UP Ke Top Mafia: हर राजनीतिक दल में पलने पोसने का मौका मिलता रहा माफियाओं को
UP Ke Top Mafia: चलिए जानते है कि उत्तर प्रदेश में ऐसे कितने माफिया है, जिन्हेंं राजनीतिक दलों ने अपने दल में शरण दी...
UP Ke Top Mafia: विधानसभा चुनाव (Vidhan Sabha Chunav) के पहले भले ही हर राजनीतिक दल अपराधियों, माफियाओं से दूर रहने की बात कर रहा हो, पर ऐसा कोई दल नहीं रहा, जिसमे अपराध से जुड़े लोगों को राजनीति में पलने पोसने का मौका न मिला हो। मजेदार बात तो यह है कि हर चुनाव के पहले राजनीति के क्षेत्र में अपराधियों को दूर करने की बात होती है, पर राजनीतिक दल किसी न किसी बहाने ऐसे अपराधियों को अपने दल में शरण देने से परहेज नहीं करते हैं।
मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari)
बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी इस समय बसपा (BSP) से विधानसभा के सदस्य हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने पुत्र को भी मैदान में उतारा था । लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी वाराणसी से बसपा से उम्मीदवार थे। वे कभी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में तो नहीं रहे लेकिन मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की कृपा उनपर खूब बरसी।
उन्होंने अपना कौमी एकता दल (Quami Ekta Dal) भी बनाया । जिसका उन्होंने सपा में विलय करना चाहा, लेकिन अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से विरोध के चलते उनके दल का विलय नहीं हो सका।
1996 में बसपा से, 2002 और 2007 में निर्दल, 2012 में अपने कौमी एकता दल से और 2017 में बसपा के टिकट पर निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे। बाद में 2017 के विधाानसभा चुनाव से ठीक पहले उनके भाई अफजाल अंसारी और मुख्तार अपने बेटे समेत बसपा में शामिल हो गए थे। उनके भाई अफजाल अंसारी बसपा से सांसद हैं।
अतीक अहमद (Atique Ahmed)
अब माफिया अतीक अहमद को ही लीजिये। पूर्व विधायक राजूपाल की हत्या के आरोपी तथा हत्या, लूट और रंगदारी जैसे दर्जनों अपराधिक मामलों में लिप्त अतीक अहमद को सियासत में सपा, बसपा की सरकारों में खूब फलने फूलने का मौका मिला। यहीं नहीं, वे अपना दल के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे है। अतीक अहमद 2004 में सपा के टिकट पर फूलपुर से जीते थे। इसके बाद वह 2008 में सपा से बाहर कर दिए गए। फिर 2014 में लोकसभा चुनाव श्रावस्ती से लड़े, जिसमें उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा।
पांच बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके अतीक अहमद के भाई अशरफ अहमद (Ashraf Ahmed) भी सपा से विधायक रहे । वो भी इस समय किसी दल में नहीं है। दोनों भाइयों से सारे प्रमुख दलों ने दूरी बना ली है। अब अतीक अहमद के परिवार को ओवेसी की पार्टी (Owaisi Ki Party AIMIM) से टिकट मिलने की आस है।
धनंजय सिंह (Dhananjay Singh)
जेडीयू (JDU) से विधानसभा में अपनी आमद दर्ज कराने वाले धनंजय सिंह को भी इस समय किसी दल से टिकट की आस है। वह बसपा समेत कई दलों में जाकर वापस आ चुके हैं । 2002 में जौनपुर की रारी से लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) से, 2007 में जेडीयू से चुनकर विधानसभा पहुंचे। 2008 में बसपा में शामिल हुए और 2009 में बसपा के टिकट पर संसद पहुंचे। सांसद चुने के बाद अपनी रिक्त सीट पर अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा से विधानसभा भिजवाया। 2012 मे अपनी पत्नी (Dhananjay Singh Wife) डॉ. जागृति सिंह को विधानसभा चुनाव में उतरने का काम किया। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में स्वयं निर्दल लड़े पर वह चुनाव हार गए।
डीपी यादव (D. P. Yadav)
सपा, बसपा में रहे धर्मपाल यादव (डीपी यादव) को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लिकर किंग (Licker King) के नाम से जाना जाता है। वे मुलायम सिंह यादव की तत्कालीन सरकार में पंचायती राज विभाग के राज्यमंत्री भी रहे। बाद में बसपा में शामिल हुए। बसपा से बाहर होने के बाद उन्होंने अपना राष्ट्रीय परिर्वतन दल भी बनाया। बाद में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। लेकिन विडम्बना यह रही सुबह बीजेपी (BJP) में शामिल हुए जिस पर पार्टी में इतना विरोध हुआ कि उन्हें शाम को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
उनकी पत्नी उमलेश यादव भी विधायक रही है और पेड न्यूज के मामलें को लेकर उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त की जा चुकी है। चार बार विधायक रहे डीपी यादव का नाम 1992 में विधायक सुरेन्द्र भाटी की हत्या में भी आया था। डेढ़ दर्जन से अधिक मामलों में आरोपी डीपी यादव इस समय किसी दल में नहीं है । डीपी यादव 1989 में जनता दल से,1991 में जनता पार्टी से 1993 में सपा से और 2007 में अपने राष्ट्रीय परिवर्तन दल से निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे।
बृजेश सिंह (Brijesh Singh)
बृजेश सिंह भी विधानपरिषद के सदस्य रह चुके है। इससे पूर्व इनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह भी विधानपरिषद सदस्य रही है। इन्हे मुख्तार अंसारी का प्रबल प्रतिद्वन्दी माना जाता है।
बृजेश सिंह 2012 में सैय्याराजा विधानसभा सीट से ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से चुनाव भी लड़े थे । लेकिन मात्र डेढ़ हजार वोटों से उन्हे हार का सामना करना पड़ा था। इनके भतीजे सुशील कुमार सिंह इस समय भाजपा से विधायक है । जबकि इनके बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह भी भाजपा से एमएलसी रह चुके है।
हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari)
अस्सी के दशक में हरिशंकर तिवारी का पूर्वाचल की राजनीति में सिक्का चलता था। वे तत्कालीन मुलायम सरकार के अलावा कल्याण सिंह , रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह की सरकारों में कैबिनेट मंत्री भी रहे। 2007 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त मिलने के बाद फिर किसी दल ने उनकी ओर नहीं देखा। अब उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे संभाल रहे है। छह बार उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अपनी आमद दर्ज करा चुके पूर्वाचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी 2017 में बसपा से विधायक बने।