CM Yogi Vs UP Mafia: ये कहानियां है सबूत, जिसने भी योगी को किया चैलेंज, मिट्टी में मिला दिया
CM Yogi Vs UP Mafia: योगी आदित्यनाथ को जिसने भी चैलेंज किया उसे उन्होंने मिट्टी में मिला दिया। चाहे वह हरिशंकर तिवारी हों, अतीक अहमद रहा हो, विजय मिश्रा, मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी, आजम खान हों, विकास दूबे रहा हो। जो भी योगी से टक्कर लिया उसको योगी ने मिट्टी में मिला दिया।
CM Yogi Vs UP Mafia: योगी आदित्यनाथ को जिसने भी चैलेंज किया उसे उन्होंने मिट्टी में मिला दिया। चाहे वह हरिशंकर तिवारी हों, अतीक अहमद रहा हो, विजय मिश्रा, मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी, आजम खान हों, विकास दूबे रहा हो। जो भी योगी से टक्कर लिया उसको योगी ने मिट्टी में मिला दिया।
24 फरवरी 2023 को प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड के बाद सपा, बसपा, कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए तो उन्होंने विधानसभा में इसका करारा जवाब देते हुए कहा था, ‘माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा’। यह पहला मामला नहीं है, जब-जब सूबे में कानून व्यवस्था पर सवाल उठे और माफियाओं के हौसले बुलंद हुए तब-तब सख्त कार्रवाई कर उदाहरण पेश किया गया।
6 साल में 62 माफियाओं और उनके गैंग पर लिया एक्शन-
जब से यूपी में योगी सरकार आई तब से माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है। 2017 में यूपी में योगी सरकार सत्ता में आई उसके बाद से योगी सरकार के 6 साल के कार्यकाल के दौरान दुर्दांत अपराधियों और माफियाओं पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई। इस दौरान सूबे में 62 माफियाओं और उनके गैंग पर ताबड़तोड़ एक्शन लिया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 406 अपराधियों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई हुई। इनके पास से 1577 करोड़ रुपए से अधिक की सम्पत्ति भी जब्त की गई। वहीं, 1098 करोड़ रुपए की सम्पत्ति ध्वस्त या मुक्त कराई गई।
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इनमें सबसे ताजा मामला है बाहुबली माफिया डान मुख्तार अंसारी और उसके सांसद भाई अफजाल अंसारी का। मुख्तार अंसारी को कृष्णानंद राय हत्याकांड मामले में 29 अप्रैल को गाजीपुर की एमपीएमएलए कोर्ट ने दस साल की सजा और पांच लाख का जुर्माना लगाया है। वहीं उसके भाई अफजाल अंसारी को चार साल की सजा सुनाई गई। अफजाल अंसारी गाजीपुर से बसपा के सांसद हैं। इस सजा के बाद अफजाल की संसद सदस्यता जानी तय है।
13 अप्रैल को अतीक अहमद के बेटे असद का एनकाउंटर हुआ। आइए जानतें हैं- हरिशंकर तिवारी से लेकर मुख्तार अंसारी तक योगी राज में नेस्तनाबूद हुए माफियाओं और कानून-व्यवस्था को चुनौती देने वालों की कहानी।
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हरिशंकर तिवारीः योगी के सत्ता में आते ही शुरू हुई छापेमारी-
हरिशंकर तिवारी पूर्वांचल के माफियाओं की लिस्ट में बड़ा नाम रहा है। गोरखपुर के बांसगांव संसदीय क्षेत्र के चिल्लूपार विधानसभा से कई बार विधायक रहे हैं। हरिशंकर तिवारी का नाम 1985 में अचानक से चर्चा में आया था जब जेल में रहते हुए चिल्लूपार से जीत हासिल की। यह भारतीय राजनीति में पहला मामला था, जब जेल से रहते हुए किसी इंसान ने विधायकी का चुनाव जीता। हरिशंकर ने कांग्रेस प्रत्याशी मार्कंडेय नंद को 21 हजार से अधिक वोटों से हराया।
70 के दशक की है बात है जब समाजवादी नेता जय प्रकाश की क्रांति का असर पूरे देश पर हो रहा है। जेपी आंदोलन का असर छात्र राजनीति पर भी पड़ा। उस दौर में हरिशंकर तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय के एक बड़े छात्र नेता बनकर उभरे रहे थे, लेकिन उस समय दो गैंग बंटे हुए थे एक ब्राह्मण और दूसरा ठाकुर। दोनों ही गैंग अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए आए दिन भिड़ जाते थे। इन गुटों के मुखिया थे हरिशंकर तिवारी और बलवंत सिंह। दोनों का एक ही मकसद था गोरखपुर में दबंगई को कायम रखना और सरकारी ठेकेदारी पर कब्जा करना।
धीरे-धीरे हरिशंकर तिवारी की दबंगई बढ़ती गई और इसके साथ रेलवे और शराब के ठेके के कारोबार में दबदबा बढ़ने लगा। दबदबे के साथ हत्या, हत्या के लिए साजिश रचने, किडनैपिंग, रंगदारी वसूलने समेत 26 से अधिक मामले हरिशंकर तिवारी पर दर्ज हुए।
