पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: राजनीतिक दल अपने-अपने वोटबैंक की बुनियाद पर ही भविष्य का मास्टर प्लॉन तैयार करते हैं। सपा और बसपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणामों और मिले वोटों के बुनियाद पर ही गठबंधन की इमारत तैयार की है। वहीं भाजपा सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद प्रदर्शन दोहराने को लेकर ताल ठोक रही है। सर्वविदित है कि सियासत में दो और दो का जोड़ चार नहीं होता है। लिहाजा, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों से 2019 चुनाव का कयास लगाना खतरे से खाली नहीं है।
सपा-बसपा के गठबंधन, कांग्रेस की एकला चलो की नीति, पूर्वांचल में योगी के तिलिस्म के बीच छोटे दलों के तेवरों को देखते हुए राजनीतिक पंडित किसी भी भविष्यवाणी से बच कर रहे हैं। हालांकि योगी के गढ़ की सियासी पिच पर मजबूत फील्डिंग को लेकर राजनीतिक दल कसर नहीं छोडऩा चाहते हैं। इसीलिये अधिसूचना जारी होने से पहले ही सभी राजनीतिक दल योगी के गढ़ में दम दिखाने को बेचैन हैं।
गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के उपचुनाव में गठबंधन के परिणाम देखकर अखिलेश यादव और मायावती न सिर्फ उत्साहित हैं, बल्कि इसी आधार पर दोनों ने 2019 के लोकसभा चुनाव लडऩे का ब्लूप्रिंट तैयार किया है। अब सवाल यह कि क्या उपचुनाव में जीत की बाजी अपने हक में करने वाला गठबंधन आम चुनाव में भी ऐसा कर सकेगा। राजनीतिक दल अपने-अपने मुताबिक इसका जवाब दे रहे हैं। लेकिन हकीकत की जमीन पर सबकुछ वैसा सुनहरा नहीं है, जैसा की सूबे के दो मजबूत दल उम्मीद कर रहे हैं।
सामान्य गणित के आधार पर देखें तो 2014 में सपा और बसपा को मिले वोटों को जोड़ दें तो गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 लोकसभा सीटों में से 6 सीटों पर भाजपा को बढ़त मिलती दिख रही है। सिर्फ तीन सीटें ही गठबंधन के खाते में जाती दिख रही हैं। अहम सवाल यह है कि क्या वोटिंग को लेकर पुराना ट्रेंड ही होगा? क्या मोदी का वैसा जादू कायम है, जो पांच साल पहले था? इन सवालों का जवाब परिणामों से ही मिलना है। हालांकि यह कहने में शायद ही किसी को संदेह हो कि भाजपा के लिए परिस्थितियां उतनी अनुकूल नहीं हैं जैसी पांच साल पहले थी। वहीं बसपा-सपा के सामने भाजपा के साथ ही कांग्रेस और शिवपाल यादव की पार्टी की चुनौती है।
गठबंधन के टिकट के लिए मारामारी
वोट बैंक की गणित को देखें तो जमीन पर सबसे मजबूत सपा-बसपा गठबंधन ही दिख रहा है। सपा-बसपा के पारम्परिक वोट बैंक यादव, दलित और मुसलमान एक हुए तो भाजपा को मुश्किल होगी। गोरखपुर में हुए उपचुनाव में सपा के प्रवीण निषाद ने भाजपा के उपेन्द्र दत्त शुक्ला को हराकर 2019 के गठबंधन की नींव तैयार की थी। यहां से एक बार फिर प्रवीण निषाद को मजबूत दावेदार माना जा रहा है। हालांकि पूर्व मंत्री जमुना निषाद के पुत्र अमरेन्द्र निषाद भी गठबंधन उम्मीदवार होने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। यह सीट भाजपा के साथ ही योगी के लिए प्रतिष्ठा की सीट है।
