समाजसेवा के भाव ने बना दिया साइंटिस्ट से शिक्षक, गरीब बच्चों को कर रहे शिक्षित
मुफलिसी जिन बच्चों को आगे बढ़ने से रोक रही थी, एक नेक सोच ने उन बच्चों के सपनों में रंग भर दिए। जिन गरीब बच्चों को दो वक़्त का खाना भी नसीब नहीं होता, वही बच्चे विज्ञान के कठिन से कठिन प्रश्न आसानी से हल कर लेते हैं।
लखनऊ: मुफलिसी जिन बच्चों को आगे बढ़ने से रोक रही थी, एक नेक सोच ने उन बच्चों के सपनों में रंग भर दिए। जिन गरीब बच्चों को दो वक़्त का खाना भी नसीब नहीं होता, वही बच्चे विज्ञान के कठिन से कठिन प्रश्न आसानी से हल कर लेते हैं। देश के पहले लड़ाकू विमान तेजस के प्रोजेक्ट निदेशक रहे डॉ मानस बिहारी वर्मा गरीब और निचले तबके के बच्चों को विज्ञान की शिक्षा देकर उन्हें इस क्षेत्र में निपुण बना रहे हैं।
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गांव देहात में रहने वाले इन बच्चों को विज्ञान के नए नए प्रयोग करते देख हर कोई दांतों तले ऊँगली दबा लेता है। देश के पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमान तेजस को बनाने वाले दरभंगा निवासी डॉ वर्मा अपने नेक इरादों से समाज में बदलाव की बयार ला रहे हैं।
डॉ कलाम के थे करीबी
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में अपनी 35 साल की नौकरी के दौरान डॉ वर्मा को पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को काफी करीब से जानने का मौका मिला। इस दौरान उन्होंने डॉ कलाम से काफी कुछ सीखा। उन्हीं से प्रेरणा लेकर डॉ एमबी वर्मा ने विकसित भारत फाउंडेशन ज्वाइन किया जिसे डॉ अब्दुल कलाम ने शुरू किया था।
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उनकी मौत की सूचना से डॉ वर्मा काफी दिनों तक सदमे में थे। डीआरडीओ में सर्विस के दौरान उन्होंने डॉ कलाम और डॉ कोटा हरिनारायण को गरीब बच्चों को पढ़ाते देखा था , वह दोनों अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी समय निकालकर बच्चों से विज्ञान पर चर्चा करते थे। यहीं से सीखकर उन्होंने बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया।
गरीब बच्चों को मुफ्त में दे रहे शिक्षा
डीआरडीओ से 2005 में रिटायर हुए डॉ वर्मा के सामने ऐशो आराम से भरी ज़िंदगी थी , लेकिन उन्होंने अपनी सारी सुविधाएं त्यागकर गरीब बच्चों का भविष्य बनाने का इरादा किया। उन्होंने एक टीम बनाई और उसमें ऐसे लोगों को शामिल किया जिनमें ज्ञान के साथ साथ समाजसेवा का भाव भी हो।
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वह और उनकी टीम बिहार के हर छोटे बड़े गांव में जाकर बच्चों को मुफ्त में विज्ञान और तकनीक की शिक्षा दे रहे हैं। बिहार का शायद ही ऐसा कोई गांव है, जहां डॉ वर्मा और उनकी टीम न पहुंची हो। कई बच्चों ने बताया कि उनका पढ़ने का तरीका इतना सरल है कि तकनीकी बातें भी आसानी से समझ आ जाती हैं।
अवॉर्ड की राशि से शुरू की मुहिम
डॉ वर्मा ने बताया कि रिटायर होने से पहले उन्हें 2 अवॉर्ड मिले थे।इस रकम को खुद के इस्तेमाल में लाने के बजाय उन्होंने गांव के गरीब बच्चों को शिक्षित करने का विचार किया। गांव में बिजली की समस्या थी, ऐसे में उन्होंने अवॉर्ड की राशि से जेनरेटर खरीदा । उन्होंने हाईस्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का समूह बनाया जो अनपढ़ बच्चों को 1 घंटे पढ़ाया करते थे।इसके बदले उन्होंने छात्रों से उनकी विज्ञान और गणित की समस्या हल करने का प्रस्ताव दिया। बच्चे इस मौके को गंवाना नहीं चाहते थे, तो वह राज़ी हो गए ।
खुद प्रयोग करके सीखें बच्चें
डॉ वर्मा ने बताया कि वह बच्चों को प्रैक्टिकल ज्ञान देने में विश्वास रखते हैं । वह चाहते हैं कि बच्चे खुद प्रयोग करके सीखें ।इससे उन्हें रटी रटाई बातों की आदत नहीं पड़ेगी और वह समाज में अपनी काबिलियत से जाने जाएंगे । खुद प्रयोग करके सीखेंगे तो समझेंगे कि प्रकृति में क्या हो रहा है। जब बच्चे प्रयोग करेंगे तो चीज़ों को महसूस भी करेंगे। चीज़ों को महसूस करने पर ही उनका समाधान ढूंढ पाएंगे , यह किताबी ज्ञान से सम्भव नहीं हो सकता।
मोबाइल साइंस लैब से हो रहा स्कूलों को फायदा
डॉ वर्मा ने बताया कि उनके द्वारा चलाये जा रहे 3 मोबाइल साइंस लैब से सरकारी स्कूलों में शिक्षक और छात्र दोनों विज्ञान की बारीकियां सीख रहे हैं। इसे 6 इंस्ट्रक्टर की मदद से चलाया जा रहा है। यह लैब शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के बाद स्कूल में विज्ञान और लाइफ साइंस से संबंधित उपकरण भी मुहैय्या कराए जाते हैं।जिन स्कूलों में साइंस के टीचर नहीं हैं, वहां पर उनकी टीम के मेंबर मोबाइल वैन के ज़रिये 2 से
3 महीने तक कैम्प लगाकर छात्रों को विज्ञान और कम्प्यूटर से जुडी ज़रूरी जानकारी देते हैं। इस मोबाइल लैब के ज़रिये डॉ वर्मा और उनकी टीम ने अबतक 250 स्कूलों और करीब 12000 बच्चों को दरभंगा, मधुबनी, और सुपौल जिले में शिक्षित किया है। आज यह सुविधा बिहार और ओडिशा के कुछ जिलों तक पहुँच गयी है । अगत्स्य इंटरनैशनल फाउंडेशन और डॉ कलाम की संस्था विकसित भारत फाउंडेशन के सहयोग से यह मोबाइल लैब सफल हो सकी।
पद्मश्री से नवाज़े जाएंगे
डॉ एमबी वर्मा को विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री देने की घोषणा की गयी है।इससे पहले भी उन्हें दर्जनों अवॉर्ड से नवाज़ा जा चुका है। उन्हें डॉक्टर ऑफ़ साइंस की उपाधि भी दी जा चुकी है। डीआरडीओ में उन्हें साइंटिस्ट ऑफ़ द ईयर और टेक्नोलॉजी लीडरशिप अवॉर्ड भी दिया जा चुका है। इससे पहले उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह भी सम्मानित कर चुके हैं।