सरकार के खिलाफ किसानों में गुस्सा, सुलग रही आंदोलन की चिंगारी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को सबसे ज़्यादा प्रभावित गन्ना करता है। बावजूद इसके सालों से यहां गन्ना किसानों की समस्या यही रही है कि चीनी मिलें उनका गन्ना लेकर साल साल भर तक पैसा नहीं देतीं।
मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को सबसे ज़्यादा प्रभावित गन्ना करता है। बावजूद इसके सालों से यहां गन्ना किसानों की समस्या यही रही है कि चीनी मिलें उनका गन्ना लेकर साल साल भर तक पैसा नहीं देतीं। 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वादा किया था कि सत्ता में आए तो दो हफ्ते में गन्ने का भुगतान करवाया जाएगा। लेकिन मेरठ समेत पश्चिमी उप्र के किसानों को पिछले पेराई सत्र का गन्ने का पैसा अभी तक नहीं मिला है।
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एक मोटे अंदाज़े के मुताबिक पश्चिमी उप्र में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर 3343 करोड़ रुपया बकाया है। दूसरी ओर प्रदेश सरकार, गन्ना क्षेत्रफल, रिकवरी, उत्पादन, बकाया भुगतान, एथेनाल और चीनी उत्पादन में देश में नंबर एक बनने को बड़ी उपलब्धि बता रही है। ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना बकाया भुगतान को लेकर आंदोलन की नई पटकथा लिखी जा रही है। जानकारों का कहना है कि कृषि कानून की आड़ में चल रही किसान सियासत का पारा आगामी चुनावों तक चढ़ता रहेगा।
गन्ने पर सियासत
पश्चिमी उप्र में 55 से ज्यादा चीनी मिलें हैं। तकरीबन सभी जिलों में गन्ना प्रमुख फसल है, और किसानों की विकास यात्रा गन्ने पर निर्भर करती है। गन्ना ही पश्चिमी उप्र में सियासत का आधार भी रहा है। यही वजह रही कि तीन कृषि कानून और गन्ना बकाया भुगतान को लेकर भारतीय किसान यूनियन ने 25 सितंबर को किसान कफ्र्यू के नाम से प्रदेश में विरोध प्रदर्शन किया था। मेरठ मंडल की बात करें तो यहां गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर करीब 1339 करोड़ रुपये बकाया है। गन्ना विभाग के आंकड़ों के अनुसार मंडल की 16 शुगर मिलों में से केवल दौराला मिल ने ही शत-प्रतिशत भुगतान किया है। जबकि मलकपुर, मोदी नगर, सिंभावली और बृजनाथपुर मिल ने सबसे कम भुगतान किया है।
पांच मिलों पर 387 करोड़ बकाया
मेरठ जिले की पांच शुगर मिलों पर करीब 387 करोड़ रुपये बकाया है। सहारनपुर मंडल की 17 शुगरमिलों में से केवल मुजफ्फरनगर की टिकौला मिल ने ही पूरा भुगतान किया है। 16 शुगर मिलों पर अभी भी 1,050 करोड़ रुपये बकाया है। यहां सबसे कम भुगतान करने वाली मिलों में शामली, गागनौली और तितावी मिल शामिल हैं। पश्चिमी उप्र की ही मुरादाबाद मंडल की 22 शुगर मिलों पर किसानों का 954 करोड़ रुपये बकाया है। बिजनौर जनपद की 9 मिलों पर 498 करोड़ बकाया बताया जा रहा है।
नियम की कोई परवाह नहीं
नियम यह कहता है कि किसानों को 14 दिनों के अंदर पैसे मिल जाने चाहिए। गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत चीनी मिलों को किसानों को गन्ने की आपूर्ति के 14 दिन के भीतर गन्ने का भुगतान करना होता है। और अगर मिलें ऐसा करने में विफल रहती हैं तो उन्हें विलंब से भुगतान पर 15 फीसदी सालाना ब्याज भी देना पड़ता है। ऐसे में क्षेत्र के किसान पूर्ण भुगतान की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार ने चीनी मिलों से किसानों के बकाए का चार्ट मांगा है। सरकार का दावा है कि गन्ना किसानों को 80 फीसद पैसा दिया जा चुका है।
गन्ने पर निर्भर किसान
पश्चिमी यूपी में 55 से ज्यादा चीनी मिलें हैं। तकरीबन सभी जिलों में गन्ना प्रमुख फसल है, और किसानों की विकास यात्रा गन्ने पर निर्भर करती है। गन्ना ही पश्चिमी उप्र में सियासत का आधार भी रहा है। यही वजह रही कि तीन कृषि कानून और गन्ना बकाया भुगतान को लेकर भारतीय किसान यूनियन ने 25 सितंबर को किसान कर्फ्यू के नाम से प्रदेश में विरोध प्रदर्शन किया था। 2017 में योगी सरकार आई तो गन्ना क्षेत्र के सुरेश राणा उप्र के गन्ना विकास मंत्री बनाए गए। तब प्रदेश सरकार ने 14 दिनों के भीतर गन्ना बकाया भुगतान का दावा किया, हालांकि ज्यादातर चीनी मिलें इस मानक पर खरी नहीं उतर सकीं।
