यूपी विधान सभा और विधान परिषद सचिवालय भर्ती में घोटाला, वीवीआईपी के रिश्तेदारों की हुई भर्ती
उत्तर प्रदेश विधान सभा और विधान परिषद सचिवालय में 186 रिक्तियों पर भर्तियां निकाली गईं थी। इस भर्ती में हर पांचवें पद पर सचिवालय अफसरों, नेताओं और उनके रिश्तेदारों को ही नियुक्त कर दिया गया।
UP Assembly Secretariat Recruitment : सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता के सरकारी दावों की कलई अभी हाल में तब खुली जब सोशल मीडिया पर रामभद्राचार्य जी का एक ऐसा वीडियो वॉयरल हुआ, जिसमें वह अपने एक ख़ास लड़के को समीक्षा अधिकारी के पद पर रखने की सार्वजनिक सिफ़ारिश विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना जी से करते नजर आते हैं। सुने जा सकते हैं। इसे संयोग भी कह सकते हैं कि इस वीडियो के वायरल होने वाले दिन ही इंडियन एक्सप्रेस ने विधान सभा/ विधान परिषद में समीक्षा अधिकारी व सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर हुए गोलमाल की कलई खोल कर रख दी। इस प्रकरण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए इसे चौंकाने वाला घोटाला करार दिया है। कोर्ट ने भर्ती में ईमानदारी और भाई-भतीजावाद पर सवाल उठाए हैं
क्या है मामला
इंडियन एक्सप्रेस में छपे समाचार के मुताबिक, उत्तर प्रदेश विधान सभा और विधान परिषद सचिवालय में 186 रिक्तियों पर भर्तियां निकाली गईं थी। इसके लिए 2.5 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। वर्ष 2020-21 में दो राउंड में परीक्षा आयोजित की गई थी। इस भर्ती में हर पांचवें पद पर सचिवालय अफसरों, नेताओं और उनके रिश्तेदारों को ही नियुक्त कर दिया गया।
इन्हें दे दी गई नौकरी
इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों को नौकरी मिली उनमें तत्कालीन प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष के जनसंपर्क अधिकारी और उनके भाई, एक मंत्री का भतीजा, विधान परिषद सचिवालय प्रभारी का बेटा, विधानसभा सचिवालय प्रभारी के चार रिश्तेदार, संसदीय कार्य विभाग प्रभारी के बेटा और बेटी, एक उप लोकायुक्त का बेटा और दो मुख्यमंत्रियों के पूर्व स्पेशल ड्यूटी अधिकारी के बेटे शामिल हैं। इतना ही नहीं, सफल अभ्यर्थियों की सूची में दो प्राइवेट फर्म टीएसआर डाटा प्रोसेसिंग और राभव के मालिकों के कम से कम पांच रिश्तेदार भी शामिल हैं। ये वही फर्में हैं जिन्होंने पहली कोरोना लहर के दौरान यह परीक्षा आयोजित की थी। परीक्षा में सफल इन सभी उम्मीदवारों को तीन साल पहले यूपी विधानमंडल को प्रशासित करने वाले दो सचिवालयों में नियुक्त किया गया था।
इस भर्ती में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी जैनेंद्र सिंह यादव उर्फ नीटू के भतीजे की विधानसभा में समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति हुई है। इसके अलावा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के पीआरओ की नियुक्ति विधानपरिषद के प्रकाशन विभाग में हुई।
कैसे हुआ खुलासा
इस मामले का खुलासा तब हुआ जब भर्ती परीक्षा में असफल तीन अभ्यर्थियों ने इलाहबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दाखिल कर दी। इस मामले में कई अन्य याचिकाएं भी दाखिल हुईं। हाईकोर्ट ने 18 सितंबर, 2023 इस मामले से जुड़ी याचिकाओं को जनहित याचिका में बदल दिया और मामले की सुनवाई के लिए दो जजों की पीठ को भेज दिया। इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ के समक्ष ऐसे तथ्य आये कि कोर्ट ने इस मामले को घोटाला करार देते हुए इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी। लेकिन यूपी विधान परिषद ने सीबीआई जांच फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए सुनवाई के लिए अगली तारीख 6 जनवरी, 2025 लगा दी है।
नियमों में संशोधन पर उठाए सवाल
