चौथी क्लास तक पढ़ीं है ये लेडी,गूगल से पहले देती है जवाब, 55 की उम्र में करना चाहती है पीएचडी
जालंधर: कहते है सीखने और पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। जब चाहें तभी से इसकी शुरुआत की जा सकती है। इस उदाहरण को पटियाला जिले के गांव सालूवाल की कुलवंत कौर ने सच साबित कर दिखाया है। वह 55 साल की हैं और मात्र चौथी तक पढ़ाई की है, लेकिन दिमाग कंप्यूटर की तरह दौड़ता है। उनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण लोगों ने उनको 'गूगल बेबे' का नाम दे दिया है।
newstrack.com आपको कुलवंत कौर की अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बता रहा है।
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गूगल से भी पहले देती है जवाब
कुलवंत कौर की उम्र 55 साल है'। उन्होंने चौथी क्लास तक पढ़ाई की है लेकिन उनकी सीखने और पढ़ने की इच्छा इस उम्र में भी समाप्त नहीं हुई है। वह खाली वक्त में अभी भी पढ़ती रहती है। वह भारतीय व सिख इतिहास और धर्मो से जुड़े लगभग हर सवाल का जवाब गूगल से भी पहले दे देती हैं। इसी के कारण उनका नाम पड़ गया है 'गूगल बेबे'।
अब करना चाहती है पीएचडी
जुनून व जज्बा हो तो पढ़ाई के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। इस बात को सिद्ध करते हुए 'गूगल बेबे' पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर धर्म अध्ययन विभाग में रिफ्रेशर कोर्स शुरू करेंगी। इसके लिए सरबत दा भला ट्रस्ट के एसपी सिंह ओबराय ने उनकी बात यूनिवर्सिटी के अधिकारियों से करवाई तो उनके प्रश्नों के उत्तर कुलवंत कौर ने तुरंत देकर उन्हें भी प्रभावित कर दिया। फिर उनको दाखिला मिल गया। वह कहती हैं कि मौका मिला तो इसी विषय में पीएचडी भी करूंगी।
ऐसे बन गई गूगल बेबे
कुलवंत कौर ने बताया कि उनके पिता प्रीतम सिंह इंजीनियर थे और काम के सिलसिले में आगरा में बस गए थे। वहीं उनका जन्म हुआ और चौथी तक की शिक्षा ग्रहण की। पिता से अनेक ऐतिहासिक व धार्मिक कहानियां सुनीं। वे सभी जेहन में बैठ गईं तथा उनके बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा कभी शांत नहीं हुई। फिर पारिवारिक परेशानियों व जमीनी झगड़े के कारण परिवार को पंजाब में अपने गांव लौटना पड़ा। लेकिन उसने पढ़ना नहीं छोड़ा। इस तरह उनकी नालेज बढ़ती गई। इतिहास और धर्म से जुड़े किसी भी सवालों के फौरन जवाब देने के कारण लोगों ने उन्हें गूगल बेबे का नाम दे दिया।
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स्कूल छूट गया लेकिन पढना नहीं
वह कहती हैं स्कूल तो छूट गया, 'मैंने पढ़ना नहीं छोड़ा। इसके बाद जहां भी, जिसके पास भी, मुझे कोई पुस्तक मिलती कुछ समय के लिए उससे लेकर पढ़ने लगती। पढ़ने के बाद मैं लौटा देती थी।' कुलवंत ने बताया कि उनकी रुचि इतिहास व धर्म में ही रही। एक बार जिस पुस्तक को पढ़ा वह फिर भूली नहीं।
सब फीड रहता है दिमाग में
कुलवंत कौर ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया, हिस्ट्री ऑफ पंजाब सहित विभिन्न धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया है। भारत में आर्यों के आने से लेकर महमूद गजनी के 17 हमलों, अलाउद्दीन खिलजी, सिकंदर- पोरस, चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक सम्राट सहित महाराजा रणजीत सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढ़िया आदि राजा महाराजाओं की कहानियां ही नहीं उनके परिवारों की विस्तृत जानकारी भी उनके दिमाग में कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की तरह फीड है।
जब जागो तभी सवेरा
वह कहती हैं, 'बचपन में परिवार के हालात ऐसे हो गए कि हम पांच बहनों व तीन भाइयों में से केवल बड़े भाई व एक बहन ही आगरा में पढ़ पाए थे। शादी के बाद पति का प्रोत्साहन नहीं मिला। दिशा वुमन वेलफेयर ट्रस्ट की हरदीप कौर ने हुनर को पहचान दिलाई तो दुनिया ही बदल गई। मेरी आज भी पढ़ने में रुचि है और आगे पढ़कर अपने ज्ञान में वृद्धि करना चाहती हूं। मेरा बेटा जगजीत सिंह, बेटी मनप्रीत कौर सपोर्ट करते हैं। पति निर्मल सिंह अब दुनिया में नहीं हैं।