UP Election 2022: आगरा ग्रामीण सीट पर बेबी रानी मौर्य की मजबूत घेराबंदी, लोगों की नाराजगी दूर करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
UP Election 2022: आगरा ग्रामीण की सीट से भाजपा ने अपने बड़े चेहरे बेबी रानी मौर्य पर दांव खेला है।
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (UP Vidhan Sabha Chunav) में पहले चरण के जिन सीटों पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, उनमें आगरा ग्रामीण की सीट (Agra Rural Assembly Seat) भी शामिल है। इस सुरक्षित सीट पर भाजपा ने अपने बड़े चेहरे बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya) को चुनाव मैदान में उतारा है। उत्तराखंड की राज्यपाल रह चुकीं बेबी रानी मौर्य मौजूदा समय में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। भाजपा ने मौजूदा विधायक हेमलता दिवाकर (Hemlata Divakar) का टिकट काटने के बाद बेबी रानी मौर्य को चुनाव मैदान में उतारा है।
विपक्ष की ओर से इस सीट पर भाजपा (BJP) की मजबूत घेराबंदी की गई है। हेमलता दिवाकर से क्षेत्रीय लोगों की नाराजगी की चुनौती से निपटना भी भाजपा के लिए आसान काम नहीं होगा। इस सीट पर दलित मतदाताओं (Dalit Voters) की संख्या ज्यादा होने के कारण सभी दल दलितों को लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि बेबी रानी विपक्ष की घेराबंदी को तोड़ने में कहां तक कामयाब हो पाती हैं।
बेबी रानी मौर्य को घेरने की कोशिश
आगरा ग्रामीण सीट पर सपा रालोद गठबंधन (SP-RLD Alliance) की ओर से महेश जाटव (Mahesh Jatav) चुनाव मैदान में उतरे हैं। बसपा ने महिला उम्मीदवार किरनप्रभा केसरी (Kiran Kesari) को चुनावी अखाड़े में उतारकर बेबी रानी मौर्य को घेरने की कोशिश की है। कांग्रेस ने प्रदेश उपाध्यक्ष उपेंद्र सिंह (Upendra Singh) पर फिर दांव खेला है। उपेंद्र सिंह दो बार इस चुनाव क्षेत्र से पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं मगर दोनों बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।
यहां से तीन बार सांसद रह चुके प्रभु दयाल कठेरिया (Prabhu Dayal Katheria) ने भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। उन्होंने बगावत करते हुए आम आदमी पार्टी (AAP) के टिकट पर अपने बेटे अरुण कांत कठेरिया को चुनाव मैदान में उतार दिया है। बेबी रानी मौर्य के चुनाव मैदान में उतरने से आगरा ग्रामीण को पहले चरण की हॉट सीट माना जा रहा है। सभी विपक्षी दलों की ओर से अपनी लड़ाई बेबी रानी मौर्य से ही बताई जा रही है।
चुनाव क्षेत्र का जातीय समीकरण
इस सीट पर दलित मतदाताओं को निर्णायक माना जाता रहा है क्योंकि उनकी संख्या करीब सवा लाख है। 40 हजार यादव और 40 हजार मुस्लिम भी चुनाव में हार-जीत का फैसला करने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। क्षेत्र में जाट मतदाताओं की संख्या करीब 35 हजार है। करीब सवा चार लाख मतदाताओं वाले इस चुनाव क्षेत्र में ब्राह्मण और क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या करीब 30,000 है।
दलित मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने के कारण सभी दलों की ओर से दलितों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। सपा रालोद गठबंधन की नजर क्षेत्र के यादव और मुस्लिम मतदाताओं पर भी टिकी हुई है। सुरक्षित सीट होने के कारण सभी उम्मीदवार दलित हैं और सभी उम्मीदवारों की ओर से दलितों का मत हासिल करने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में विपक्ष के चक्रव्यूह को तोड़ना बेबी रानी मौर्य के लिए आसान काम नहीं होगा। सिटिंग एमएलए हेमलता दिवाकर के प्रति क्षेत्र के मतदाताओं में नाराजगी बताई जा रही है। इस नाराजगी से निपटना भी बेबी रानी मौर्य के लिए बड़ी चुनौती होगा।
चक्रव्यूह को तोड़ना आसान काम नहीं
2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा की हेमलता दिवाकर ने भारी मतों से जीत हासिल की थी। हेमलता को 1,29,887 मत हासिल हुए थे जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले बसपा के कालीचरण सुमन को 64,591 मत ही मिले थे। कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर मैदान में उतरे उपेंद्र सिंह ने पिछले चुनाव में 33,312 मत हासिल किए थे। रालोद के नारायण सिंह सुमन चौथे स्थान पर रहे थे और उन्हें 17,446 मत मिले थे।
हेमलता के प्रति क्षेत्र के लोगों की नाराजगी है और उनका कहना है कि वे पिछले 5 साल के दौरान क्षेत्र में नहीं दिखीं। भाजपा नेतृत्व के पास भी यह फीडबैक पहुंचा था और इसी के बाद प्रत्याशी बदलते हुए बेबी रानी मौर्य को चुनाव क्षेत्र में उतारा गया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि बेबी रानी मौर्य विपक्ष के चक्रव्यूह को तोड़ कर एक बार फिर इस सीट पर भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब हो पाती हैं या नहीं।
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