उत्तर प्रदेश सचिवालय में 2016 तक यूपी लोक सेवा आयोग के माध्यम से भर्ती की जाती थी। 2016 में नियमों में संशोधन कर दिया गया और यूपी विधानसभा और 2019 में यूपी विधान परिषद ने खुद भर्ती परीक्षा आयोजित कराने का फैसला लिया। हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर भी हैराई जताई और पूछा कि नियमों में क्यों संशाधन किया गया है? नियमों में संशोधन करके चयन एजेंसी को हटाकर बाहरी एजेंसी को दे दिया गया।
कोर्ट में गया मामला
इस भर्ती परीक्षा में तीन असफल उम्मीदवारों - सुशील कुमार, अजय त्रिपाठी और अमरीश कुमार द्वारा हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका पर सुनवाई करते हुए 18 सितंबर, 2023 को एक आदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। कोर्ट ने इस भर्ती प्रक्रिया को "चौंकाने वाला" कहा। ये भी कहा कि "सैकड़ों भर्तियां अवैध और गैरकानूनी तरीके से संदिग्ध विश्वसनीयता वाली बाहरी एजेंसी द्वारा की गईं।"
क्या है मामला
ये नियुक्तियाँ कम से कम 15 समीक्षा अधिकारियों (आरओ), 27 सहायक आरओ और जूनियर पदों से संबंधित हैं। आरओ एक राजपत्रित पद के बराबर है जिसका वेतन बैंड 47,600-1,51,100 रुपये है और एआरओ का वेतन मैट्रिक्स 44,900-1,42,400 रुपये है।
यह भर्ती 2021 से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई याचिकाओं का विषय थी। 18 सितंबर, 2023 को, दो याचिकाओं को जोड़ते हुए, मामले को जनहित याचिका में बदलने और सीबीआई जांच का आदेश देते हुए, दो न्यायाधीशों की पीठ ने बाहरी एजेंसियों को शामिल करने के तरीके की आलोचना की। अदालत के रिकॉर्ड से पता चलता है कि दोनों निजी फर्मों के मालिकों को एक अन्य भर्ती में कथित हेराफेरी के आरोप में पहले भी जेल भेजा जा चुका है, और मामला अभी भी लंबित होने के कारण वे जमानत पर हैं।
उच्च न्यायालय ने मुख्य रूप से नियमों में संशोधन का जिक्र किया जिसने “घोटाले” को सक्षम किया। सचिवालयों के लिए भर्ती 2016 तक यूपी लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती थी। लेकिन विधानसभा ने नियम में संशोधन किया और उन्हें अपने दम पर आयोजित करने का फैसला किया, जिसके बाद 2019 में परिषद ने भी ऐसा ही किया। पूर्व सपा एमएलसी रमेश यादव नियमों में संशोधन के समय परिषद के अध्यक्ष थे।
उच्च न्यायालय ने कहा : “…यह देखकर आश्चर्य हुआ कि परीक्षा एजेंसी को हटाकर नियमों में संशोधन क्यों किया गया।चयन समिति द्वारा निर्धारित नियम को दरकिनार करके बाहरी एजेंसी के लिए निर्णय लेना काफी चौंकाने वाला था।”
3 अक्टूबर, 2023 को उच्च न्यायालय ने विधान परिषद द्वारा दायर एक समीक्षा आवेदन को खारिज कर दिया। इस बीच, सीबीआई ने एक प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की और भर्ती से संबंधित कुछ रिकॉर्ड को अपने कब्जे में ले लिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर, 2023 को स्टे जारी कर दिया।
भर्ती की टाइमलाइन
यूपी परिषद सचिवालय : 17 और 27 सितंबर, 2020 को 99 पदों के लिए विज्ञापन दिया गया। 22 नवंबर, 2020 को प्रारंभिक परीक्षा - और स्थानीय विवाद के कारण 29 नवंबर को गोरखपुर के लिए पुनः परीक्षा हुई। 27 और 30 दिसंबर, 2020 को मुख्य परीक्षा हुई। परिणाम: 11 मार्च, 2021 को आया।
यूपी विधानसभा सचिवालय: दिसंबर 2020 में 87 पदों के लिए विज्ञापन दिया गया। 24 जनवरी, 2021 को प्रारंभिक परीक्षा। 27 फरवरी, 2021 को मुख्य परीक्षा और 14 मार्च, 2021 को टाइपिंग टेस्ट। परिणाम: 26 मार्च, 2021।
न्यायालय के रिकॉर्ड से पता चलता है कि विधानसभा में भर्ती का ठेका ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज (बेसिल) को दिया गया था, जो केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। बेसिल ने टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग को काम पर रखा था। बेसिक के वरिष्ठ प्रबंधक अविनाश खन्ना के अनुसार - हमने विधानसभा सचिवालय के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए और हमने इसे आगे सब-लेट कर दिया। हम इस समय इस बारे में और कुछ नहीं कह सकते क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है।"
