भूतों की अदालतः प्रेतों के बीच चलता है मुकदमा, 250 साल से ऐसे हो रहा न्याय
साइंस के इस युग में भूतों की अदालत और लोगों को न्याय मिलना अजीब है लेकिन आस्था तर्क से परे होती है, हजारों लोगों को मिल रहा न्याय, कोई चढ़ावा नहीं कोई वकील नहीं कोई फीस नहीं, कोई सवाल जवाब नहीं लोग ठीक हो जाते हैं।
तेज प्रताप सिंह
गोंडा। सजी संवरी महिलाएं हाथों में पूजन सामग्री लिए परिक्रमा कर रही हैं। सैकड़ों श्रद्धालुओं का झुंड पीपल और नीम पर विराजमान दुःखहर्ता बजरंगबली के दिव्य स्थान का चक्कर लगा रहा है। अगरबत्ती, धूप, हवन सामग्री की खुशबू और भक्तिमय संगीत से पूरा वातावरण गुंजायमान है। पीपल और नीम के पेड़ में लाल कपड़ा बंधा है। मिट्टी की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। जमीन पर बैठे दर्जनों पुरुष और महिलाएं ध्यान में लीन हैं। एक युवा महिला बाल खोले तेजी से झूम रही है। बड़बड़ा रही है। कुछ लोग बार-बार सिर पटक रहे हैं। एक अन्य महिला दौड़कर परिक्रमा करने लगती है। कोई विक्षिप्त की तरह भाग रहा है। किसी को उसके परिजन जकड़े हुए हैं।
यह नजारा है गोंडा जिले के कर्नलगंज क्षेत्र के बाबा बटौरा स्थान का। जहां मंगल को भूत, प्रेतों का मेला लगता है। मान्यता है कि यहां सदियों पुराने पीपल और नीम के वृक्ष में निवास कर रहे कष्टहर्ता बजरंगबली आसुरी शक्तियों से छुटकारा दिलाते हैं। इसी विश्वास के चलते बाबा बटौरा में आस्था का यह सैलाब पिछले 250 सालों से उमड़ रहा है।
भूत, प्रेत से मुक्ति के लिए आते हैं लोग
जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर कर्नलगंज तहसील क्षेत्र के ग्राम पंचायत गुरसड़ा के मजरे बटौरा में बाबा बटौरा स्थान पर झूमने, अनाप शनाप बोलने वाली महिला लखीमपुर जिले के हसनपुर कटौली गांव की उर्मिला है। उसके पति और मां के साथ पूरा परिवार उसे लेकर आया है।
32 वर्षीय उर्मिला की मां बताती है कि उस पर किसी आसुरी शक्ति का नियंत्रण है। वह क्या करती है, क्या बोलती है उसे कुछ पता नहीं होता। पहले बीमारी समझ कर काफी इलाज किया। कोई फायदा नहीं हुआ तब यहां आई तो थोड़ी राहत मिली है।
मां भी प्रेत के साए से थी परेशान
उर्मिला की मां को भी प्रेत साया से परेशानी थी, वह भी यहीं आकर ठीक हो गईं। लखीमपुर के ही पोखरा गांव के बरसाती लाल गुप्ता भी 53 वर्षीय पत्नी जमुनावती के साथ आए हैं। उनकी पत्नी को किसी भूत प्रेत का साया लगा तो वह पागलों जैसा व्यवहार करने लगी।
डाक्टरों और नीम हकीम की चौखट पर माथा रगड़ने के बाद बाबा बटौरा के बजरंगबली की शरण में आ गए। अब पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार है। बहराइच के नानपारा से आए हरिश्चन्द्र के 20 वर्षीय बेटे रमन और अलग-अलग स्थानों से यहां आए दर्जनों महिला पुरुषों की हालत भी कुछ ऐसी ही है।
ये हैं यहां के जज
आडम्बर एवं अंधविश्वास से परे आज के भौतिकवादी युग में भी हजारों महिला और पुरुषों के मन में बाबा बटौरा स्थान के प्रति अटूट आस्था और विश्वास है। यहां कष्टभंजन हनुमान जी के दरबार में बिना जज की अदालत लगती है, जहां खुद सजा पाने आते हैं मुजरिम यानी पीड़ित और भूत, प्रेतों, चुडै़लों को सजा सुनाते हैं यहां के जज यानी स्वयं बजरंगबली।
यहां के पुजारी स्वामीनाथ बताते हैं कि पहले उनके पिता और पूर्व पुजारी खाकी प्रसाद हनुमान जी की अदालत में पेशकार का काम करते थे और पीड़ितों पर सवार आसुरी शक्तियों से कुछ सवाल जवाब किया करते थे।
आसुरी शक्तियों के प्रभाव से उत्पात कर रहे विक्षिप्त लोगों को बांध दिया जाता था। लेकिन अब यहां किसी से कोई सवाल नहीं किया जाता और न ही किसी को जंजीरों में बांधा जाता है। हनुमान जी स्वयं सवाल जवाब कर कष्ट निवारण करते हैं। पिछले 250 वर्षों से हर मंगलवार को यहां भूतों की अदालत और श्रद्धालुओं का विशाल मेला लगता है।