बांसगांव लोकसभा सीट से बसपा के सदल प्रसाद को मजबूत दावेदार माना जा रहा है। महराजगंज में गठबंधन उम्मीदवारी के लिए बसपा के गणेश शंकर पांडेय, काशीनाथ शुक्ला और सपा के पूर्व सांसद कुंवर अखिलेश सिंह के बीच जोरआजमाइश चल रही है। देवरिया में बसपा के नियाज अहमद और सपा के बालेश्वर यादव खुद को दूसरे से मजबूत बताने में जुटे हुए हैं।
सलेमपुर में बसपा के टिकट पर रविशंकर सिंह को मजबूत माना जा रहा है। वहीं कुशीनगर में बसपा के डॉ.संगम मिश्रा और सपा सरकार में पूर्व मंत्री रहे राधेश्याम सिंह एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। बस्ती में सपा सरकार में पूर्व मंत्री रहे राजकिशोर सिंह पुराने गिले-शिकवे दूर कर अखिलेश यादव से करीबी बढ़ा रहे हैं, हालांकि बसपा के रामप्रसाद चौधरी भी जातिगत आधार पर जीत का दावा कर रहे हैं। डुमरियागंज में वोटों का गणित गठबंधन उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करता दिख रहा है। यहां से बसपा के मुकीम, आफताब आलम, पीस पार्टी के मोहम्मद अयूब गठबंधन उम्मीदवार की दावेदारी कर रहे हैं।
भाजपा बदल सकती है पुराने चेहरे
गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ सीटों पर योगी आदित्यनाथ को छोड़ दें तो सभी को मोदी लहर का जबर्दस्त फायदा मिला था। पांच साल का कार्यकाल पूरा होते-होते सभी के खिलाफ गुस्सा साफ दिख रहा है। गोरखपुर में चुनाव कोई भी लड़े चेहरा योगी आदित्यनाथ ही होंगे। योगी की कार्यशैली और गोरखपुर में चल रहे तूफानी विकास कार्यों से उनके प्रति शायद ही किसी को संदेह हो। उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ की जगह पार्टी ने उपेन्द्र दत्त शुक्ला को उतारा था। पिछले अनुभव से सबक लेते हुए पार्टी यहां उम्मीदवार बदल दे तो कोई अचरज नहीं होगा। यहां से नये चेहरे को लेकर चर्चाएं है। वहीं बांसगांव में पिछले चुनाव के आकड़े के मुताबिक बसपा और सपा के वोट को मिला दें तो भी भाजपा आगे थी। इस बार कमलेश पासवान को लेकर गुस्सा है।
कमलेश पासवान के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी के मुकदमों से लेकर क्षेत्र में गैर हाजिरी से संकेत मिलता है कि भाजपा उनका विकल्प तलाश सकती है। वहीं देवरिया में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कलराज मिश्रा का बदला जाना तय माना जा रहा है।
पत्रकारिता छोडक़र भगवा चोला पहनने वाले शलभ मणि त्रिपाठी पिछले 30 महीने से सक्रिय हैं, लेकिन ऐन मौके पर नया चेहरा सामने आ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। सलेमपुर की सीट भाजपा गठबंधन के साथी को दे सकती है। कुशीनगर में सांसद राजेश पांडेय अंतिम दिनों में मोदी मैजिक के सहारे दिग्गज आरपीएन सिंह को हराने में सफल हुए थे, लेकिन क्षेत्र में उनके प्रति गुस्से को आसानी से देखा जा सकता है।
वहीं महराजगंज में पांच बार के सांसद पंकज चौधरी के खिलाफ गुस्से का फायदा उनके विरोधी और सिसवा विधायक प्रेम सागर पटेल उठाने को तैयार दिख रहे हैं। यहां से भाजपा किसी युवा चेहरे पर दांव खेल ले तो भी आश्चर्य नहीं होगा। डुमरियागंज से सांसद जगदम्बिका पाल को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। चर्चा उठती रही है कि वह सपा-बसपा गठबंधन से भी नजदीकी बढ़ा रहे हैं। पाल की पलटीमार शैली को देखते हुए भाजपा दोबारा कितना भरोसा करती है, देखना दिलचस्प होगा। बस्ती में हरीश द्विवेदी और संतकबीर नगर में शरद त्रिपाठी को मोदी-अमित शाह टीम का करीबी माना जाता है, ऐसे में किसी बदलाव की संभावना कम ही दिख रही है।
