UP: बच्चों की शिक्षा से मजाक, बिल्डिंग-पानी भी मयस्सर नहीं, क्या ऐसे संवरेगा भविष्य?

उत्तर प्रदेश में बच्चों को उन्नत भविष्य का सपना दिखाने वाली बेसिक शिक्षा दम तोड़ती नजर आ रही है। अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद यूपी सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर क्वालिटी एजुकेशन के मामले में बैकफुट पर खड़ी नजर आ रही है। हालत यह है कि स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई के लिए न तो डेस्क व बेंच है और न पीने के लिए पानी।

Update:2017-06-02 20:00 IST

SUDHANSHU SAXENA

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बच्चों को उन्नत भविष्य का सपना दिखाने वाली बेसिक शिक्षा दम तोड़ती नजर आ रही है। अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद यूपी सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर क्वालिटी एजुकेशन के मामले में बैकफुट पर खड़ी नजर आ रही है। हालत यह है कि स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई के लिए न तो डेस्क व बेंच है और न पीने के लिए पानी। कई स्कूलों के पास भवन नहीं है तो कई स्कूलों का भवन बेहद जर्जर स्थिति में है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई कैसे हो रही होगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।

लखनऊ के जबरौली गांव का जर्जर प्राथमिक स्कूल हो या आगरा के खवासपुर में एक गली में बिना छत के लगने वाला सरकारी स्कूल। बिना बिल्डिंग और अन्य सुविधाओं के संचालित होने वाले इन स्कूलों में नौनिहालों को शिक्षित बनाने के नाम पर मजाक ही किया जा रहा है।

58 प्रतिशत स्कूलों में जमीन पर बैठ रहे बच्चे

सर्व शिक्षा अभियान ने 2016-17 के शैक्षिक सत्र में एक आधिकारिक सर्वे कराया और यूपी के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं को आंकलन किया।

-कक्षा 1 से 5 तक के कुल एक लाख 13 हजार 249 प्राथमिक स्कूल हैं।

-कक्षा 6 से 8 तक के 45 हजार पांच सौ नब्बे उच्च प्राथमिक स्कूल हैं।

-कक्षा 1 से 8 तक के 58 प्रतिशत स्कूलों में बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं।

-कक्षा 1 से 5 तक के स्कूलों में से मात्र 59 हजार 965 स्कूलों में ही फर्नीचर है।

-कक्षा 6 से 8 तक के स्कूलों में से मात्र 6 हजार 8 सौ 33 स्कूलों में ही फर्नीचर है।

-यूपी के 42 प्रतिशत सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में फर्नीचर है।

-शेष 58 प्रतिशत स्कूलों में बच्चे जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। ऐसा तब है जब 2016 में कृष्ण प्रकाश त्रिपाठी की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को बेसिक स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर फटकार तक लगाई है।आगे की स्लाइड्स में जानें 3,000 स्कूलों में नहीं है कोई सुविधा

3,000 स्कूलों में पीने के लिए पानी ही नहीं

यूपी सर्व शिक्षा अभियान के आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी के 3,000 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में नौनिहालों को पानी जैसी बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। यूपी के कक्षा 1 से 5 तक के एक हजार पांच सौ बयालीस स्कूलों में पानी की सुविधा नहीं है। कक्षा 6 से 8 तक के एक हजार तीन सौ उन्यासी उच्च प्राथमिक स्कूलों में बच्चे पानी के लिए तड़पते रहते हैं यानी कुल तीन हजार स्कूलों में पीने के लिए पानी तक नहीं मिलता है। बच्चों को घर से पानी लाना पड़ता है या स्कूल के बाहर लगे नलों से पानी पीने जाना पड़ता है।

सौ से ज्यादा स्कूलों की बिल्डिंग नहीं

यूपी में बेसिक शिक्षा विभाग के एक लाख 58 हजार आठ सौ 39 स्कूल हैं। इनमें से करीब एक सौ से ज्यादा स्कूल बिना बिल्डिंग के चल रहे हैं। इनमें रामपुर जनपद में सर्वाधिक 21 स्कूल बिना बिल्डिंग के हैं। बहराइच में 12, खीरी में 10, देवरिया में 9, बाराबंकी में 5, बदांयू में 5, मि$र्जापुर में 3, सुल्तानपुर में 3 और इटावा, मैनपुरी सहित करीब 25 जिलों में बगैर बिल्डिंग के स्कूल हैं।

1500 स्कूलों में टॉयलेट नहीं

यूपी के करीब 1,479 स्कूलों में टायलेट की व्यवस्था नहीं है। इनमें सर्वाधिक जालौन जनपद में 218 टायलेट की अनुपलब्धता है। इसी तरह फैजाबाद में 136, बदायूं में 140, बरेली में 54, बलिया में 38, फिरोजाबाद में 44, हमीरपुर में 91, गाजीपुर में 58 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।

