UP Election 2022: केवल योगी ही नहीं, बेबी रानी मौर्य, कौशल किशोर, श्रीकांत शर्मा, ब्रजेश पाठक व केशव प्रसाद भी मुख्यमंत्री की रेस में शामिल

UP Election 2022: इस बार मुख्यमंत्री मनोनीत नहीं, चयनित होगा। विधायकों को मुख्यमंत्री चुनने का अवसर दिया जायेगा। इस बार योगी आदित्यनाथ के साथ ही भाजपा हाई कमान के पास मुख्यमंत्री के लिए कई नाम और भी हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update: 2022-02-28 06:26 GMT

सीएम योगी-केशव प्रसाद मौर्य-ब्रजेश पाठक (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

UP Election 2022: यूपी विधानसभा चुनाव (UP Vidhan Sabha Chunav) के नतीजे भले ही अभी भविष्य के गर्भ में हों, भाजपा व सपा दोनों सरकार बनाने की दावेदारी कर रहे हों, पर हक़ीक़त यह है कि भाजपा बहुमत के आँकड़े पार करने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। तभी तो एक ओर चुनाव प्रचार पर भाजपा के हर छोटे बड़े नेता जी जान से जुटे हैं, तो दूसरी तरफ़ मुख्यमंत्री के चेहरे (UP Next CM) को लेकर भी क़वायद तेज है। भाजपा ने जिन राज्यों में दोबारा सरकार बनाई उनमें भले ही मुख्यमंत्री को रिपीट कर दिया हो, पर उत्तर प्रदेश (Uttar Prdaesh) को लेकर वह एक नया प्रयोग करने की तैयारी में है। 

इस बार मुख्यमंत्री मनोनीत नहीं, चयनित होगा। विधायकों को मुख्यमंत्री चुनने का अवसर दिया जायेगा। इस बार योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के साथ ही भाजपा हाई कमान (BJP High Command) के पास मुख्यमंत्री के लिए कई नाम और भी हैं। हाई कमान ने सोशल इंजीनियरिंग के तहत मुख्यमंत्री बनाने के लिए दलित समाज (Dalit Community) के भी नेताओं के नाम पर विचार किया है। इनमें बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya) व कौशल किशोर (Kaushal Kishore) के नाम हैं।

ब्राह्मण समाज से श्रीकांत शर्मा (Shrikant Sharma) व ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak) के नाम पर विचार हुआ है। यदि पिछड़े वर्ग से मुख्यमंत्री बनाने की ज़रूरत आन पड़ी तो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Deputy CM Keshav Prasad Maurya) की भी लाटरी लग सकती है।

सोशल इंजीनियरिंग को अमली जामा पहनाने की तैयारी

दरअसल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) व भारतीय जनता पार्टी (BJP) उत्तर प्रदेश में अपनी सोशल इंजीनियरिंग को अमली जामा पहनाना चाहती है। संघ व भाजपा नेताओं का मानना है कि मायावती की पार्टी बसपा (BSP) हाशिये पर जा रही है, ऐसे में दलित वोटों को लपक लेने का समय है। मायावती की काट के लिए ही दलित समाज से बेबी रानी मौर्य व कौशल किशोर के नाम निकाले गये हैं। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से जिस तरह भाजपा के फ़ारवर्ड वोटरों - ब्राह्मणों व ठाकुरों में बिखराव हुआ है, उसमें एक तबका इसे भी साधने की ज़रूरत महसूस कर रहा है।

इसके पक्षधरों का कहना है कि ब्राह्मण मुख्यमंत्री दे कर इस बिखराव को रोका जाना चाहिए। इसलिए श्रीकांत शर्मा व ब्रजेश पाठक को छांटा गया है। भाजपा के शीर्ष नेताओं का मानना है कि 2014, 2017 व 2019 में भाजपा की सफलता के पीछे केवल पिछड़े वोटों का ध्रुवीकरण ही नहीं है बल्कि अगड़े वोटरों ने भी एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया। अगड़े मतदाताओं के बिखराव से भविष्य में कांग्रेस को लाभ मिलने की आशंका के चलते यह रणनीति अपनाने की बात चल रही है।

