सत्ता के सत्यवानों के सामने किसानों की हालत खोटे सिक्के !

सरकार कि निगाह में किसानों कि हालत खोटे सिक्के जैसी हो गई है । उसकी फरियादें सरकारी नक्कार खाने में तूती साबित हो रही है। बांदा सहित चित्रकूट धाम मंडल इसी श्रेणी कि श्रंखला में आता है!

Update: 2020-05-22 13:33 GMT

बांदा (उत्तर प्रदेश): सरकार कि निगाह में किसानों कि हालत खोटे सिक्के जैसी हो गई है । उसकी फरियादें सरकारी नक्कार खाने में तूती साबित हो रही है। बांदा सहित चित्रकूट धाम मंडल इसी श्रेणी कि श्रंखला में आता है! उदाहरण है यहां के सरकारी गेहूं क्रय केंद्र। जहां किसानों को सहूलियतें कम दुश्वारियां ज्यादा मिल रही हैं। अपने विक्रय किये हुए उत्पाद की कीमत हासिल करने के लिये उसका दिल तार-तार होकर जार- जार आसूं बहाने के लिए मजबूर है ।

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किसानों का दर्दे हाल

अब आप किसानों का दर्दे हाल भी जान लीजिए कि कितना मुश्किलों भरा है । किसान को पहले सरकारी क्रय केंद्रों में उपज बेचने के लिए मशक्कत करनी पड़ी, अब कीमत हासिल करने के लिए दौड़ रहे हैं।

72 घंटे में भुगतान के सरकारी दावे हवाहवाई साबित हो रहे हैं। मंडल के चारों जनपदों में किसानों ने अब तक कुल 59,946 मीट्रिक टन गेहूं बेचा है। इसमें खरीद एजेंसियों ने उनका 62.37 करोड़ रुपये भुगतान नहीं किया है।

चित्रकूट मंडल में गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य एक लाख मीट्रिक टन है। 15 अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरू हो गई थी। बांदा में अब तक 110 किसानों का 14,800 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया है।

भुगतान न होने से किसान परेशान

इसकी कीमत 21.96 करोड़ रुपये है। किसानों का 13.86 करोड़ बकाया है। महोबा में 1080 किसानों ने 13,904 मीट्रिक टन गेहूं बेचा है। उन्हें 26.94 करोड़ रुपये चाहिए। इसमें अभी 15.16 करोड़ बकाया है।

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हमीरपुर में सर्वाधिक 21 हजार किसानों का 24,342 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया है। इसका मूल्य 46.85 करोड़ रुपये है और एजेंसियों ने अभी 23.74 करोड़ रुपये भुगतान नहीं किया।

चित्रकूट में सबसे कम 580 किसानों का 6,900 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया है। किसानों का 13.29 करोड़ में 9.61 करोड़ रुपये बकाया है। भुगतान न होने से किसान परेशान हैं।

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समस्या के निदान की भनक

चित्रकूटधाम मंडल के संभागीय खाद्य नियंत्रक संजीत कुमार ने बताया कि सबसे ज्यादा किसानों का बकाया पीसीएफ पर है। इनके अधिकारियों को पत्र भेजकर जल्द भुगतान करने के लिए कहा गया है।

अब किसान पत्रों के उत्तर- प्रतिउत्तर के जाल में जकड़े आर्थिक संक्रमण की महामारी से जूझ रहे हैं । कोई भी ऐसा दीनदयाल नहीं है कि समस्या के निदान की भनक सत्ता के सिंघासन के सत्यवान तक पहुचे!

शरद चंद्र मिश्रा

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