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क्या कहते हैं अधिकारी

लखनऊ के बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी ने बताया कि जनपद में कुल 1361 प्राइमरी और 454 उच्च प्राथमिक स्कूल हैं जिनमें से सबमें शौचालय की व्यवस्था है। इसके साथ ही जहां फर्नीचर आदि नहीं है या भवन जर्जर हैं, उसके लिए प्रस्ताव भेज दिया गया है।

निदेशक बेसिक शिक्षा सर्वेंद्र कुमार ने बताया कि हमारा प्रयास है कि हर स्कूल में नौनिहालों को बुनियादी सुविधाएं जरूर मिलें। जिस स्कूल में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, वहां उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करवाई जा रही है।

जिलों का हाल बेहाल

रायबरेली जिले में करीब 2700 परिषदीय स्कूल हैं। अगर बिजली की बात की जाए तो बिजली विभाग कई स्कूलों में हर महीने बिल तो भेजता है, लेकिन स्कूलों में कनेक्शन का अता-पता नहीं है। बच्चे भीषण गर्मी में पढने को मजबूर हैं। स्कूलों में लगे हैंडपंप ठूंठ बन गए हैं तथा शौचालय जर्जर हो चुके हैं। स्कूलों के भवन निर्माण मेंं सिर्फ खानापूर्ति की गई है। ऐसे में नवीन कक्षों के बनने के बाद ही प्लास्टर जर्जर हो गए तो छतों से पानी टपक रहा है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जी.एस.निरंजन ने बताया कि पिछले साल शासन से एक करोड़ इकतालीस लाख छतीस सौ रुपये मिले थे। इससे 38 अतिरिक्त कक्षों का निर्माण किया गया था। अब आगे आने वाले बजट में बाकी व्यवस्थाएं पूरी की जाएंगी।

आगरा में बिना इमारत चल रहे स्कूल

आगरा के जगदीशपुरा स्थित प्राथमिक विद्यालय (बालिका) में कोई इमारत नहीं है और न ही कोई सुरक्षा व्यवस्था और शौचालय ही है। यह स्कूल लगभग 30 सालों से ऐसे ही संचालित किया जा रहा है। इसकी जानकारी अफसरों को भी है मगर अब तक कोई सुधार नहीं किया गया है। कई बार स्कूल की इस हालत की शिकायत की गई मगर किसी अधिकारी ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया। स्कूल की प्रधानाध्यापिका कीत दूबे ने बताया कि यहां पर कई समस्याओं से जूझना पड़ता है, लेकिन अधिकारी सुनते नहीं है। चूंकि लड़कियों की संख्या ज्यादा है, इसलिए शौचालय की समस्या बड़ी है। वहीं ताजगंज क्षेत्र में एक विद्यालय सड़क पर चल रहा है। पानी, शौचालय, बिजली जैसी सुविधाएं तो दूर की कौड़ी हैं। प्रधानाध्यापिका शगुफ्ता ने बताया कि यह स्थिति पिछले दो साल से बनी हुई है।

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सर्दियों में पढ़ना मुश्किल

स्कूल 80 साल से किराए की जमीन पर संचालित था। मकान मालिक बहुत दिनों से खाली कराने को कह रहा था। 2014 में गर्मी की छुट्टियों में मकान मालिक ने जमीन पर कब्जा कर लिया। इसकी शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। दो साल बाद भी सरकार अन्य जगह जमीन तलाशने में नाकाम रही है। दो साल पहले तक 102 बच्चे हुआ करते थे। मगर अब 40 रह गए हैं। स्कूल में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। बच्चे खुद घर से पानी लाते हैं। छात्रा शायरीन ने बताया कि पढ़ने में बहुत दिक्कत आती है। खासकर सर्दियों में पढ़ना मुश्किल हो जाता है। छात्र आरिफ ने बताया कि स्कूल में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।गोंडा में स्कूलों का भवन बेहद जर्जर

जिगरगंजा का प्राथमिक विद्यालय भवन एकदम जर्जर अवस्था में है। पानी के लिये एक हैण्डपंप है, शौचालय भी है, लेकिन बिजली का कनेक्शन नहीं है। स्कूल में फर्नीचर भी नहीं है जिस कारण बच्चे टाट पर बैठते हैं। विद्यालय भवन में कहीं भी स्कूल का नाम नहीं लिखा है। शिक्षक शानम फातिमा व फिरोज अहमद ने बताया कि मात्र दो ही शिक्षक हैं। इसलिए बच्चों को संभालने में दिक्कत होती है। छात्र अमन, नफीस, अली, निजाम ने बताया कि बिजली का कनेक्शन न होने से गर्मी लगती है। खेल का मैदान न होने से बच्चे खेल भी नहीं पाते।बैठने के लिये नहीं है कोई सुविधा

पटेलनगर के प्राथमिक विद्यालय का भवन भी खस्ताहाल है। यहां लाला लाजपत राय प्राथमिक विद्यालय और कन्या पूर्व माध्यमिक विद्यालय एक ही भवन में चलते हैं। पानी के लिये एक हैंडपंप है। शौचालय बेहद खराब स्थिति में है। स्कूल में बिजली का कनेक्शन ही नहीं है। बच्चों के बैठने के लिये फर्नीचर नहीं है। वे टाट पर बैठकर पढ़ाई करते हैं। विद्यालय भवन में कहीं भी स्कूल का नाम नहीं लिखा है। शिक्षक मालती सिंह ने बताया कि मात्र एक ही शिक्षक है। छात्र रमा, अनिल, प्रेमा, अलका, फातिमा, हरिशंकर ने बताया कि बिजली न होने से गर्मी लगती है। खेल का मैदान न होने से खेल भी नहीं पाते। यहां 56 बच्चे पंजीकृत हैं।अधिक जानकारी के लिए आगे की स्लाइड्स में जाएं...