मंगलवार को लगता है मेला
बजरंग बली के इस पावन धाम में वैसे तो प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन मंगलवार को यह संख्या हजारों में होती हैं। होली के बाद पड़ने वाले बुढ़वा मंगल से ज्येष्ठ माह के अंतिम मंगल तक विशाल मेला लगता है, जिसमें प्रतिदिन तकरीबन पांच हजार लोग शामिल होते हैं।
श्रद्धानुसार प्रसाद केसरी नंदन को भेंट कर प्रार्थना करते हैं। भक्त अपने कष्टों और बुरी नजर के दोषों को दूर करने की कामना लेकर यहां आते हैं और बजरंग बली की पूजा आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाते हैं। भोर से ही शुरु होने वाला मेला देर रात तक चलता रहता है।
गोंडा, बालपुर और कर्नलगंज के अलावा दूसरे जनपदों से भी व्यवसाई आकर अपनी दुकान लगाते हैं। नवरात्र में देवी आराधना, अगहन माह में राम विवाह और भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें हजारों की भीड़ जुटती है।
श्रद्धा, आस्था से होता है लाभ
बाबा बटौरा में सोने के सिंहासन नहीं, पेड़ पर विराज कर प्रभु हनुमान अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं। बात चाहे भूत-प्रेत की हो या शनि के प्रकोप से मुक्ति की। मान्यता है कि बजरंग बली के इस दर पर आकर भक्तों के दुख का निवारण हो जाता है।
यहां पेड़ के निकट ही हवन कुंड और दक्षिण पश्चिम ओर मां दुर्गा का छोटा सा मंदिर हैै। दोपहर में जब पुजारी हवनकुंड में समिधा डालते हैं और हवनकुंड की आग जैसे-जैसे तेज होती है। तो भूत, प्रेत बाधा से ग्रसित स्त्री-पुरुषों का झूमना भी तेज हो जाता है।
आसुरी शक्तियों के शिकार लोग कुछ देर उछल कूद के बाद शांत हो जाते हैं। पुजारी कैलाश नाथ दूबे कहते हैं कि हनुमान जी स्वयं सवाल जवाब करके उसे पीड़ित का शरीर छोड़ने का आदेश देते हैं। उनका कहना है कि जैसे जिसकी श्रद्धा और आस्था होती है उसे वैसे ही लाभ मिलता है। किसी को एक ही मंगलवार को राहत मिल जाती है, तो कइयों को पांच, सात अथवा 11 मंगलवार को आना पड़ता है।
लाल धागा बांध मांगते हैं मन्नत
बाबा बटौरा की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां एक अदालत लगती है, जहां भूतों के अपराध की सजा सुनाई जाती है लेकिन कोई झाड़ फूंक नहीं होती। यहां कोई चढ़ावा नही चढ़ता, प्रसाद में सिर्फ फूल, मिष्ठान, धूप, अगरबत्ती, पांचों मेवा, फल और हवन सामग्री ही चढ़ाया जाता है।
हर मंगल को हवन होती है। लोग पीपल की डाल में सिर्फ एक लाल धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं और पूरा होने पर धागा खोलकर श्रद्धानुसार हवन पूजन, भण्डारा करते हैं। भूत प्रेत और आसुरी शक्तियों की बाधा दूर होती है तब खप्पर और चूड़ी चढ़ाते हैं।
मेले में आई सावित्री, रुकमणी, मीना, प्रतिमा, सरोज, प्रताप वर्मा, लौटन राम यादव, प्रभूनाथ गुप्ता, राम मनोहर तिवारी आदि का कहना है कि यहां बजरंगबली के दरबार में सारे दुःखदर्द समाप्त हो जाते हैं। इनकी महिमा अद्भुत है सिर्फ दर्शन से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यदि ऐसा न होता तो हजारों लोग यहां क्यों आते।
भगवान राम के आदेश पर हैं हनुमान
बाबा बटौरा स्थान के मुख्य पुजारी स्वामी नाथ दूबे के भाई और सह पुजारी कैलाश नाथ दूबे बताते हैं कि सरयू से निकलकर घाघरा में समाहित हाने वाली चन्द्रभागा नदी (अब चन्दहा नाला) के किनारे वर्तमान में कर्नलगंज तहसील के ग्राम पंचायत गुरसड़ा के मजरे बाबा बटौरा में इसी स्थान पर हजारों साल पूर्व भगवान राम के गुरु वशिष्ठ की तपोस्थली थी। यहीं पर मेघा ऋषि का आश्रम हुआ करता था।
भगवान श्रीराम ने एक बार यहां आकर विश्राम किया था। चूंकि यह स्थान तब बेल व अन्य वृक्षों, कंटीली झाड़ियों का वियाबान जंगल था और हिंसक जानवरों से मनुष्यों के लिए पूरी तरह असुरक्षित था। इसलिए भगवान ने अपने परम भक्त हनुमान जी को यहां की सुरक्षा का जिम्मा सौपा था।
