UP Election 2022: यूपी की राजनीति में माफिया का भविष्य उज्ज्वल, 2022 के चुनाव में लड़ सकते कई कुख्यात माफिया विभिन्न दलों से चुनाव

UP Election 2022: पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर व उनके परिवार के अन्य सदस्य बहुत जल्द ही सूबे की समाजवादी पार्टी की विधिवत सदस्यता ग्रहण करने जा रहे हैं।

Report :  Sandeep Mishra
Published By :  Monika
Update:2021-12-12 11:22 IST

 यूपी विधानसभा  (डिजाइन फोटो न्यूज़ ट्रैक)

UP Election 2022: जेल में बन्द पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के बेटे ने अभी दो दिन पूर्व यह दावा कर दिया कि उसके पिता जेल में बन्द रहकर ही आगामी 2022 का विधानसभा का चुनाव (UP Election 2022) लड़ेंगे। जबकि ओवैसी ने तो कुछ दिन पूर्व माफिया अतीक अहमद की पत्नी को अपनी पार्टी में शामिल कर यह साफ संदेश दे दिया उनकी पार्टी भी माफिया अतीक अहमद (ateek Ahmed) या उनके परिवार के किसी भी सदस्य को विधानसभा 2022 के चुनाव में मैदान में उतारेगी। ओपी राजभर (OP Rajbhar) भी जेल में मिलकर मुख्तार को चुनाव लड़ने का न्यौता भी दे आये हैं। वहीं दूसरी तरफ पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) के पुत्र विनय शंकर (Vinay Shankar) व उनके परिवार के अन्य सदस्य बहुत जल्द ही सूबे की समाजवादी पार्टी (samajwadi party)  की विधिवत सदस्यता ग्रहण करने जा रहे हैं। जबकि भाजपा के भी मौजूद समय मे 114 विधायक दागी हैं।

क्या भाजपा अपने इन विधायकों को छोड़ने का जोखिम उठाएगी। ये सबसे बड़ा सवाल है। इधर प्रयागराज की विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट ने सरकार से उनके खिलाफ मामले वापस लेने की अनुमति दे दी है। अब कोई ऐसा कारण नही बचा है कि आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में इन विधायकों फिर से चुनाव लड़वाने का फैसला भाजपा न ले।

विगत 2014 में भी यूपी के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने भी बसपा सांसद कादिर राणा के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने के लिए मुजफ्फरनगर प्रशासन को बोला था, कादिर राणा मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी थे। इसलिये प्रशासन ने अपने द्वारा दर्ज कराए गए मामलों को वापस लेने से तत्कालीन सीएम से इनकार कर दिया था। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू पर भी कोरोना काल में कई मामले दर्ज हैं। वे भी इस बार चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। अब उन्हें खुद ही अपने ऊपर दर्ज मामलों को खत्म करवाना होगा।

1980 से राजनीति में अपराधियों व माफिया का प्रवेश शुरू हुआ था

यूपी में विगत वर्ष 1980 के दशक से राजनीति में अपराधियों व माफिया का प्रवेश शुरू हुआ था, जो अब 2022 के आगामी विधानसभा में चुनाव में भी देखने को मिलेगा। तबके पूर्वांचल के बाहुबली माफिया हरिशंकर तिवारी के रूप में यूपी की राजनीति में माफिया का प्रवेश होना शुरू हुआ। उसके बाद से मुख़्तार अंसारी, अतीक अहमद, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अक्षय प्रताप सिंह, अखण्ड प्रताप सिंह जैसे न जाने कितने पूर्वांचल के माफिया हैं राजनीति में प्रवेश पाने के बाद से सत्ता के शीर्ष पर पहुंचते गए।ज्यदातर माफिया को सत्ता धारी दलों ने एक बार नहीं कइयों बार मंत्री पद से सुशोभित भी किया।

इन मफियाओं को राजनीतिक संरक्षण दिए जाने के पीछे रणनीतिक दलों को सबसे बड़ा फायदा यह मिलता है कि उनके इलाके में उनके प्रभाव के कारण कई विधानसभा सीटों पर बिना कोई मेहनत किये ही पार्टियां जीत जातीं हैं। बस यही कारण है कि इन मफियाओं को राजनीतिक दल चुनाव आते ही भाव देना शुरू कर देते हैं। जैसे कि भाजपा में वर्तमान समय में विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा पर आपराधिक मामले हैं ये दोनों विधायक भड़काऊ भाषण देने के आरोप में जेल भी गए थे लेकिन भाजपा इस बार भी इनके टिकट काटने का जोखिम नही उठा सकती है क्योंकि भाजपा हाईकमान को पता है कि इनकी अपनी सीट के साथ साथ आसपास की सीटों जिताने के प्रभाव है। इस तरह के भाजपा के खेमे में 114 विधायक दागी किस्म के हैं अब 2022 के चुनाव में भाजपा कितने दागी विधायकों का टिकट काटने का जोखिम ले पायेगीं यह तो वक्त ही बताएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को दिए ये आदेश 

अब इधर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एक आदेश किया है कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले विधायकों के खिलाफ मामले वापस लेने के लिए सम्बंधित उच्च न्यायालयों से मंजूरी लेने को कहा है। अब यह आदेश तो यूपी के प्रत्येक राजनैतिक दलों की मनमर्जी का आदेश है। अब यह दीगर बात है कि उच्च न्यायालय, कितने विधायकों के आपराधिक मामले वापस लेने की मंजूरी देगी।

सूबे की समाजवादी पार्टी में भी मौजूदा विधायकों में 47 में से 14 का आपराधिक इतिहास है। 2022 के चुनाव में भाजपा की ही तरह सपा भी बहुमत वाली सीटे जितने का लक्ष्य रखेगी। इसलिये जीतने की योग्यता रखने वाले माफिया को पार्टी टिकट दे सकती है। इसका ताजा उदाहरण तो यही है कि पूर्वांचल के माफिया हरिशंकर तिवारी के परिवार को सपा शामिल करने जा रही है इसके पीछे जीत का ही गणित फिट है। चुनाव आयोग व न्यायालय के लिये यूपी की राजनीति में लगातार बढ़ रहे अपराधीकरण चिंता का विषय हो सकते हैं लेकिन सूबे के प्रत्येक राजनैतिक दलों के लिये यह अब कोई खास चिंता का विषय नहीं है। ठीक उसी तरह से जैसे अब सत्ता में आने वाली हर सरकारों के लिये युवाओं की बेरोजगारी कोई खास चिंता का विषय अब नहीं रह गयी है।

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