सूत्रों ने पुष्टि की कि परिषद ने "राभव" को भर्ती करने का काम सौंपा था, हालांकि सचिवालय ने परीक्षा प्रक्रिया की गोपनीयता का हवाला देते हुए अदालत में फर्म का नाम नहीं बताया।
विधानसभा सचिवालय के लिए चयनित लोगों की एक कथित सूची एक अन्य याचिकाकर्ता विपिन कुमार सिंह द्वारा उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गई थी, जो एक असफल उम्मीदवार भी थे। सिंह ने गुप्त माध्यमों से प्राप्त ओएमआर उत्तर पुस्तिकाओं और टाइपिंग शीट का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि योग्यता अंकों में हेराफेरी की गई थी। उन्होंने उच्च न्यायालय को बताया कि : “परिणाम कभी भी आम जनता के लिए खुले तौर पर घोषित नहीं किए गए। न तो परिणामों की तारीख का खुलासा किया गया और न ही अंतिम रूप से चयनित उम्मीदवारों की सूची।” विधानसभा सचिवालय ने उच्च न्यायालय को बताया कि “अंतिम परिणाम प्रतिवादियों की आधिकारिक वेबसाइट uplegiassemblyrecruitment.in पर अपलोड किया गया था। सहायक समीक्षा अधिकारी के पद के लिए अंतिम सूची विधान सभा सचिवालय के कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर चिपका दी गई थी।” जब इंडियन एक्सप्रेस ने वेबसाइट की जाँच की, तो वहां से परिणाम गायब थे।
इनकी हुई भर्ती
इंडियन एक्सप्रेस ने रिकॉर्ड की जांच के बाद भर्ती की कुछ बानगियाँ पेश की हैं :
- एच एन दीक्षित (भर्ती के समय यूपी विधानसभा अध्यक्ष) के पीआरओ। इन्हें विशेष कार्यकारी अधिकारी (प्रकाशन), विधान परिषद, पद मिला जो एक नव निर्मित पद था। पीआरओ के भाई का भी विधानसभा में समीक्षा अधिकारी (आरओ) के रूप में चयन हुआ।
- जय प्रकाश सिंह (प्रमुख सचिव, संसदीय कार्य) के बेटे और बेटी। पद: आरओ, विधानसभा।
- विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे के चार रिश्तेदार। पद: दो रिश्तेदार (चचेरे भाई के बेटे), आरओ और एआरओ, विधानसभा। दो अन्य रिश्तेदार (चचेरे भाई और मामा के बेटे), आरओ, विधान परिषद।
- विधान परिषद के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश सिंह के बेटे। पद: आरओ, विधानसभा।
- पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह के भतीजे। पद: सहायक समीक्षा अधिकारी (एआरओ), विधान परिषद। महेंद्र सिंह 2017 से 2019 तक राज्य मंत्री और 2019 से 2022 तक भाजपा राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।
- दिनेश कुमार सिंह (उप लोकायुक्त और विधि विभाग, उत्तर प्रदेश के पूर्व प्रमुख सचिव) के पुत्र। पद: आरओ, विधानसभा। बाद में, बेटे को विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) श्रेणी के तहत निचली अदालतों में न्यायाधीश के रूप में चुना गया।
- अजय कुमार सिंह (तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूर्व ओएसडी हैं, अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं) के पुत्र। पद: समीक्षा अधिकारी (आरओ), विधानसभा।
- धर्मेंद्र सिंह (अतिरिक्त निजी सचिव, पूर्व मंत्री और सपा नेता शिवपाल यादव के साथ काम किया है) के पुत्र और भाई। पद (पुत्र): एआरओ, विधानसभा। पद (भाई): एपीएस, विधानसभा।
- जैनेंद्र सिंह यादव उर्फ नीटू (पूर्व सीएम अखिलेश यादव के करीबी सहयोगी) के भतीजे। पद: आरओ, विधानसभा।
- चुने गए लोगों में दो भर्ती फर्मों के मालिकों के रिश्तेदार शामिल थे :
"राभव" के मालिक राम प्रवेश यादव की पत्नी। राम प्रवेश यादव के पिता शंभू सिंह यादव के भाई हैं, जो एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और हाल ही में उप लोकायुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। पद: आरओ, परिषद।
- टीएसआर डाटा प्रोसेसिंग के निदेशक राम बीर सिंह के भतीजे, भतीजी और बहनोई। पद: एआरओ, विधानसभा।
- टीएसआर डाटा प्रोसेसिंग के निदेशक सत्य पाल सिंह के भाई। पद: एआरओ, विधानसभा।