हनुमान जी का वास
मान्यता है कि तभी से यहां अदृश्य रुप में हनुमान जी का वास है। शिव पुराण में चन्द्रभागा नदी का उल्लेख है। पुजारी कैलाश नाथ के अनुसार, लगभग 250 साल पहले उनके परबाबा राम अवतार दूबे ने रात में स्वप्न देखा कि तीन बंदर उनसे भोजन मांग रहे हैं और पीपल व नीम के नीचे पूजा पाठ के लिए कहा। लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
एक रात में जब वे लघुशंका के लिए उठे तो उनकी आंख में लकड़ी घुस गई। तमाम इलाज के बाद भी आंख ठीक नहीं हो रही थी तो एक विद्वान पंडित से उन्होंने उपाय पूंछा और स्वप्न वाली बात भी बताया। तब उन्होंने इसी पीपल और नीम के नीचे हनुमान जी की पूजा अर्चना के लिए कहा।
राम अवतार ने मंगल को हनुमान जी की पूजा प्रारंभ की तो उसी दिन रात में आंख से लकड़ी निकल गई और जख्म भर गया। तभी से उन्होंने प्राचीन समय के पीपल और नीम के पेड़ में मिट्टी से मूर्तियां बनाकर पूजा अर्चना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे ख्याति फैली और यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आने लगे तो यहां मेला लगने लगा।
चार पीढ़ियों से सेवा में दूबे परिवार
बटौरा बाबा स्थान के पुजारी कैलाश ने बताया कि परबाबा राम अवतार दूबे के बाद बाबा पंडित दूबे और उनके बाद पिता खाकी प्रसाद दूबे यहां की देखरेख करते रहे। उनके बाद अब उनके बड़े भाई स्वामी नाथ और वे स्वयं स्थान के देखरेख में लगे हैं।
उन्होंने कहा कि बाबा स्थान और मंदिर की प्रतिमा पर आने वाले चढ़ावे से 20 साल पहले धर्मशाला, मां दुर्गा, भगवान शिव के मंदिर का निर्माण कराया गया। कुछ वर्ष पहले श्रद्धालुओं के बैठने के लिए एक बरामदा और हाल का भी निर्माण कराया गया।
इसकी रंगाई पुताई, देखरेख के साथ ही यहां आए आर्थिक रुप से कमजोर भक्तों के रहने और खाने का भी इंतजाम किया जाता है। राम चरित मानस पाठ, भंडारे के साथ ही श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए खर्च होता है।
कोई खाली हाथ नहीं जाता
यहां तमाम सालों से हर मंगलवार को आने वाले उमरिया गांव निवासी किसान राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि यहां के हनुमान जी की शक्ति अद्वितीय है। उन्होंने बताया कि उन्होंने बजरंगबली से पुत्र मांगा था, जो उन्होंने पूरा किया तो उसका नाम हनुमंत लाल रखा और तभी से हर मंगलवार को सेवा करने आते हैं।
उन्होंने कहा कि कष्टभंजन हनुमान के इस इस दर पर आते ही हर कष्ट दूर हो जाता है, हर मनोकामना पूरी होती है, यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता। यहां देवी पाटन मंडल के सभी जनपदों समेत उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, महारष्ट्र, बंगाल, आसाम समेत अनेक प्रदेशों से परेशान लोग आते हैं और हंसते हुए जाते हैं।
क्षेत्र के परसा गोंडरी गांव के रोशी पुरवा निवासी 70 वर्षीय शत्रोहन तिवारी बताते हैं कि कई सदियों से इस स्थान का प्रभाव रहा है। उनके गांव के राधेश्याम की गंभीर बीमारी यहीं के प्रभाव से ठीक हुई।
उपेक्षित है दिव्य धाम
सैकड़ों सालों से लोगों के आस्था और श्रद्धा का केन्द्र बाबा बटौरा में पीड़ाहर्ता हनुमान जी का यह दिव्य धाम घोर उपेक्षा का शिकार है। हर माह लाखों लोगों के आगमन के बावजूद बाबा बटौरा स्थान और मंदिर तक पहुंचने वाली सड़क खराब है।
मेले में लगने वाली सैकड़ों दुकानें खुले आसमान के नीचे ही होती हैं, जिससे बरसात होने पर श्रद्धालुओं और दुकानदारों को मुश्किल का सामना करना पड़ता है। हालांकि पुजारी द्वारा कुछ धर्मशाला और बरामदा का निर्माण कराया गया है। मेला स्थल पर आने वाले लोगों के लिए पेयजल की सुविधा के लिए पूर्व विधायक बैजनाथ दूबे ने अपने र्काकाल में पानी की टंकी का निर्माण कराया था।