आजमगढ़ में अव्यवस्थाओं से जूझ रहे सरकारी स्कूल

जूनियर हाईस्कूल सरायमीर में 230 बच्चे पंजीकृत हैं। इनमें कई बालिकाएं भी हैं मगर यहां न तो शौचालय है और न ही बाउंड्रीवॉल। इतना ही नहीं विद्यालय की फर्श पूरी तरह से टूटी हुई है और बिजली भी नहीं है। यहां बच्चे अभी भी टाट पट्टी पर बैठने को मजबूर हैं। प्राथमिक विद्यालय अल्लीपुर, प्राथमिक विद्यालय अदरशपुर, प्राथमिक विद्यालय टिकरिया और प्राथमिक विद्यालय मड़इया में समस्याएं एक जैसी ही मिलीं। इन सभी विद्यालयों में बाउंड्री, शौचालय, बिजली, पंखा और बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर नहीं है। इन सभी विद्यालयों के बच्चे टाटपट्टी पर बैठने को मजबूर हैं। प्राथमिक विद्यालय टिकरिया के प्रभारी प्रधानाध्यापक मो.याकूब ने कहा कि रंगाई पुतार्ई के नाम पर सालाना पांच हजार रुपये आता है। बिरला व्हाइट सीमेंट से रंगाई-पुताई का आदेश है। पांच हजार में क्या-क्या करेंगे।

गोरखपुर के सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहद खराब

शहर के पुलिस लाइन में स्थित प्राथमिक स्कूल में 5वीं तक के बच्चों के लिए सिर्फ एक कमरा है। बैठने के लिए न तो बेंच है और न पंखा। यहां पंजीकृत 60 से अधिक बच्चे एक ही कमरे में पढ़ते हैं। तीन शिक्षक बच्चों को कैसे पढ़ाते हैं, इसकी कल्पना भर से स्कूलों की बदहाली की तस्वीर आंखों के सामने उतर जाती है। बच्चे पढ़ाई के दौरान ही महिला थाने में होने वाले विवादों का भी नजारा देखने को अभिशप्त हैं। बच्चे बरामदे में भी नहीं पढ़ सकते हैं क्योंकि पुलिस वालों के लिए यह साइकिल स्टैंड का काम करता है। धर्मशाला बाजार के जटेपुर में प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्कूल का बुरा हाल है।

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गुजराती बंजारों का कब्जा

प्राथमिक स्कूल के नाम पर बने जर्जर भवन में गुजराती बंजारों का कब्जा है। किचेन के नाम पर बने भवन में 5 कक्षाओं के बच्चे पढ़ते हैं। पांच कक्षाओं को मिलाकर सिर्फ 15 बच्चों का पंजीकरण है। डेस्क-बेंच और पंखे की कल्पना करना भी यहां बेमानी है। यहां सिर्फ एक शिक्षिका की तैनाती है, वह भी खानापूर्ति ही करती है। कई बंजारों ने बच्चों का दाखिला प्राइवेट स्कूलों में करा रखा है, लेकिन बच्चों को मुफ्त में मिड डे मील मिल दिलाने के लिए उनका सरकारी स्कूल में भी पंजीकरण है। ठीक बगल में स्थित पूर्व माध्यमिक स्कूल के बरामदे में बंजारों का कब्जा है। जैसे-तैसे यहां स्कूल संचालित होता है। कहने को यहां 95 बच्चों का पंजीकरण है, लेकिन बमुश्किल 30 बच्चे आते हैं। इन्हें पढ़ाने के लिए तीन शिक्षकों की तैनाती है।

सिर्फ 117 स्कूलों में डेस्क-बेंच

गोरखपुर में प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक को मिलाकर 2,900 स्कूल हैं। इनमें से सिर्फ 117 स्कूलों में बच्चों के पढऩे के लिए डेस्क और बेंच हैं। इन स्कूलों में 2013 में डेस्क-बेंच के लिए एक-एक लाख रुपये मिले थे। 1235 विद्यालयों में विद्युतीकरण नहीं है। 2900 स्कूलों में सिर्फ 1132 स्कूलों में पीने का पानी उपलब्ध है। इन स्कूलों में इंडिया मार्का हैंडपंप लगा हुआ है। वहीं 20 ब्लाकों के एक-एक स्कूल में पिछले दिनों आरओ वाटर का प्लांट लगा था, लेकिन इनमें से आधे से अधिक खराब हो चुके हैं।

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