आंगन सूना कर गई: टप्पल की 'गुड़िया' के वो शौक जो हम भूल नहीं सकते
नटखट सी हमारी गुड़िया ऐसे हमसे दूर चली गयी, कार्टून की जिद्द को पूरा किये बिना ही चली गयी..... नाखूनी से रंगें नन्हे हाथ तुम्हारे कितने प्यारे लगते थे। अरी ओ मेरी प्यारी बिटिया तुम हमसे कितना दूर चली गयी।
अलीगढ़ : टप्पल की 'गुड़िया' के लिए घर का हर सामान खिलौना होता था। पानी की बोतल के साथ खूब खेलती थी। सामान की फेंका-फेंकी में मम्मी डांटतीं तो रूठकर पापा की गोद में चली जाती थी। जरा सा दुलार मिलते ही सो जाती थी। 'गुड़िया' के बिना आज आंगन सूना है। मां मोबाइल में उसके फोटो देखकर यादों में खो जाती है।
हंसमुख चेहरे वाली बेटी मां-बाप की दुलारी थी। इकलौती होने के कारण मां-बाप ही नहीं, बाबा, चाचा-चाची सबकी प्यारी थी। दस दिन पहले बेटी को खो चुकी मां शुक्रवार को घर में बेसुध थी। मीडिया के सवालों का जवाब देते समय बस यही कहतीं, मेरी बेटी को न्याय दिला दो। हत्यारों को फांसी की सजा दो।
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नेल पॉलिश लगाने का था शौक
'गुड़िया' की मां ने बताया कि उसे नाखूनी (नेल पॉलिश) लगाने का बड़ा शौक था। 29 मई को ही वह मेरे साथ उदयपुर गई थी। वहां भी हाथ व पैरों के नाखूनों पर नाखूनी लगाने में लग गई। बात ऐसी करती थी कि उस पर गुस्सा नहीं, प्यार आता था। डांटने पर पापा की गोद में चली जाती थी। जिद करके पापा के मोबाइल में कार्टून देखती थी।
बर्तन भी इकट्ठा कर लेती
घर में बिखरे बर्तनों को इकट्ठा कर धुलाई के लिए रखना, खाना खा रहे लोगों को पानी की बोतल देना, ये ऐसे काम थे, जिनसे सभी प्रभावित थे। नहाने के बाद कपड़े अपनी ही पसंद के पहनती थी। खेलने के लिए अपने घर के साथ सामने ही बाबा के मकान में जाती थी। इसके अलावा किसी और घर में नहीं जाती थी। घटना वाले दिन भी वहीं खेल रही थी। पूरे परिवार के लिए मासूम की यादें ही आज शेष हैं, जिन्हें याद कर हर कोई सिहर जाता है।