मकौड़े होते हैं।

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विशेषज्ञों ने क्या कहा

दुधवा रिजर्व टाइगर सेंचुरी के डायरेक्टर संजय पाठक ने इस सांप के देखे जाने के बाद काफी ख़ुशी जताई है, उन्होंने कहा कि 1936 में यह सांप इसी सेंचुरी में देखा गया था आज 84 साल बाद इसे दुबारा देखना किसी अचम्भे से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसे दुर्लभ सांप को बचने की हर सम्भव कोशिश की जा रही है, इस सांप के बारे में सभी को बताया जा रहा है कि ये सांप बिलकुल भी जेह्रीला नहीं होता है, और नाही ये किसी को कोई नुकसान पहुंचाता हैं।

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