कई अखबारों में संपादक रहे सुनील दुबे का निधन, पत्रकारिता जगत में शोक की लहर
मूर्धन्य पत्रकार कई अखबारों में संपादक रहे सुनील दुबे का आज निधन हो जाने से पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनके सिखाये तमाम वरिष्ठ पत्रकारों ने पितातुल्य सुनील दुबे के निधन पर अपनी शोक संवेदनाएं संस्मरण व्यक्त किये हैं।
लखनऊ: मूर्धन्य पत्रकार कई अखबारों में संपादक रहे सुनील दुबे का आज निधन हो जाने से पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनके सिखाये तमाम वरिष्ठ पत्रकारों ने पितातुल्य सुनील दुबे के निधन पर अपनी शोक संवेदनाएं संस्मरण व्यक्त किये हैं। श्री दुबे हिन्दुस्तान लखनऊ व पटना में, राष्ट्रीय सहारा लखनऊ व नोएडा में तथा दैनिक जागरण कानपुर में संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार सुनील दुबे के निधन पर मुख्यमंत्री राज्यपाल व तमाम मंत्रियों ने शोक संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
श्री दुबे का अनुशासन मशहूर था। आज भी उनके साथ लोग काम किए लोग उनके अनुशासन के कायल हैं। वे बाहर से सख्त और अंदर से बहुत नरम दिल इंसान थे। वे जहां भी रहे, लंबी पारी खेली। वे दिल्ली हिन्दुस्तान से करीब डेढ़ दशक पूर्व रिटायर होने के बाद लखनऊ के विकासनगर में निवास कर रहे थे। वरिष्ठ पत्रकार गोलेश स्वामी ने लिखा है कि अमर उजाला से हिन्दुस्तान लाने वाले वही थे। वे ईमानदारी और निष्ठा से काम करने वालों को मानते भी थे और सम्मान भी करते थे।
वरिष्ठ पत्रकार शम्भूनाथ शुक्ल
सुनील दुबे नहीं रहे। कानपुर में जब मैं दैनिक जागरण में बतौर प्रशिक्षु नियुक्त हुआ था, सुनील जी तब वहाँ संवाददाता थे और रोज़ उनकी बाई-लाइन होती। एक ट्रेनी के लिए यह बहुत विस्मयकारी होता! और अच्छा भी लगता कि इन लोगों के साथ मैं भी काम करता हूँ। लेकिन दैनिक जागरण में अपनी पारी बहुत छोटी थी।
1983 में मैं दिल्ली आ गया, जनसत्ता में। परंतु सुनील जी याद आते रहे। बाद में वे दैनिक जागरण के गोरखपुर संस्करण में प्रभारी रहे और उसके बाद वे हिंदुस्तान के पटना तथा लखनऊ संस्करण के संपादक भी रहे। बीच में वे दिल्ली आए। तब वे नोएडा के जलवायु विहार में रहते थे। जब मैं कानपुर में अमर उजाला का संपादक था, तब हफ़्ते में एक दिन लखनऊ स्थित ब्यूरो ऑफ़िस में भी जाकर बैठता।
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वरिष्ठ पत्रकार आकु श्रीवास्तव
सुनील दुबे चले गए। मैंने उनके साथ काम नहीं किया। हां, मैंने पटना में बिहार प्रमुख का काम सुनील जी से ही संभाला था। वो सेवानिवृत्त हो रहे थे। उनके साथ कई कहानियां , किस्से सुनाने वाले आते थे, जिनमें मेरी कोई रूचि न देख वो वापस चले जाते थे. लेकिन उनका सहज भाव आपको आकर्षित करने के लिए पर्याप्त था। किसी को ना वो बहुत कम कहते थे न बहुत ज्यादा। आजकल की ठेकेदारी की व्यवस्था में सहजता कम देखने को मिलती है। उन्हें नमन।
ओम तिवारी
बांदा के लाल और यशस्वी संपादक सुनील दुबे जी का लखनऊ में निधन हो गया। दैनिक जागरण में अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़ने के बाद लखनऊ में राष्ट्रीय सहारा और हिंदुस्तान जैसे अखबारों को लांच करने का श्रेय उन्हें ही हासिल है। अनेक पत्रकारीय उपलब्धियां उनके खाते में जमा हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को चरणों में स्थान देकर परिवार को यह आघात सहने की शक्ति दें।
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संतोष लखेरा
माननीय दुबे जी के सानिध्य में हमें भी कार्य करने का अवसर मिला उनके निधन की खबर से हमें बहुत दुख हुआ है क्योंकि हम उनसे बांदा की वजह से भी जुड़े थे भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें
वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडे
दुबे जी का निधन मेरी निजी क्षति है ।दशकों की मित्रता और आत्मिक रिश्ते पर असमय विराम लग गया।
डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर
विनम्र श्रद्धाञ्जलि। दिवंगत आत्मा को सद्गति प्राप्त हो। 'राष्ट्रीय सहारा' की शुरुआत से ही वे मेरे सम्पादक रहे। उनसे जुड़ी अनेक स्मृति हैं। इस समय भावुकतावश उनको शब्दबद्ध करने में असहज हूँ। शत्-शत् नमन।
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दिनेश पाठक
यह मेरी निजी क्षति है। दुबे सर मेरे पहले संपादक रहे हैं। उनकी अनेक यादें मेरे जेहन में हैं। सादर नमन।
अनूप श्रीवास्तव
हिंदुस्तान के पूर्व सम्पादक सुनील दुबे के असामयिक निधन पर मर्माहत हूं। मैने अपना एक घनिष्ठ मित्र खोया । मेरे पड़ोसी भी थे। जाने कितनी स्मृतियां जुड़ी हैं उनके साथ की। विनम्र श्रद्धांजलि ! इस तरह से अनगिनत लोगों की श्रद्धांजलि सुनील दुबे के लिए आ रही हैं जो कि आज पंच तत्व में विलीन होकर अमर हो गए।
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