Sonbhadra News: दुष्कर्म मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, चश्मदीद बताए गए व्यक्तियों के इंकार के बाद नहीं चल सकती अदालती कार्रवाई
Sonbhadra News: अधिवक्ता अनिल कुमार मिश्रा के जरिए दाखिल किए गए क्रिमिनल अपील में आरोपी की तरफ से दावा किया गया था कि पीड़िता लगभग 40 वर्ष की एक विवाहित महिला है और उसने महज, आरोपी के भाई के कहने पर, उसे झूठे केस में फंसाया है।
Sonbhadra News: घोरावल कोतवाली क्षेत्र से जुडे़ दुष्कर्म के चर्चित मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। बेंच की तरफ से की गई सुनवाई और पारित किए गए निर्णय में माना गया है कि पीड़िता की तरफ से बताए गए चश्मदीदों की तरफ से घटना के इंकार और इसके आधार पर पुलिस की फाइनल रिपोर्ट के बाद, आरोपियों के खिलाफ तलबी आदेश जारी किया जाना उचित नहीं है। इसको दृष्टिगत रखते हुए जिले की न्यायालय के तरफ से जारी किए गए तलबी आदेश को हाईकोर्ट की तरफ से निरस्त कर दिया गया है।
अपीलार्थी के यह तर्क और तथ्य बने फैसले के बड़े आधार
अधिवक्ता अनिल कुमार मिश्रा के जरिए दाखिल किए गए क्रिमिनल अपील में आरोपी की तरफ से दावा किया गया था कि पीड़िता लगभग 40 वर्ष की एक विवाहित महिला है और उसने महज, आरोपी के भाई के कहने पर, उसे झूठे केस में फंसाया है। आरोप लगाया गया था कि संपत्ति विवाद के चलते भाई ने ही भाई के खिलाफ यह साजिश रची थी। जो घटना दिनांक अंकित है, उससे ढाई महीने देर से एफआईआर भी दर्ज कराई गई। पीड़िता के चिकित्सकीय परीक्षण में दुष्कर्म से संबंधित चोटों का उल्लेख न होना, कॉल डिटेल रिपोर्ट में कोई विशेष संकेत न मिलना, गवाहों द्वारा आरोपों का समर्थन न किया जाने जैसे तथ्यों को अपील का आधार बनाया गया था।
जिन्हें बताया गया था चश्मदीद, उन्होंने घटना से किया इंकार
न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की बेंच ने गत 23 सितंबर को मामले की फाइनल सुनवाई की। इस दौरान आरोपी पक्ष से अधिवक्ता अनिल मिश्र और अभियोजन पक्ष से स्टैंडिंग काउंसिल की तरफ से जरूरी तथ्य बेंच के सामने रखे गए। अभियोजन पक्ष का तर्क था कि दुष्कर्म जैसे मामले में पीड़िता की गवाही स्वयं में एक बड़ा आधार मानी जाती है। बेंच ने प्रकरण के परिशीलन के दौरान पाया कि दुष्कर्म के मामले में यह सामान्य अवधारणा है कि यह अपराध ऐसे यानी सुनसान जगहों पर होता है जिसको लेकर पीड़िता ही सही जानकारी दे सकती है लेकिन इस मामले में पीड़िता ने जिन दो चश्मदीदों द्वारा घटना को देखे जाने का दावा करते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी, उन दोनों साक्षियों ने ऐसी घटना होने से इंकार किया है। भाईयों के बीच विवाद का भी मसला सामने आया है।
उचित तर्क के साथ ही जारी होना चाहिए तलबी आदेश
बेंच ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 191(बी) के तहत अपीलकर्ता को तलब करने के आदेश के साथ उचित तर्क भी होना चाहिए था लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। कानून की दृष्टि से चार जुलाई 2023 का तलबी आदेश उचित नहीं है। अधिवक्ता अनिल कुमार मिश्रा ने बताया कि उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए हाईकोर्ट की तरफ से विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी/पास्को के यहां से चार जुलाई 2023 को जारी आदेश रद्द कर दिया गया है और अपील स्वीकार कर ली गई है।