गन्ने का दाम जहां का तहां, बाकी सब कहां से कहां
प्रियंका गांधी पंचायत में किसानों से यह भी पूछती हैं, "क्या आपको पता है यपी के किसानों के 10 हजार करोड़ बाकाया हैं और पूरे देश से किसानों के 15 हजार करोड़ रुपए (31 जनवरी 2021 तक बकाया 16,883 करोड़ रुपए) बकाया हैं?
मेरठ: गन्ने का दाम न बढ़ाने के योगी सरकार के कदम ने पश्चिमी यूपी का राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है। पश्चिमी यूपी जहां की सियासत का मुख्य आधार ही गन्ना है वहां प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की पेराई सत्र 2020-21 के लिए गन्ना मूल्य की घोषणा ने आग में घी डालने का काम काम किया है। ध्यान देने वाली बात ये है कि एक तरफ सरकार ने गन्ने का खरीद मूल्य नहीं बढ़ाया है और वहीं दूसरी तरफ गन्ना किसानों के हजारों करोड़ रुपये मिल मालिकों के पास बकाया हैं।
दरअसल योगी सरकार ने ये फैसला ऐसे समय में लिया है जबकि दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर हजारों किसान मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे हैं, इसमें बड़ी संख्या गन्ना किसानों की ही है। ये किसान यूपी सरकार के कदम से और भड़के हुए हैं।
किसानों की उम्मीदों पर झटका
वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का दावा करने वाली भाजपा की योगी सरकार ने मार्च 2017 में सत्ता में आने के बाद पहले साल सत्र 2017-18 में गन्ने के राज्य परामर्शी मूल्य (एसएपी) में 10 रुपये की वृद्धि की थी। तब अस्वीकृत, सामान्य व अगेती प्रजाति के लिए क्रमश: 310, 315 और 325 रुपये प्रति क्विंटल मूल्य घोषित किया था। गन्ना पेराई सत्र 2018-19 और 2019-20 में भी राज्य परामर्शी मूल्य यथावत रहा। वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक आने के बावजूद इस बार पेराई सीजन 2020-21 के लिए गन्ना मूल्य यथावत रहने से किसानों की उम्मीदों पर झटका लगा है।
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चालू पेराई सत्र में 1843 करोड़ रुपया बकाया
दरअसल, किसानों को उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होने के चलते गन्ना रेट में बढ़ोतरी की पूरी उम्मीद थी। इतना ही नहीं भाजपा में किसानों की राजनीति करने वाले नेताओं ने भी सरकार से गन्ना रेट में कम से कम 20 रुपये बढ़ोतरी की अपील की थी। गन्ना शोध संस्थान ने भी पिछले साल के मुकाबले गन्ना उत्पादन लागत में 10 रुपये की वृद्धि होने की रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन योगी सरकार ने इन सभी को दरकिनार कर दिया।
हर साल डीजल, यूरिया, डीएपी, बीज, कीटनाशक, बिजली, मजदूरी के रेट बढ़ने से गन्ना उत्पादन लागत तो बढ़ रही है, लेकिन तीन साल से गन्ना रेट नहीं बढ़ सका है। इसके साथ ही किसानों को समय पर गन्ना मूल्य भुगतान भी नहीं किया जा रहा है। अकेले मेरठ मंडल मे गत वर्ष का ही 395 करोड़ रुपया मिलों पर बकाया चल रहा है। वहीं, चालू पेराई सत्र में 1843 करोड़ रुपया बकाया हो चुका है।
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विपक्ष को थमा दिया मुद्दा
इस तरह गन्ने का दाम न बढ़ाकर योगी सरकार ने विपक्ष को जो कि पहले ही नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में सड़कों पर है लगे हाथों एक और मुद्दा थमा दिया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पार्टी द्वारा आयोजित किसान पंचायतों में अब भाजपा को गन्ना मूल्यों के सवाल पर भी घेरने लगी है। इस सवाल पर उन्हें किसानों की तरफ से खासा अच्छा रिस्पांस मिल भी रहा है। जैसा कि पिछले दिनों बिजनौर के जिले के चांदपुर में आयोजित किसान पंचायत में प्रियंका गांधी ने जब लोगों से ये सवाल पूछा कि ... आपकी कमाई दोगुनी हुई क्या? क्या गन्ने का दाम 2017 से बढ़ा है? तो सामने बैठी भीड़ से जोर-जोर से नहीं... नहीं... की आवाज़ें आती रहीं।
प्रियंका गांधी पंचायत में किसानों से यह भी पूछती हैं, "क्या आपको पता है यपी के किसानों के 10 हजार करोड़ बाकाया हैं और पूरे देश से किसानों के 15 हजार करोड़ रुपए (31 जनवरी 2021 तक बकाया 16,883 करोड़ रुपए) बकाया हैं? ये ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो आपके बकाए नहीं दिलावाये और अपने विदेश भ्रमण के लिए 16 हजार करोड़ रुपए के हवाई जहाज़ खरीदे हैं जबकि 15 हजार करोड़ में वो एक-एक किसान का बकाया दिला सकते थे।" कांग्रेस पार्टी ने 22 फरवरी को यूपी में बजट के दिन विधानसभा में सरकार को घेरने का ऐलान भी किया है।
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जयंत चौधरी भी गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाने पर सरकार पर निशाना साध रहे