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पश्चिमी उप्र में गन्ना किसान, और उसके इर्द-गिर्द घूमती राजनीति को समझ केंद्र सरकार ने भी गन्ना किसानों की नब्ज को बखूबी पकड़ा, और राहत पैकेज दिया। प्रदेश सरकार ने किसानों को साधने के लिए गन्ने पर खास फोकस किया। सन 2017 से अब तक पश्चिमी उप्र में चंदौसी की वीनस, सहारनपुर की दया और बुलंदशहर की वेब चीनी मिलों को दोबारा से शुरू किया गया। रमाला में नई मिल लगाई गई, साथ ही मेरठ की मोहिउदीनपुर चीनी मिल की क्षमता को दोगुना किया गया। दर्जनों निजी चीनी मिलों की भी सेहत सुधारी गई, लेकिन सरकार किसानों को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाई। मुख्यमंत्री योगी के स्पष्ट निर्देश के बावजूद चीनी मिलों ने भुगतान में ढिलाई बरती।
पिछले सत्र का भुगतान नहीं हुआ
भारतीय किसान यूनियन अध्यक्ष नरेश टिकैत कहते हैं,प्रधानमंत्री मोदी डिजिटल इंडिया की बात करते हैं। ऐसे में मिल पर गन्ना गिरते ही भुगतान मिल जाना चाहिए, लेकिन अभी तक पिछले सत्र का ही भुगतान नहीं हुआ है। सरकारों के रवैये से किसान तंग हो गया है। सरकार को बकाए धन पर ब्याज देना होगा। गन्ना मूल्य प्रति कुंतल 450 रुपये की मांग है, जबकि यह सिर्फ सवा तीन सौ रुपये के आसपास है। गन्ना कमिश्नरों से ब्याज माफ करने पर अधिकार वापस लिया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय लोकदल के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मैराजुउद्दीन कहते हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कृषि अर्थ व्यवस्था गन्ने परनिर्भर करती है। पिछले सत्र में मेरठ,सहारनपुरऔर मुरादाबाद मंडल के किसानों ने शुगर मिलों को 12,382 करोड़ रुपये गन्ने की आपूर्ति की थी। शुगरमिलों ने अभी तक 9,039 करोड़ रुपयों का भुगतान किस्तों में किया है। वे कहते हैं कि गन्ने का बकाया भुगतान एक साल बाद ही मिल पा रहा है। इससे किसान के सामने परिवार चलाने के साथ ही अगली फसल की तैयारी का भी संकट बन जाता है। सरकार को चाहिए कि चीनी मिलों पर भुगतान के लिए सख्ती करे।
रोज हो रहा भुगतान
बकाये के भुगतान को लेकर उत्तर प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा कहते हैं कि मिलों में रोज का रोज भुगतान हो रहा है। योगी सरकार ने कोरोनाकाल में भी चीनी मिलों का संचालन किया। राणा का दावा है कि उत्तर प्रदेश आज चीनी व एथेनाल उत्पादन एवं गन्ना रकबा में महाराष्ट्र को भी पीछे छोड़ चुका है। प्रदेश सरकार ने बीमार मिलों को चलाया, क्षमता विस्तार कर मिलों का कायाकल्प किया।
किसानों को पिछले साल का पूर्ण गन्ना बकाया भुगतान किया जा चुका है, जबकि गुजरे सत्र का 80 फीसदी भुगतान कर दिया गया है। किसान यानी अन्नदाता मोदी और योगी सरकार की प्राथमिकता में हैं। 35.4 हजार करोड़ में से 28 हजार करोड़ का भुगतान हो चुका है, जल्द ही शेष बकाया भी चुका दिया जाएगा। बसपा ने 21 मिलों को बेचा, 19 बंद की गईं, सपा ने दस मिलों को बंद किया, जबकि योगी सरकार ने दो दर्जन से ज्यादा मिलों का कायाकल्प किया।
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चीनी उत्पादन में यूपी टॉप पर
चीनी उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे है। प्रदेश में 50 लाख से अधिक किसान परिवार गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2019-20 में 26.79 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की खेती हुई और वर्तमान पेराई सत्र में 117 चीनी मिल संचालित हैं। प्रदेश में चीनी का उद्योग करीब 40 हजार करोड़ रुपयों का है। गौरतलब है कि गन्ने की पत्तियां ईंधन के काम आती हैं तो पेराई के बाद इसकी खोई भी ईंट भट्ठा, कोल्हू समेत कई जगहों पर ईंधन के काम आती है। गन्ने के रस से गुड़, चीनी, एथेनाल, शीरा आदि तमाम चीजें बनाई जाती हैं। गन्ना ऐसी फसल है जिसका सौ फीसदी हिस्सा इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि परेशानियों के बावजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना फसल का मोह किसान नहीं छोड़ पाते हैं।
सुशील कुमार