कुलदीप सिंह
अलीगढ़: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) के लिए बेहद जरूरी दस्तावेज में जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र शामिल है लेकिन अलीगढ़ नगर निगम ने आम जनता से जुड़ी इस अहम सेवा को घर की पंचायत बना दिया है। जन्म-मृत्यु पंजीकरण व उसके प्रमाण पत्र जारी करने में मनमाना कायदा लागू करने से जनता को दिक्कतों से दो-चार होना पड़ रहा है। हाल ही में सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) सॉफ्टवेयर उपयोग करने का आदेश जारी होने के बाद निगम में असमंजस का माहौल बना हुआ है।
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जन्म मृत्यु संबंधी अभिलेख पचासों साल से रिकॉर्ड रूम में रखे हैं और इनको ऑनलाइन करने की कतई पहल नहीं की गई। जन्म मृत्यु रजिस्ट्रार डॉ. शिव कुमार के मुताबिक 200 से 250 पंजीकरण रोजाना ई-डिस्ट्रिक व ई-नगर सॉफ्टवेयर में दर्ज किये जा रहे हैं। कितने पंजीकरणों को ऑन लाइन किया जाना बाकी है, इस संख्या से रजिस्ट्रार अनजान हैं। जानकार बताते हैं कि पांच साल पहले ऑनलाइन इन्द्राज कराने के लिए एक व्यक्ति को अनुबन्ध पर रखा गया था, जो समय पर भुगतान न मिलने के कारण इस काम को अधर में छोड़ गया। भूतपूर्व नगर आयुक्त शैलेन्द्र कुमार सिंह के समय तकरीबन 1500 प्रमाणपत्र अभिलेखों में दर्ज न करने का मामला भी सामने आया है।
एकल खिडक़ी व्यवस्था
आवेदकों की परेशानी को देखते हुऐ तत्कालीन बसपा सरकार ने प्रदेश के सभी नगर निगम व नगर पालिकाओं में एकल खिडक़ी व्यवस्था लागू की थी। बाद में दिसम्बर 2014 से ऑनलाइन आवेदन और प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया लागू की गई जिसमें जांच आख्या व सत्यापन करने की जिम्मेदारी एकल खिडक़ी की तरह सम्बन्धित अफसर व कर्मचारियों पर थी। यह व्यवस्था प्रदेश के सभी 17 नगर निगमों में लागू की गई थी। अलीगढ़ नगर निगम ने अचानक जून 2016 में इस व्यवस्था को ताक पर रख दिया और केवल ऑफलाइन आवेदन करने का फरमान जारी कर दिया और सभी 10 लोकवाणी केन्द्रों पर ऑनलाइन आवेदन दर्ज होना बंद हो गया। चार साल से हर आवेदक के सामने नगर मजिस्ट्रेट, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, नगर स्वास्थ्य अधिकारी, सफाई निरीक्षक व सफाई नायक तक की रिपोर्ट व संस्तुति करवाने के लिए चक्कर लगाने की मजबूरी बनी हुई है।
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भ्रष्टाचार का आरोप
आरोप है कि नगर निगम के तमाम कर्मचारी जन्म मृत्यु पंजीकरण के ‘कारोबार’ में लिप्त हैं। लोगों का कहना है कि यहां के कमरा नंबर 10 में हर आवेदक से 400 से लेकर 1000 रुपए में पंजीयन का काम किया जाता है। तुर्कमान गेट निवासी मो. गुड्डïू ने बताया कि एक दलाल को 400 रुपए दिये तब 20 दिन में बेटी का जन्म प्रमाण पत्र बन पाया। एक अन्य मामले में मृत्यु होने की आख्या लिखने के लिए आवेदकसे 500 रुपए की मांग की गई। इसकी शिकायत पर जिलाधिकारी ने सफाई नायक प्रदीप को निलम्बित कर दिया।
नये आदेश से ऊहापोह
पंजीकरण में भ्रष्टाचार और समस्याओं की शिकायतें लगातार मुख्यमंत्री पोर्टल पर बढ़ रही हैं। इसके चलते प्रदेश सरकार ने 1 फरवरी 2020 से नई व्यवस्था लागू की जिसके तहत अब सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जायेगा। शासनादेश जारी होने के बाद से अब तक नगर निगम के अफसरों की लापरवाही बनी हुई है। आवेदन कैसे और कहां जमा होंगे यह भी तय नहीं है। निगम के चार कर अधीक्षक/जोनल अधिकारियों के पंजीयन कार्य में सहायता करने वाले राजस्व निरीक्षक, कम्प्यूटर ऑपरेटर व लिपिकों को प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
अफसर का अनोखा आवेदन
नगर निगम के मुख्य अभियन्ता कुलभूषण वाष्र्णेय ने अपना व अपनी पत्नी का जन्म पंजीकरण प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए शपथपत्र व आधार कार्डों को बतौर सबूत दाखिल किया है। आवेदनों में पति-पत्नी एक दूसरे के आवेदक व वचनकर्ता बने हैं। आधार कार्डों पर दम्पत्ति का पता जनपद आगरा दर्ज है पर शपथपत्रों में निवास व जन्मस्थान अलीगढ़, मानिक चौक, पोस्ट आफिस वाली गली दर्शाया है। ये दोनों 1971 से 2019 तक इसी पते के निवासी हैं। शपथपत्र में बताया गया है कि दोनों इतने ही समय से साथ-साथ भी निवास कर रहे हैं। दिखाई गई जन्मतिथि से 1971 में दोनों की उम्र क्रमश: 10 साल व 7 साल की थी और वे इतनी ही उम्र से साथ हैं।
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घोषणापत्र में पति के 3 साल बाद जन्म लेने वाली ममता गुप्ता अपने पति के जन्म स्थान व जन्मतिथि की गवाह बनी हुई हैं। जबकि गवाह का आवेदक के जन्म के समय बालिग होना कानूनन जरूरी है। दोनों आवेदनों पर सफाई निरीक्षक ने पति पत्नी का जन्मस्थान मानिक चौक में होने की आख्या लिखी है पर रजिस्ट्रार ने ममता गुप्ता के प्रमाण पत्र में उनका जन्म स्थान विष्णुपुरी एस.एम.वी. इण्टर कॉलेज के सामने होना अंकित किया है। कुलभूषण वाष्र्णेय का कहना है कि शपथपत्र रूटिन वे में बन जाते हैं शपथपत्र में क्या भाषा लिखी गई है, इसकी जानकारी भी उन्हें नहीं है। उनका कहना है कि जन्म प्रमाण पत्रों की उन्हें कतई आवश्यकता नहीं है। अधिवक्ता आलोक कुमार सिंघल व गजेन्द्र कुमार वर्मा के मुताबिक झूठे सबूत प्रस्तुत करके सरकारी दस्तावेज हासिल करना अपराधिक दायरे में आता है।