योगी आदित्यनाथ ने जिस दिन यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उसी के कुछ दिनों बाद से ही असर दिखने लगा। शपथ ग्रहण के कुछ दिन बाद ही पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी के घर पर छापेमारी हुई। सीबीआई ने अक्टूबर 2020 में बेटे और उस समय के बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी और बहू रीता पर केस दर्ज किया। बेटे पर बैंक फ्रॉड करने का मामला दर्ज हुआ और कई जगह छापेमारी हुई।
मुख्तार अंसारीः कृष्णानंद राय की हत्या समेत 16 मुकदमे-
एक समय था मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी। मुख्तार अंसारी पर हत्या, वसूली, दंगा भड़काने, धोखाधड़ी और जमीन पर कब्जा करने समेत 52 आपराधिक मामले दर्ज हुए। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान कई मामलों में गवाहों के बयान से पलटने और सरकारी वकील की दमदार पैरवी न होने के कारण इन्हें कोर्ट ने बरी कर दिया, लेकिन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या समेत 16 मुकदमे अभी भी इन पर चल रहे हैं।
मुख्तार 1996 में पहली बार बसपा के टिकट से मऊ विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत कर विधाससभा पहुंचा, इसके बाद वह लगातार 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में मऊ से विधानसभा का चुनाव जीता। मुख्तार आखिरी तीन चुनाव जेल में रहते हुआ लड़ा। 1985 से गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट 2002 में भाजपा के कृष्णानंद राय ने छीन ली। जीत के 3 साल बाद उनकी हत्या हो गई। जिस समय हत्या हुई उस समय मुख्तार जेल में बंद था, लेकिन सीधे तौर पर मामला 17 साल पुरानी सीट से जुड़ा था और अंसारी की नाराजगी जगजाहिर थी, इसलिए हत्या के बाद जेल में बंद अंसारी का नाम इस हत्याकांड में जोड़ा गया। भाजपा की मौजूदा सरकार में मंत्री और गाजीपुर से सांसद मनोज सिंह ने इस मामले में मुख्तार के खिलाफ गवाही दी।
हालांकि इस मामले में गवाहों के अपने बयान से मुकरने के बाद अंसारी जेल से छूट गया, लेकिन उसका गैंग सक्रिय रहा। 2017 में यूपी में भाजपा की योगी सरकार बनी उसके बाद अंसारी पर शिकंजा कसना शुरू किया गया। योगी सरकार 15 मामलों में मुख्तार को सजा दिलाने की कोशिश में है। योगी सरकार पहले ही अंसारी के गैंग की 192 करोड़ रुपए की सम्पत्ति को या तो जब्त कर चुकी है या ध्वस्त कर चुकी है। यही नहीं योगी सरकार ने अंसारी के 75 गुर्गों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की। कृष्णानंद राय की हत्या मामले में ही 29 अप्रैल 2023 को गाजीपुर की एमपीएमएलए कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को दस साल की सजा और पांच लाख रुपए जुर्माना की सजा सुनाई है।
विजय मिश्रा- चार बार विधायक रहे, 5 साल की जेल
बाहुबली विजय मिश्रा भदोही की ज्ञानपुर विधानसभा सीट से 4 बार विधायक रहे। जब से योगी सरकार आई विजय मिश्रा भी राडार पर आ गए। सपा के टिकट पर तीन बार और निषाद पार्टी की टिकट पर एक बार विधानसभा पहुंचने वाले विजय मिश्रा पर राजनीतिक सफर के दौरान कई आरोप लगे और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में आपराधिक मामलों में एफआईआर भी दर्ज की गई। मार्च में प्रयागराज की विशेष न्यायालय ने विजय मिश्रा को 5 साल कारावास की सजा का आदेश जारी किया। विजय पर आर्म्स एक्ट के मामले प्रयागराज के फूलपुर थाने में केस दर्ज था। दरअसल, विजय मिश्रा पर एक चुनावी सभा के दौरान सरकारी गनर के हथियार से फायरिंग करने का आरोप लगा था। कोर्ट ने इस मामले में उन्हें 5 साल की सजा सुनाई थी।
विकास दुबे- 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद एनकाउंटर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में ही कानपुर के बिकरू कांड का गुनाहगार अपराधी विकास दुबे का सफाया हुआ। विकास उत्तर प्रदेश का दुर्दांत अपराधी था और उसके नाम 5 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया गया था। रियल एस्टेट से करियर की शुरुआत करने वाले विकास ने अपराध की दुनिया में कदम रखा। जेल में रहते हुए 2000 में उसने जिला पंचायत चुनाव में शिवराजपुर से जीत दर्ज किया था। चुनाव से पहले लूट और हत्या करना ही उसका पेशा था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद नेताओं से उसकी करीबी बढ़ने लगी। हौसले इतने बुलंद हो गए थे कि उसके गुर्गों ने गोली मारकर 8 पुलिस कर्मचारियों की हत्या कर दी। इसके बाद से ही वो मोस्ट वांटेड क्रिमिनल के तौर पर जाना जाने लगा। पुलिस की हत्या के आरोप में 13 अगस्त 2021 को कानपुर से 17 किलोमीटर दूर भौती में पुलिस ने सुबह उसका एनकाउंटर कर दिया।