पुराने दिग्गज और बागियों के भरोसे कांग्रेस
गोरखपुर-बस्ती मंडल में कुशीनगर और देवरिया को छोडक़र किसी भी सीट से मजबूत चेहरा फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। कुशीनगर में कुंवर आरपीएन सिंह और देवरिया से अखिलेश प्रताप सिंह का चुनाव लडऩा तय माना जा रहा है। वहीं शेष अन्य सात सीटों पर कांग्रेस या तो कर्मठी कार्यकर्ताओं या फिर बागियों के भरोसे हैं। महराजगंज में गठबंधन से बसपा के गणेश शंकर पांडेय का चुनाव लडऩा तय हैं। ऐसे में पूर्व सांसद अखिलेश सिंह जीत के लिए अपने अनुज कुंवर कौशल किशोर सिंह उर्फ मुन्ना की तर्ज पर कांग्रेस का हाथ थाम लें तो आश्चर्य नहीं होगा। वहीं देवरिया में टिकट नहीं मिलने पर पूर्व सांसद बालेश्वर यादव, संतकबीर नगर में पूर्व सांसद भालचंद यादव, पूर्व सांसद भीष्म शंकर त्रिपाठी उर्फ कुशल तिवारी जैसे दिग्गज भी कांग्रेसी हाथ थाम सकते हैं।
गोरखपुर-बस्ती मंडल में योगी की प्रतिष्ठा दांव पर
गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 सीटें दिग्गजों की प्रतिष्ठा से जुड़ी हैं। सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दांव पर लगी है जिन्हें साबित करना है कि गोरखपुर उपचुनाव का परिणाम महज संयोग था। उनके सामने पांच साल पहले का प्रदर्शन दुहराते हुए सभी 9 सीटें जीतने की चुनौती है। वहीं केन्द्रीय राजनीति में खुद को मजबूत साबित करने के लिए कांग्रेसी दिग्गज कुंवर आरपीएन सिंह और अखिलेश सिंह को भी अपनी दमदारी दिखानी है। प्रदेश में पांव पसारने की कवायद में जुटी निषाद पार्टी के कर्ताधर्ताओं को साबित करना है कि वह घर में काफी मजबूत हैं।
पूर्वांचल की इन 9 सीटों को लेकर प्रदेश की दो प्रमुख दलों की चिंता का अंदाजा इसी से हो जाता है कि अधिसूचना से पहले ही पीएम नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की जनसभा प्रस्तावित हो रही है। नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी की गोरखपुर में जनसभाएं फरवरी महीने में प्रस्तावित हैं। शायद ही कोई पखवाड़ा हो जब योगी ने गोरखपुर में शिलान्यास-लोकार्पण न किया हो। सपा और बसपा के नेताओं ने बहन मायावती के जन्मदिन पर ताकत दिखाकर तैयारी को लेकर संदेश देने की कोशिश की। योगी कहते हैं कि भाजपा सरकार के विकास कार्यों से बने माहौल की बेचैनी का परिणाम है, बेमेल गठबंधन। इनकी पोल चुनाव परिणामों से खुल जाएगी।
भाजपा 2014 से बेहतर प्रदर्शन करने जा रही है। कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार उर्फ लल्लू का कहना है कि कांग्रेस के पास अब खेलने के लिए खुला मैदान है। सपा-बसपा को मुगालते में नहीं रहना चाहिए। यह चुनाव केन्द्र की सरकार के लिए हो रहा है न कि प्रदेश के लिए। कांग्रेस गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 में से 4 सीटें जीतने जा रही है। वहीं गोरखपुर-बस्ती मंडल के बसपा के इकलौते विधायक विनय शंकर तिवारी का कहना है कि प्रदेश में गठबंधन के बाद मोदी से तेज लहर चल रही है। प्रदेश में तो गठबंधन शानदार प्रदर्शन करेगा ही, गोरखपुर-बस्ती मंडल की सभी नौ सीटें हम जीतने जा रहे हैं।