पश्चिमी यूपी की राजनीति में गहरा दखल रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी भी पार्टी द्वारा आयोजित किसान पंचायतों में गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाने पर सरकार पर निशाना साध रहे है। वे कहते हैं, इस वर्ष भी गन्ना समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी न करके योगी सरकार ने किसानों की कमर तोड़ दी है। डीजल, यूरिया, खाद और बिजली के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। जबकि भाजपा तीन साल में भी गन्ना मूल्य नहीं बढ़ा पाई है। आज उत्तर प्रदेश के किसानों का 10,174 करोड़ रुपये बकाया है।
रालोद के राष्ट्रीय महा सचिव एवं पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मैराजुउद्दीन अहमद यह कह कर भाजपा सरकार पर वार करते हैं कि भाजपा सरकार के एजेंडे में किसान नहीं सिर्फ उद्योगपति है। किसान की लागत प्रत्येक साल बढ़ती जा रही है। पुराना गन्ना भुगतान भी लंबित पड़ा है। करोड़ों रुपये चीनी मिलों पर उधारी है। सवाल उठाया कि ऐसी स्थिति में किसान खुदकुशी नहीं करेगा, तो क्या करेगा।
सपा ने बताया किसानों के साथ धोखा
पश्चिमी यूपी के वरिष्ठ सपा नेता एवं सपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री राजपाल सिंह कहते हैं,उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करती थी, लेकिन एक भी पैसा चार साल में गन्ने का नहीं बढ़ाया। यह किसानों के साथ धोखा नहीं है तो और क्या है। कृषि क़ानूनों को लेकर लड़ाई लड़ रही भारतीय किसान यूनियन ने भी गन्ना किसानों के मुद्दे पर सरकार से सवाल किया है। बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा, "खाद-डीज़ल के दाम बढ रहे हैं, गैस सिलेंडर के दाम बढ रहे हैं, बच्चों की फीस बढ रही है, हर चीज पर महंगाई की मार है।
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चार वर्षों से गन्ने के भाव में एक पाई नहीं बढाई गई
पेस्टीसाइड महंगे हो रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में चार वर्षों से गन्ने के भाव में एक पाई नहीं बढाई गई, जबकि गन्ना संस्थान ने पिछले साल के मुताबिक गन्ने का लागत मूल्य 10 रूपए बढ़ जाने की बात की है।" राकेश टिकैत ने अपने बयान में कहा, "एक ओर भारत सरकार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का झूठा दावा कर रही है दूसरी ओर गन्ना किसानों को उनका लागत मूल्य तक नहीं मिल पा रहा। जबकि गन्ना संस्थान, शाहजहांपुर ने माना है कि गन्ने का लागत मूल्य 297 रुपए आ रहा है। ऐसे में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में दिए गए सी-2+50 के फार्मूले से गन्ने का रेट तय क्यों नहीं किया जाता? गन्ने का मूल्य न बढ़ने को भी टिकैत मुद्दा बनाकर किसानों का समर्थन बटोर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश (यूपी) देश का सर्वाधिक गन्ना उत्पादक राज्य है। देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसद एवं उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसद यूपी में होता है। देश में कुल 520 चीनी मिलों से 119 यूपी में हैं। करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं । करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं। यहां का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है।
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डीजल खाद आदि की दरों में वृद्धि लगातार जारी
भारतीय किसान यूनियन मेरठ के जिलाध्यक्ष मनोज त्यागी बताते हैं, तीन सालों से गन्ना मूल्य नहीं बढ़ा। वहीं डीजल खाद आदि की दरों में वृद्धि लगातार जारी है। इससे किसानों की स्थिति खराब होगी, किसानों की कर्जदार बढ़ेगा। वे आगे कहते हैं,“2019 के मुकाबले डीजल के दाम में 22 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है लेकिन गन्ना किसानो की फसल का दाम चार वर्षों से वहीं पर अटका हुआ है।” डीजल ही नहीं, खाद, यूरिया, बिजली सभी के दामों में पिछले चार साल में करीब 15 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई है।
मेरठ के खेड़ी मनिहार गांव केकिसान चन्द्रवीर सिंह कहते हैं, " गन्ने की छिलाई 20 रुपए प्रति क्विंटल से 40 हो गई। डीजल 60 रुपए लीटर से 80 रुपए लीटर तक पहुंच गया है। डीएपी-यूरिया भी महंगी हो गईं लेकिन गन्ने का एक तो पैसा नहीं बढ़ा ऊपर से पेमेंट भी साल-साल भर बाद मिलता है। फिर ऐसे खेती लोग क्यों करें?" कुलवीर सिंह आगे कहते हैं, "मैं तो मुख्यमंत्री की सलाह मानकर दूसरी फसलों की खेती करना चाहता हूं लेकिन धान-गेहूं के रेट भी तो कम हो गए। छोटा हो या बड़ा किसान खत्म हुआ जा रहा है। सब रकबा घटा रहा है।"
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रिपोर्ट: सुशील कुमार
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