जाति - जमात के वोट

भाजपा व संघ का एक तबका पिछड़े वोटरों के बिखराव को रोकने के लिए केशव प्रसाद मौर्य के नाम को भी लेकर आया है। जबकि संघ का एक छोटा धड़ा योगी आदित्यनाथ को फिर से मुख्यमंत्री बनाये जाने का पैरोकार है। इनका मानना है कि योगी के रहने से हिंदुत्व का कोर एजेंडा मज़बूत करने में मदद मिलेगी। पर किसके हाथ बाज़ी लगेगी यह तो चुनावी नतीजों पर गंभीर विचार विमर्श के बाद ही तय किया जायेगा। इस बार यह विश्लेषण केवल हार जीत के नज़रिये से ही नहीं होगा बल्कि किस जाति व जमात ने कितने वोट दिये यह भी देखा परखा जायेगा। मुख्यमंत्री के नाम का फ़ैसला 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर किया जायेगा।

सीएम योगी आदित्यनाथ (फोटो साभार- ट्विटर) 

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath)

योगी आदित्यनाथ (मूल नाम-अजय सिंह बिष्ट) गोरखपुर के प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर के महन्त तथा राजनेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री हैं। इन्होंने 19 मार्च, 2017 को प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बड़ी जीत के बाद यूपी के 21वें मुख्यमन्त्री पद की शपथ ली। उन्होंने 1998 से 2017 तक भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। आदित्यनाथ गोरखनाथ मन्दिर के पूर्व महन्त अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी हैं। वे हिन्दू युवाओं के सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी समूह हिन्दू युवा वाहिनी के संस्थापक भी हैं। इनकी छवि एक प्रखर हिन्दू राष्ट्रवादी नेता की है।

राजनीतिक जीवन

गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया। जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुँच गए। वे बारहवीं लोक सभा (1998-99) के सबसे युवा सांसद थे। पहला चुनाव वह 26 हज़ार के अंतर से जीते, पर 1999 के चुनाव में जीत-हार का यह अंतर 7,322 तक सिमट गया। मंडल राजनीति के उभार ने उनके सामने गंभीर चुनौती पेश की।

- अप्रैल, 2002 में इन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी बनायी। 2004 में तीसरी बार लोकसभा का चुनाव जीता। 2009 में ये 2 लाख से ज्यादा वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचे।

- 2014 में पांचवीं बार एक बार फिर से दो लाख से ज्यादा वोटों से जीतकर योगी आदित्यनाथ सांसद चुने गए।

-19 मार्च, 2017 में भाजपा विधायक दल की बैठक में योगी आदित्यनाथ को विधायक दल का नेता चुनकर मुख्यमंत्री पद सौंपा गया।

निजी जीवन

योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून, 1972 में उत्तराखंड के गढ़वाल जिले में एक राजपूत परिवार में हुआ था। बचपन में इनका नाम अजय सिंह बिष्ट था। उनका राजनीतिक जीवन छात्र जीवन से ही शुरू हो गया था। कॉलेज में इनकी गिनती अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उभरते हुए नेताओं में की जाने लगी थी।

मात्र 22 वर्ष की उम्र में योगी आदित्यनाथ ने सांसारिक जीवन को त्यागकर संन्यास आश्रम में प्रवेश किया। संन्यासी जीवन शुरू करने के लिए उन्होंने गोरक्षधाम पीठाधीश महंत अवैद्यनाथ से मुलाकात की। जिसके बाद 15 फरवरी, 1994 को महंत अवैद्यनाथ ने योगी को नाथ संप्रदाय की गुरु दीक्षा दी और उन्हें अपना शिष्य बना लिया। इसके बाद अजय सिंह बिष्ट का नाम बदलकर योगी आदित्यनाथ हो गया। 12 सितंबर, 2014 को महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद योगी आदित्यनाथ को नाथ पंथ के पारंपरिक अनुष्ठान के अनुसार मंदिर का पीठाधीश्वर या महंत बनाया गया।

हिंदू युवा वाहिनी

योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी (हियुवा) का गठन किया, जिसे वह सांस्कृतिक संगठन कहते हैं। इसके बारे में कहा गया है कि या 'ग्राम रक्षा दल के रूप में हिंदू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों' को नियंत्रित करता है। हिंदू युवा वाहिनी के इन कामों से गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ की जीत का अंतर बढ़ने की बात कही जाती है। वैसे, हिंदू युवा वाहिनी के खाते में गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर से लेकर मऊ, आज़मगढ़ तक मुसलमानों पर हमले और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के दर्जनों मामले दर्ज हैं।

योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी ख़ासियत जनता से सीधा संवाद और संपर्क है। लोग उनमें महंत दिग्विजयनाथ के तेवर और महंत अवैद्यनाथ का सामाजिक सेवा कार्य का मेल देखते हैं। वह कहते हैं कि गोरखनाथ मंदिर के सामाजिक कार्यों का जनता पर काफ़ी असर है। योगी ने हिंदू युवा वाहिनी के अलावा विश्व हिंदू महासंघ से अपने लोगों को जोड़ रखा है। हिन्दू युवा वाहिनी और गोरखनाथ मठ के प्रमुख के तौर पर योगी आदित्यनाथ पूर्वी उत्तर प्रदेश की जानी पहचानी हस्ती बने रहे।

2006 में 22 से 24 दिसंबर तक योगी ने गोरखपुर में तीन दिवसीय विराट हिन्दू महासम्मेलन का आयोजन किया। यह वही समय था जब पार्टी मीटिंग के लिए बीजेपी और संघ के कई दिग्गज नेता लखनऊ में मौजूद थे। कई बीजेपी नेताओं और संघ पदाधिकारियों ने इस सम्मेलन में शिरकत की।

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (फोटो साभार- ट्विटर) 

केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya)

विश्व हिंदू परिषद में गहरी पैठ रखने वाले केशव प्रसाद मौर्य यूपी में भाजपा के लिए ओबीसी राजनीति का बड़ा चेहरा हैं। 2017 के प्रदेश विधानसभा चुनाव में केशव मौर्य को एक बहुत अहम् भूमिका में देखा गया। इसी भूमिका को देखते हुए इन्हें उपमुख्यमंत्री के रूप में चुना गया।

2022 के चुनावों के ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान सहित कुछ अन्य ओबीसी नेताओं के भाजपा छोड़ जाने के बाद केशव मौर्य का पार्टी में कद और बढ़ गया है। केशव मौर्य की मौजूदगी भी अब ज्यादा बढ़ गयी है। ज़्यादातर ओबीसी नेताओं ने भाजपा छोड़ते वक्त पार्टी में पिछड़ों और दलितों की उपेक्षा का आरोप लगाया था। केशव मौर्य इन नेताओं के बयानों का जवाब देने में सबसे आगे रहे।

दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को चेहरा बनाकर पिछड़ों को जोड़ा था। पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों को पार्टी से जोड़े रहने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को आगे किया गया है।

जातीय समीकरण

उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्र में कुशवाहा जाति फैली हुई है। स्थान परिवर्तन के साथ इनका उपनाम भी बदलता है। कई जगहों पर ये सैनी और शाक्य के उपनाम से भी जाने जाते हैं। भाजपा में केशव प्रसाद मौर्य का क़द बढ़ने की वजह यह भी थी कि पार्टी में ओबीसी नेता तो कई थे मगर कुशवाहा के मौर्य जाति का कोई नेता नहीं था। मौर्य जाति की एक बहुत बड़ी संख्या उत्तरप्रदेश में होने की वजह से ये समय पर जातिगत राजनीति के बहुत काम आ सकते हैं।बसपा और सपा की राजनीति का एक तोड़ यहाँ से भी निकलते देखा जा सकता है।

राजनीतिक सफ़र

केशव प्रसाद मौर्य के राजनीतिक जीवन की शुरुआत इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से हुई । जब वह 2002 में स्थानीय माफिया अतीक़ अहमद के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार के तौर चुनाव लड़े। इस चुनाव में वह सात हजार वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे। इसके बाद केशव मौर्य ने 2007 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव उसी सीट से लड़ा ।लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर 2012 के प्रदेश विधानसभा चुनाव में वह अपने गृह क्षेत्र सिराथू से पहली बार विधायक चुने गए। उस समय वह इलाहाबाद मंडल के चारों जिलों इलाहाबाद प्रतापगढ़ कौशाम्बी और फतेहपुर से इकलौते भाजपा विधायक चुने गए थे।

