Sonbhadra News: वैज्ञानिकों की चेतावनी, सोनभद्र के इन प्वाइंटों से हुई छेड़छाड़ तो मचेगी तबाही, विशेष संरक्षण की जरूरत
Sonbhadra News : अर्थक्विक प्वाइंट की पहचान रखने वाले इस भ्रंश का एक सिरा जबलपुर तो दूसरा सिरा सीधे सोनभद्र से जुड़ा हुआ है।
Sonbhadra News: सोनभद्र में चार बार धरती के उलट-पुलट (प्रलय) का साक्ष्य दबे होने के खुलासे के साथ ही, सोनभद्र को धरती के संतुलन का भी एक बड़ा प्वाइंट होने का खुलासा सामने आया है। इसको लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी भी दी है। उनका स्पष्ट कहना है कि यहां कुछ ऐसे प्वाइंट हैं, जिनसे छेड़छाड़ का मतलब बड़ी तबाही को न्यौता देना है। इसको देखते हुए, चिन्हित स्थलों के संरक्षण के लिए विशेष प्रबंध किए जाने की जरूरत भी जताई है।
पुराणों में वर्णित प्रलयकाल की तर्ज पर, धरती के कई बार उलट-पुलट का साक्ष्य खोजने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि म्योरपुर ब्लाक के रनटोला ग्राम पंचायत स्थित जमतिहवा नाले में जिस जगह 1800 मिलियन वर्ष पूर्व की चट्टान मिली है। उससे कुछ ही दूरी पर धरती को जोड़े रखने वाले एक बड़े फाल्ट (भ्रंश) की भी स्थिति देखने को मिली है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस भ्रंश का सीधा जुड़ाव सोन-नर्मदा साउथ फाल्ट है। अर्थक्विक प्वाइंट की पहचान रखने वाले इस भ्रंश का एक सिरा जबलपुर तो दूसरा सिरा सीधे सोनभद्र से जुड़ा हुआ है। बीएचयू के प्रोफेसर वैभव श्रीवास्तव और कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफसर ध्रुव चट्टोपाध्याय का स्पष्ट कहना है कि इस भ्रंश से किसी तरह की छेड़छाड़ बड़ी तबाही यानी भूकंप को न्यौता दे सकती है। इसको देखते हुए दोनों वैज्ञानिकों ने इस स्थल के संरक्षण और रखरखाव के लिए विशेष पहल किए जाने की जरूरत जताई है।
रिहंद डैम को सबसे ज्यादा खतरा
वैज्ञानिकों की चिंता सिर्फ इस भ्रंश से छेड़छाड़, यहां खनन या इसके स्वरूप में किसी तरह के परिवर्तन की कोशिश से भूकंप की संभावना से ही नहीं है, बल्कि सबसे ज्यादा चिंता यहां से काफी करीब स्थित रिहंद डैम से है। बताया जा रहा है कि इस फ्रंश की जो रेखा गुजरी है, वह रिहंद डैम से महज एक किमी के दायरे से होकर निकली है। साथ ही जहां मुख्य फाल्ट यानी जो सोनभद्र वाले छोर का सिरा है, वह भी रिहंद के नजदीक ही है। इसको देखते हुए वैज्ञानिक इस स्थल के साथ ही जहां रिहंद डैम के संरक्षण का विशेष ख्याल रखे जाने की जरूरत जताने लगे हैं। वहीं धरती के उलट-पलट और साक्ष्य वाले स्थल पर किसी तरह के खनन या निर्माण वाली गतिविधियां न होने पाए, इसका भी विशेष ख्याल रखने की बात पर बल दिया है।
प्रो. वैभव श्रीवास्तव की पहल से सामने आया सच
सोनभद्र में पिछले 25 वर्ष से अधिक समय से भूगर्भीय अध्ययन में लगे प्रो. वैभव श्रीवास्तव की नजर अगर, इस अजूबे पर नहीं पड़ती तो शायद यह जानकारी दुनिया के सामने नहीं आती। बताते हैं कि छह माह पूर्व उन्होंने रेणुकूट और म्योरपुर इलाके का दौरा कर यहां का भौगोलिक अध्ययन किया था। उसी दौरान उनकी नजर इस पर पड़ गई थी। इसके बाद उन्होंने अपनी संभावना को प्रमाणित करने के साथ ही, इसे दुनिया के सामने कैसे लाएं, इसको लेकर पहल शुरू कर दी। जब भारत के साथ ही अमेरिका-बांग्लादेश के कुल 60 भू-वैज्ञानिकों की टीम ने इसकी सच्चाई जांचने की हामी भर दी तो इसको लेकर आवश्यक औपचारिकताओं की पूर्ति के बाद टीम, सोनभद्र में सच खंगालने पहुंच गई और इसी के साथ करोड़ों साल से अलसुलझा धरती के उलट-पुलट का एक बड़ा रहस्य दुनिया के सामने आ गया।