UP Nikay Chunav 2023: मेरठ नगर निगम- सियासी भंवर में जो उतरा फिर नहीं निकला बाहर
UP Nikay Chunav 2023: 1995 में हाजी याकूब पार्षद चुने गए और फिर डिप्टी मेयर बने। 2002 में खरखौदा से बसपा टिकट पर चुनाव जीत कर मायावती के मुख्यमंत्रित्वकाल में भी प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। बाद में वें मुलायम सिंह मंत्रिमंडल में भी मंत्री रहे। लेकिन जहां तक राजनीति की बात है तो नगर निगम हमेशा उनकी राजनीति के प्रिय विषयों में शामिल रहा। यही कारण रहा कि 2006 में मेरठ की महापौर सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होने पर उनके द्वारा अपनी पत्नी संजीदा बेगम को महापौर का चुनाव लड़वाया गया।
UP Nikay Chunav 2023: नगर निगम को राजनीति की नर्सरी कहा जाता है। इस नर्सरी में राजनीति का गुणा-गणित सीखकर कई नेताओं का भाग्योदय हुआ है। कई पार्षदों ने किस्मत आजमाई और विधानसभा, संसद यहां तक कि प्रदेश सरकार में मंत्री पद तक भी पहुंचे। खास बात यह भी कि नगर निगम की राजनीति का स्वाद चखने वाले इसके मोहपाश से बाहर नहीं निकल सके। मसलन, पूर्व मंत्री एवं राज्यसभा सांसद डॉ. लक्ष्मीकांत बावजपेयी नगर निगम की राजनीति में डूबे तो ऐसे कि विधायक, सासंद व प्रदेश सरकार में मंत्री बनने के बाद भी वह नगर निगम की राजनीति में ही अपने विरोधियों से दो-दो हाथ करते आज भी दिख जाते हैं।
कमोवेश यही हाल पूर्व मंत्री याकूब कुरैशी का रहा है। प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद बेशक याकूब कुरैशी अपनी पार्टी (बसपा) में ही नहीं बल्कि राजनीति में भी हाशिये पर हैं। लेकिन, इससे पहले वे नगर निगम की राजनीति में ही अधिक दिलचस्पी लेते दिखे। बता दें कि याकूब कुरैशी ने 1989 में नगर निगम की राजनीति में सक्रिय रुप से कदम रखा रखा था। 1995 में हाजी याकूब पार्षद चुने गए और फिर डिप्टी मेयर बने। 2002 में खरखौदा से बसपा टिकट पर चुनाव जीत कर मायावती के मुख्यमंत्रित्वकाल में भी प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। बाद में वें मुलायम सिंह मंत्रिमंडल में भी मंत्री रहे। लेकिन जहां तक राजनीति की बात है तो नगर निगम हमेशा उनकी राजनीति के प्रिय विषयों में शामिल रहा। यही कारण रहा कि 2006 में मेरठ की महापौर सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होने पर उनके द्वारा अपनी पत्नी संजीदा बेगम को महापौर का चुनाव लड़वाया गया।
हाजी अखलाक
निगम के पहले बोर्ड में पार्षद रहे हाजी अखलाक ने भी 1993 का विधानसभा चुनाव मेरठ शहर सीट से जनता दल से लड़ा और विधानसभा पहुंचे और जब तक जीवित रहे नगर निगम की राजनीति में उलझे रहे। पिता हाजी अखलाक के नक्शे कदम पर चलते हुए उनके बेटे पूर्व सांसद शाहिद अखलाक ने भी अपना राजनीतिक सफर निगम से ही शुरू किया। शाहिद अखलाक 2000 में बसपा से चुनाव लड़कर मेरठ महापौर बने थे। 2004 में बसपा से लोकसभा चुनाव लड़कर मेरठ के सांसद बने। शाहिद अखलाक की दिलचस्पी भी नगर निगम की राजनीति में रही है। यह अलग बात है कि प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद वें भी राजनीति में कम सक्रिय हैं।
रफीक अंसारी
मेरठ शहर के सपा विधायक रफीक अंसारी का राजनीतिक सफर भी नगर निगम से शुरू हुआ। वह लगातार तीन बार 1995, 2000 और 2006 में पार्षद चुने गए। 2012 में सपा प्रत्याशी के रूप में मेरठ शहर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसी वर्ष महापौर का चुनाव भी लड़ा लेकिन विफल रहे। 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर से इसी सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने। 2022 की रण भी उन्होंने जीता। लेकिन,जहां तक राजनीति की बात है तो वें भी नगर निगम की राजनीति के मोहपाश से कभी बाहर नहीं निकल सके। इसी तरह 1964 में नगर पालिका की राजनीति में सदस्य के रुप में प्रवेश करने वाले अय्यूब अंसारी 1995 में मेयर हने। अय्यूब अंसारी हालाकि लोकसभा व विधानसभा के चुनाव भी लड़े लेकिन आखरी समय तक वें भी नगर निगम की राजनीति में डूबे रहे।