2013 इलाहाबाद के केपी कॉलेज में ईसाई धर्मप्रचारक के आगमन के विरोध का नेतृत्व करने के मामले में केशव मौर्य पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध हुए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनको फूलपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। वह 3 लाख से अधिक वोटों से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद धर्मराज सिंह पटेल को पराजित करके संसद पहुंचे। अप्रैल 2016 में उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। उनके ही नेतृत्व में भाजपा ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में ऐतिहासिक जीत दर्ज की। चुनाव परिणाम आने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था । लेकिन उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया। केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा की प्रदेश इकाई के पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाना जाता है।

राजनीतिक मजबूती

केशव मौर्य हिंदुत्व की राजनीति के लिए मशहूर हैं। उन्होंने लगभग 18 साल तक विश्व हिन्दू परिषद के लिए प्रचार किया। इसके साथ ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे। एक अच्छा ख़ासा समय इन दो संस्थाओं में गुज़ारने की वजह से उनकी जड़ें भगवा राजनीति में काफी गहरी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहने के समय इन्होने राम जन्मभूमि आन्दोलन में बहुत बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आने के बाद विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और भाजपा में करीब 18 साल तक प्रचारक रहे हैं। साथ ही श्रीराम जन्म भूमि और गोरक्षा व हिन्दू हित के लिए अनेक आन्दोलन में भाग लिया है। केशव मौर्य ने अपने पोलिटिकल करियर की शुरुआत 'संघ और ओबीसी' की सोच का रास्ता अपनाकर की। अपने शुरूआती करियर के दौरान वह बजरंग दल से भी जुड़े थे। उन्होंने नगर कार्यवाह के पद पर काम किया। केशव मौर्य ने गो- रक्षा आन्दोलन और साथ ही भाजपा किसान मोर्चा के पिछड़ी जाति प्रकोष्ठ में भी काम किया है। 

बीजेपी नेता ब्रजेश पाठक (फोटो साभार- ट्विटर) 

ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak)

यूपी भाजपा में एक कद्दावर नेता ब्रजेश पाठक कभी बसपा का एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा माने जाते थे। प्रदेश की पॉलिटिक्स में बड़ा ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले ब्रजेश पाठक एक बड़ा सियासी कद रखते हैं। ब्रजेश पाठक 2004 में लोकसभा सदस्य चुने गए और 2017 में पहली बार यूपी विधानसभा पहुंचे थे। उनके कद को देखते हुए उन्हें अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गयी। अब 2022 के चुनाव में एक बार फिर उन पर नजरें टिकी हुईं हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि चुनाव बाद ब्रजेश पाठक को पार्टी कोई बड़ा ओहदा या महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है।

सियासी सफ़र

ब्रजेश पाठक ने छात्र नेता से कैबिनेट मंत्री तक सफर तय किया है। ब्रजेश पाठक ने अपने जीवन का पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

ब्रजेश पाठक का जन्म 25 जून, 1964 को हरदोई जिले के मल्लावां कस्बे के मोहल्ला गंगाराम में हुआ था। ब्रजेश पाठक ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है और अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी यहीं से की। 1989 में ब्रजेश पाठक लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने गए थे। इसके बाद 1990 में वह लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। इसके 12 साल बाद वह कांग्रेस में शामिल हुए और 2002 के विधानसभा चुनाव में मल्लावां विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन 130 वोटों के करीबी अंतर से हार गये।

2004 में ब्रजेश पाठक कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हो गए। उसी साल लोकसभा चुनाव में वह बसपा के टिकट पर उन्नाव संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए। बसपा ने उन्हें सदन में अपना उपनेता बनाया था। 2009 में मायावती ने ब्रजेश पाठक को राज्यसभा भेज दिया, जहाँ वह सदन में बसपा के मुख्य सचेतक रहे।

2010 में उनके साले अरविंद त्रिपाठी उर्फ गुड्डू, बसपा के समर्थन से उन्नाव लखनऊ स्थानीय निकाय सीट से एमएलसी चुने गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने उनकी पत्नी नम्रता पाठक को उन्नाव सदर विधानसभा सीट से टिकट दिया। लेकिन वह तीसरे नंबर पर रहीं। मायावती की सरकार के दौरान ब्रजेश पाठक की पत्नी नम्रता पाठक राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया था। 2012 में बसपा की सोशल इंजीनियरिंग में पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के साथ उन्होंने भी अहम भूमिका निभाई थी।

