विपक्षियों का सियासी प्लान: इसलिए बढ़ा ब्राह्मण प्रेम, नजर इन 6 विधानसभा सीटों पर...
उत्तर प्रदेश में अचानक शुरू हुई ब्राहम्ण वोटों की राजनीति और परशुराम प्रेम बेमकसद नहीं है। इसके पीछे विपक्षी दलों की सुनियोजित रणनीति है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अचानक शुरू हुई ब्राहम्ण वोटों की राजनीति और परशुराम प्रेम बेमकसद नहीं है। इसके पीछे विपक्षी दलों की सुनियोजित रणनीति है। फिलहाल विपक्षी दलों की यह रणनीति विधानसभा की रिक्त चल रही उन आधा दर्जन सीटों के लिए है, जिन पर आगामी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले उपचुनाव हो सकते है। यूपी में फिलहाल घाटमपुर,मल्हनी, बुलंदशहर, स्वार, बांगरमऊ और टूंडला सीट रिक्त है।
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यूपी में भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से अपना वर्चस्व बना रखा है
दरअसल, यूपी में भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से अपना वर्चस्व बना रखा है उससे विपक्षी दलों के खेमों में हडकंप मचा हुआ है। जातिगत गोलबंदी की राजनीति करने वाले विपक्षी दलों की जातीय राजनीति के चक्रव्यूह को भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरणों को साधने के लिए विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा।
सपा और बसपा का मानना था कि सपा का मुस्लिम और यादव वोट बैंक तथा बसपा का दलित वोट बैंक मिलकर भाजपा को परास्त कर देगा लेकिन मोदी कार्ड के आगे यह सभी जातीय समीकरण ध्वस्त हो गये और भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई। कुल मिलाकर वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही यूपी में जातीय राजनीति हाशिये पर आ गई है। विपक्षी दलों के पास भाजपा के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति के पुरोधा नरेंद्र मोदी को टक्कर देने वाले स्वीकार्य नेता का अभाव उन्हे बार-बार जातीय राजनीति करने पर मजबूर कर रहा है।
यूपी में 06 विधानसभा सीटे खाली है
इसी क्रम में अब जबकि यूपी में 06 विधानसभा सीटे रिक्त है और संभावना है कि जल्द ही चुनाव आयोग इन सीटों पर उपचुनाव करवा सकता है तो विपक्षी दलों ने एक बार फिर जातीय समीकरण साधने शुरू कर दिए है। इसके लिए विपक्षी दलों ने एक बार फिर ब्राहम्ण कार्ड खेला है और इसके लिए पूरी रणनीति भी तैयार की है। यूपी की योगी सरकार को लगातार ब्राहम्ण विरोधी करार देना इसी विपक्षी रणनीति का हिस्सा है। विपक्षी दलों का मानना है कि अगर इन 06 सीटों पर संभावित उपचुनाव में ब्राहम्ण वोटों के सहारे वह भाजपा को परास्त कर सकें तो आगामी विधानसभा चुनाव में वह एक बार फिर जातीय समीकरणों को मजबूती के साथ साध कर भाजपा से मुकाबला कर पायेंगे।
इन वजह से खाली हुई सीटें
बता दे कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री कमल रानी वरुण के निधन से कानपुर नगर की घाटमपुर विधानसभा सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया है। जबकि इससे पहले बीती 02 मार्च को भाजपा के वीरेंद्र सिरोही के निधन के कारण बुलंदशहर विधानसभा सीट रिक्त हुई तो बीती 12 जून को जौनपुर की मल्हनी विधानसभा सीट सपा के पारसनाथ यादव के निधन के कारण रिक्त हुई।
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इसके साथ ही उन्नाव जिले की बांगरमऊ सीट भाजपा के कुलदीप सिंह सेंगर के अयोग्य घोषित होने बीती 20 दिसंबर 2019 से रिक्त है। जबकि रामपुर की स्वार विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के अब्दुला आजम खां की सदस्यता शून्य किए जाने के कारण रिक्त है। इसके अलावा फिरोजाबाद की टंूडला विधानसभा सीट भी रिक्त है। टूंडला से भाजपा के सत्यपाल सिंह बघेल सांसद हो गए है और उन्होंने विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया है। हालांकि, टंूडला विधानसभा सीट का चुनाव बीते साल अक्टूबर में हुए उपचुनाव में ही होना था लेकिन कुछ विवादों के कारण चुनाव आयोग ने इस सीट पर उपचुनाव नहीं कराया था।
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