आजम खान- योगी सरकार ने जौहर ट्रस्ट की जमीन वापस ली, 80 से ज्यादा मामले दर्ज
सपा सरकार में आजम खान की तूती बोलती थी, लेकिन समय बदला और उनकी बोलती भी धीरे-धीरे बंद होने लगी। भड़काऊ भाषण देने और जौहर ट्रस्ट की जमीन की खरीद में हेरफेर करने वाले समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक आजम खान पर भी सीएम योगी नजरें तीरछी रही हैं। आजम पर कुल 80 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। आजम को पहले भड़काऊ भाषण मामले में रामपुर कोर्ट ने दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुनाई, इसके बाद जौहर ट्रस्ट के लिए खरीदी गई जमीन में नियमों का उल्लंघन करने पर योगी सरकार ने कार्रवाई की और 70 हेक्टेयर जमीन आजम से वापस ली।
इसी साल फरवरी में छजलैट मामले में आजम खान और बेटे अब्दुल्ला आजम को दोषी करार देते हुए 2-2 साल की सजा सुनाई गई। दरअसल यूपी के छजलैट में आजम खान की कार को चेकिंग के लिए रोका गया था, जिसके बाद उनके समर्थक भड़क गए थे। इस मामले में कई लोगों को आरोपी बनाया गया। सरकारी काम में बाधा डालने और भीड़ को उकसाने के आरोप में कार्रवाई की गई थी।
अतीक अहमदः 102 मुकदमे और आजीवन कारावास
प्रयागराज और आसपास के जिलों में अतीक का आतंक फैला हुआ था। अतीक भी अपनी पिता की राह पर चला। अतीक के पिता हाजी फिरोज तांगा चलाते थे और आपराधिक प्रवृत्ति के इंसान थे। अतीक पर 18 साल की उम्र में 1983 में पहली एफआईआर दर्ज हुई थी। यहीं से अतीक का हौसला बढ़ने लगा और उसके गुनाहों की लिस्ट भी बढ़ती गई। अतीक ने 1989 में राजनीतिक सफर शुरू किया और इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा पहुंचा। अतीक अहमद लगातार कई चुनाव जीता। राजनीति के साथ उसका अपराध की दुनिया में भी कद बढ़ने लगा।
2004 में वह सपा के टिकट से फूलपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत कर संसद पहुंचा। 2007 में बसपा की सरकार बनने पर मायावती ने अतीक पर शिकंजा कसा और एक-एक करके 10 मुकदमे दर्ज कराए। इस सख्ती के बाद अतीक फरार हो गया। दबाव बढ़ता देखकर अतीक ने सरेंडर कर दिया।
2014 में यूपी में सपा की सरकार बनने पर अतीक को जमानत मिली और श्रावस्ती से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया। 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने पर अतीक पर शिकंजा कसना शुरू हुआ। व्यापारी की पिटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अतीक को दूसरे राज्य की जेल में भेजने का आदेश दिया। उसे अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया था। तब से वो वहीं, था। उमेश पाल अपहरण हत्याकांड में उसे प्रयागराज की एमपीएमएलए कोर्ट में पेश किया गया था, जहां कोर्ट ने उसे आजीवन करावास की सजा सुनाई थी। अतीक पर धमकी, हत्या की कोशिश और अपहरण समेत 102 मामले दर्ज थे। 3 बार गैंगस्टर एक्ट लगा।
अतीक को उत्तर प्रदेश की अलग-अलग जेलों में रखा गया। जेल में भी उसने दरबार लगाना जारी रखा। उमेश पाल हत्याकांड मामले में पूछताछ के लिए अतीक अहमद को 12 अप्रैल को साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया था। वहीं 13 अप्रैल को उसके बेटे असद को यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया। 15 अप्रैल को अतीक अहमद की प्रयागराज में तीन युवकों ने गोली मार कर हत्या कर दी। अतीक अहमद और उसके गुर्गों पर योगी का शिकंजा ऐसा कसा की उसकी और उसके गुर्गों की करोड़ों की संपत्ति सरकार ने जब्त की और कई अवैध निर्माण को ध्वस्त कर दिया।
योगी के सत्ता में आने के बाद से छह साल में जिन अपराधियों की पहले तूती बोलती थी उनकी आज बोलती बंद हो गई है। योगी को जिसने भी चैलेंज किया आज योगी ने उसे मिट्टी में मिला दिया।