2014 के लोकसभा चुनाव में ब्रजेश पाठक उन्नाव लोकसभा सीट से दूसरी बार मैदान में थे। लेकिन मोदी लहर में वह यह चुनाव हार गए और तीसरे नंबर पर रहे। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 22 अगस्त, 2016 को ब्रजेश पाठक भाजपा में शामिल हो गए। 2017 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें लखनऊ सेंट्रल विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, जहाँ उन्होंने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और कैबिनेट मंत्री रहे रविदास मेहरोत्रा को 5094 वोटों के अंतर से हराया और पहली बार विधानसभा पहुंचे। भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्हें कानून तथा ग्रामीण अभियन्त्रण सेवा मंत्री बनाया गया।

ब्रजेश पाठक का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी ने 2007 में ब्राह्मणों के समर्थन से सरकार तो बनाई। लेकिन उसके बाद ब्राह्मण समाज को ठगा गया। वहीं, 2012 से लेकर 2017 तक समाजवादी पार्टी के शासनकाल में ब्राह्मणों को जितना सताया गया, उतना अत्याचार उन पर पहले कभी नहीं हुआ। 

ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

श्रीकांत शर्मा (Shrikant Sharma)

श्रीकांत शर्मा उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री हैं । 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनको मथुरा वृंदावन से प्रत्याशी बनाया है। 2017 का चुनाव जीतने के बाद श्रीकांत शर्मा ने कहा था कि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दौड़ में नहीं हैं। लेकिन अगर पार्टी उन्हें कोई जिम्मेदारी सौंपती है तो वह 'भागेंगे नहीं।' उन्होंने पार्टी की प्रचंड जीत का श्रेय भी नोटबंदी को दिया था। उन्होंने दावा किया कि न केवल किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से खुश हैं बल्कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी नोटबंदी के बाद मोदी में उम्मीद की किरण देख रहा है।

श्रीकांत शर्मा का भाजपा में उदय अमित शाह के पार्टी की कमान संभालने के बाद हुआ। राष्ट्रीय नेतृत्व से उनकी निकटता पार्टी हलकों में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि अमित शाह से मिलने तक की मंजूरी श्रीकांत शर्मा के अप्रूवल के बाद होती है। श्रीकांत शर्मा की मजबूती उनकी संघ और पार्टी में मजबूत पहुँच और ब्राह्मण चेहरा होना है।

निजी जीवन

श्रीकांत शर्मा का जन्म 1 जुलाई, 1970 को मथुरा जिले के गांठोली गांव में हुआ था। इनके पिता राधा रमण शर्मा पेशे से अध्यापक और संघ के स्वयंसेवक भी थे।

श्रीकांत शर्मा की शुरुआती पढ़ाई डीएवी स्कूल, गोवर्धन से हुई थी। इंटर के बाद की पढ़ाई के लिए वह दिल्ली चले गए और दिल्ली के पीजीडीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन किया। यहीं से उनकी रुचि सामाजिक मुद्दों और राजनीतिक मामलों में बढ़ गई।

राजनीतिक सफ़र

श्रीकांत शर्मा ने कॉलेज के समय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ज्वाइन करने के साथ ही राजनीतिक सफर की शुरुआत की और इस क्रम में वह कोई बड़े नेताओं के संपर्क में आ गए। श्रीकांत शर्मा 1991-92 में पीजीडीएवी कॉलेज में छात्रसंघ अध्यक्ष बने। उसके बाद उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का सदस्य बनाया गया। यही दौर था जब उन्होंने अपनी पहचान एक कुशल संगठनकर्ता के तौर पर बनाई।

- दिल्ली विधानसभा चुनाव 1993 में भाजपा ने उन्हें कई बड़ी जिम्मेदारी दीं।

- 2012 में उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव में श्रीकांत शर्मा ने पार्टी का मीडिया प्रबंधन का कार्यभार संभाला।

- 2014 में उन्होंने हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में भी मीडिया प्रबंधन की जिम्मेदारी उठाई।

- 2014 में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने श्रीकांत शर्मा को पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और राष्ट्रीय मीडिया सेल की जिम्मेजदारी दी।

