बाबरी मस्जिद ढहाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने की थी तल्ख़ टिप्पणी

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में इस तथ्य का उल्लेख किया कि विवादित भूमि को लेकर मुकदमे लंबित होने के दौरान एक सार्वजनिक इबादत स्थल को नष्ट करने के सोचे समझे कृत्य के तहत मस्जिद का पूरा ढांचा ही गिरा दिया।

Update: 2020-09-30 15:05 GMT
Supreme court commented on the demolition of Babri Masjid

नीलमणि लाल

लखनऊ. अयोध्या मामले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बाबरी विध्वंस के बारे में भी टिप्पणी की हुई है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने फैसले में है कहा कि मुसलमानों को गलत तरीके से उनकी मस्जिद से वंचित किया गया जिसका निर्माण 450 साल से भी पहले किया गया था। उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी लिबरहान आयोग द्वारा की गयी टिप्पणी से मिलती जुलती है। अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को हिला देने वाला अपराध करार देते आडवाणी समेत तमाम नेता और कारसेवकों पर आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने का निर्देश दिया था।

सोचा समझा कृत्य

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बाबरी विध्वंस पर कहा है कि विवादित ढांचा गिराया जाना एक ‘सोचा समझा कृत्य’ था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में इस तथ्य का उल्लेख किया कि विवादित भूमि को लेकर मुकदमे लंबित होने के दौरान एक सार्वजनिक इबादत स्थल को नष्ट करने के सोचे समझे कृत्य के तहत मस्जिद का पूरा ढांचा ही गिरा दिया। कोर्ट ने कहा कि मुसलमानों को गलत तरीके से उनकी मस्जिद से वंचित किया गया जिसका निर्माण 450 साल से भी पहले किया गया था।

विध्वंस के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विवादित ढांचा गिराये जाने के बारे में चंद पंक्तियां ही हैं लेकिन यह टिप्पणी अयोध्या में इस ढांचे को गिराये जाने की घटना के दस दिन के भीतर नरसिंह राव सरकार द्वारा गठित लिबरहान जांच आयोग की टिप्पणी जैसी ही हैं. इस आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अयोध्या में सारा विध्वंस ‘योजनाबद्ध’ तरीके से किया गया था.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा कि इस मामले के तथ्यों से यही सबूत सामने आता है कि सत्ता और धन की संभावना से प्रलोभित भाजपा, आरएसएस, विहिप, शिव सेना और बजरंग दल आदि के भीतर ही ऐसे नेता उभर आये थे, जो न तो किसी विचारधारा से निर्देशित थे और न ही उनमें किसी प्रकार का नैतिक संयम था. रिपोर्ट में कहा था कि छह दिसंबर, 1992 को देखा कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून का शासन बनाये रखने की इच्छुक नहीं थी और यह उदासीनता मुख्यमंत्री (कल्याण सिंह) के कार्यालय से लेकर निचले स्तर तक थी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मुसलमानों के लिए एक मस्जिद का भी निर्माण किया जाना चाहिए.

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