- 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में श्रीकांत शर्मा को मथुरा विधानसभा सीट से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया, जहां उन्होंने जीत दर्ज की। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद श्रीकांत शर्मा को योगी आदित्यनाथ सरकार की कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री का पदभार दिया गया।

- श्रीकांत शर्मा हिमाचल प्रदेश भाजपा, मेरठ, बरेली, बिजनौर और बलिया के प्रभारी मंत्री रह चुके हैं।

- 2017 के विधानसभा चुनाव में श्रीकांत शर्मा को मथुरा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया था। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रदीप माथुर को एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। 

पीएम मोदी संग कौशल किशोर (फोटो साभार- ट्विटर) 

कौशल किशोर (Kaushal Kishore)

कौशल किशोर मोहनलालगंज निर्वाचन क्षेत्र से सांसद और केंद्र में राज्य मंत्री हैं। वह परख महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। किशोर को अनुसूचित जातियों में गहरी पैठ रखने वाला नेता माना जाता है । उनकी गिनती सामाजिक न्याय के मुद्दों पर आवाज बुलंद करने वाले नेताओं में होती है। कौशल किशोर के मजबूत पक्ष में उनका जातीय समीकरण और सामाजिक संघर्ष है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीति शुरू करने वाले कौशल किशोर ने 1985 में पहली बार मलिहाबाद से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। उसके बाद वह 1989, 1991, 1993, 1996 में भी चुनाव मैदान में निर्दलीय उतरे। लेकिन वह हर बार दूसरे नंबर रहे।

1999 में कौशल किशोर ने खुद की पार्टी बनाई जिसका नाम राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी रखा। इसका अध्यक्ष शाइस्ता अंबर को बनाया जबकि खुद महासचिव बने। किशोर को चुनावी सफलता पहली बार 2002 में मिली जब मलिहाबाद की जनता ने उन्हें 2002 के चुनाव में निर्दलीय चुनकर विधानसभा भेजा। सदन और सरकार में समाजवादी पार्टी को समर्थन देने से उन्हें श्रम राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया। लेकिन वह आठ माह ही मंत्री रह पाए। 2007 में उन्होंने सामाजिक संगठन पारख महासंघ बनाया।

2009 में मलिहाबाद के विधानसभा उपचुनाव में भी वे उतरे लेकिन फिर उनकी हार हुई। 2012 के भी विधानसभा चुनाव में उनकी हार हुई। इन सभी चुनाव में कौशल किशोर निर्दलीय प्रत्याशी थे। इस तरह 1989 से लेकर 2014 तक कौशल किशोर 6 बार विधानसभा के चुनाव हारे। सिर्फ एक बार 2002 में जीते।

आखिरकार 2013 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें मोहनलालगंज सीट से टिकट दिया। जहाँ बसपा के आरके चौधरी को हराकर कौशल किशोर 16 वीं लोकसभा के लिए चुने गए।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें दुबारा टिकट दिया और वह सांसद बने। 7 जुलाई, 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमण्डल में विस्तार तथा फेरबदल के बाद कौशल किशोर को शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया। इसके पहले 2021 में उनको भाजपा में अनुसूचित जाति मोर्चा का राज्य प्रमुख बनाया गया था।

निजी जीवन

कौशल किशोर का जन्म 25 जनवरी, 1960 को बेगरिया, काकोरी, लखनऊ में हुआ था। कौशल किशोर ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई लखनऊ के कालीचरण कॉलेज से की थी। इसके बाद उन्होंने बीएससी में एडमिशन लिया लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं की। इसी दौरान वे राजनीती और सामाजिक संघर्षों में सक्रिय हो गए। एक गैर राजनीतिक बैकग्राउंड वाले कौशल किशोर की पत्नी जय देवी भी बाद में राजनीति में आ गईं और 2017 में मलिहाबाद विधानसभा से विधायक चुनी गईं।

सरकार की आलोचना

कोरोना की दूसरी लहर के चरम के दौरान यूपी में कोरोनो वायरस संकट से निपटने के लिए प्रबंधन और तैयारियों की कमी के बारे में कौशल किशोर मुखर रहे थे। पिछले साल अप्रैल में किशोर के बड़े भाई की कोरोना से मृत्यु होने के एक दिन बाद, कौशल किशोर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लखनऊ के दो सरकारी अस्पतालों, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और बलरामपुर अस्पताल की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए पत्र लिखा था। 

भाजपा नेत्री बेबी रानी मौर्य (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya)

बेबी रानी मौर्य दलित समुदाय की जाटव जाति से आती हैं। बसपा से अनुसूचित वोट और खासकर जाटव वोटों को हथियाने के लिए भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए बेबी रानी मौर्य को अपने जाटव चेहरे के रूप में पेश किया है। ये एक तरह से मायावती की काट के रूप में देखा जा रहा है। बेबी रानी मौर्या ने 2007 के चुनावों में एत्मादपुर से विधानसभा चुनाव भी लड़ा था। लेकिन वे बसपा उम्मीदवार से चुनाव हार गईं थीं।

राजनीतिक करियर

- बेबी रानी ने अपना राजनीतिक करियर 90 के दशक में भारतीय जनता पार्टी की एक कार्यकर्ता के रूप में शुरू किया था।

- 1995 में उन्होंने भाजपा के ही टिकट पर आगरा नगर निगम का चुनाव लड़ा और बड़े जनादेश के साथ विजय प्राप्त की, जिसके बाद उन्हें महापौर के रूप में चुना गया। वह आगरा की महापौर बनने वाली पहली महिला थीं और 2000 तक इस पद पर रहीं।

- 1997 में बेबी रानी को भाजपा की अनुसूचित जाति मोर्चा कोषाध्यक्ष बनाया गया। प्रेसिडेंट राम नाथ कोविंद तब इस मोर्चा के अध्यक्ष थे। इस विंग की पदाधिकारी के रूप में बेबी रानी ने समूचे उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के सदस्यों के बीच भाजपा की पहुंच को मजबूत करने की ज़िम्मेदारी संभाली।

- 2001 में बेबी रानी को उत्तर प्रदेश सामाजिक कल्याण बोर्ड का सदस्य बनाया गया। दलित महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में उनके प्रयासों की मान्यता में 2002 में उन्हें राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य बनाया गया। उन्होंने 2005 तक आयोग की सदस्य के रूप में कार्य किया।

- भाजपा ने 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बेबी रानी मौर्य को एत्मादपुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए उतारा हालांकि, इस चुनाव में वह बहुजन समाज पार्टी के प्रतिद्वंद्वी नारायण सिंह सुमन से पराजित हो गईं।

- 2013 से 2015 तक बेबी रानी भाजपा द्वारा सौंपी गयी राज्य स्तर की कई जिम्मेदारियों में शामिल थी। जुलाई 2018 में, उन्हें बाल अधिकार संरक्षण के राज्य आयोग का सदस्य बनाया गया।

- 21 अगस्त 2018 को बेबी रानी मौर्य को उत्तराखण्ड की राज्यपाल नियुक्त किया गया। वह 2009 में नियुक्त मार्गरेट अल्वा के बाद इस पद को सुशोभित करने वाली दूसरी महिला थीं।

- 2020 में बेबी रानी मौर्य ने इस्तीफा दे दिया जिसके बाद भाजपा नें उन्हें पार्टी में उपाध्यक्ष बना दिया।

- 2022 के यूपी चुनाव में भाजपा ने आगरा ग्रामीण विधानसभा सीट से सिटिंग विधायक हेमलता दिवाकर की जगह बेबी रानी मौर्य को प्रत्याशी बनाया है।

निजी जीवन

- बेबी रानी मौर्य का जन्म 15 अगस्त 1956 को हुआ था। एक गैर राजनीतिक परिवार से आने वाली बेबी रानी मौर्य के ससुर एक आईपीएस अधिकारी थे। बेबी रानी ने बीएड और फिर कला में पीजी किया है। वह आगरा की रहने वाली हैं। 1990 के दशक की शुरुआत में बेबी रानी मौर्य की शादी बैंक अधिकारी प्रदीप कुमार मौर्य से हुई। प्रदीप कुमार मौर्य पंजाब नेशनल बैंक के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद अब बैंक के सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। बेबी रानी के पिता राम सिंह को कांग्रेस पार्टी के प्रति काफी लगाव था और आगरा नगर निगम में पार्षद थे।

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