लखनऊ: देश में भले ही आतंकी घटनाओं पर लगाम लगा हो, लेकिन आतंकी चुप बैठने वाले नहीं हैं। यह मानना है सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसीज का। खासतौर से शनिवार सुबह वाराणसी कोर्ट परिसर में बम मिलने की घटना को खुफिया एजेंसियां किसी बड़ी आतंकी घटना को अंजाम देने की साजिश का ट्रायल मान रही हैं।
देश में लगातार राजनैतिक बयानबाजी के चलते सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है। पिछले साल हुए दादरी कांड के बाद भले ही हालात सामान्य दिख रहे हों, लेकिन खुफिया एजेंसियां इसे तूफ़ान के पहले की शांति मान रही है।
खुफिया एजेंसी के अधिकारी इसे बीते दशक में गुजरात दंगों की बाद देश में पैदा हुए हालात से जोड़ कर देख रही हैं। एजेंसियों का मानना है कि देश में खासतौर से यूपी में सेल्फ-मोटीवेटेड आतंकियों की संख्या बढ़ सकती है, जैसा कि 2002 में गुजरात दंगों के बाद हुआ था।
पैटर्न बताता है टेरर अटैक के पहले हुआ है रिहर्सल
खुफिया एजेंसियों की स्टडी के अनुसार टेरर ब्लास्ट के पैटर्न को ध्यान से देखा जाए तो साफ जाहिर है कि आतंकी बड़े ब्लास्ट से पहले रिहर्सल करते हैं फिर धमाके को अंजाम देकर अपने मंसूबे पूरे करते हैं। ऐसे में खुफिया एजेंसियों की आशंका है कि एक बार फिर दहलाने की तैयारी चल रही है।
बड़े ब्लास्ट से पहले हुए रिहर्सल
एजेंसियों का शक बेबुनियाद भी नहीं है। अगर देश में हुए बम ब्लास्ट के पैटर्न पर ध्यान दें तो हर बड़े ब्लास्ट से पहले आतंकियों ने एक छोटे ब्लास्ट को अंजाम देकर रिहर्सल किया था।
-गोरखपुर के गोलघर में 23 मई 2007 को तीन जगहों पर सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे।
-इसके छह महीने बाद ही 23 नवंबर 2007 को फैजाबाद, वाराणसी और लखनऊ की कचहरियों में बम धमाके हुए।
-इसी तरह साल 2008 में 26 जुलाई को अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके हुए।
-सूरत शहर में 29-30 जुलाई तक सिलसिलेवार 22 जिंदा बम बरामद हुए जिनमें कुछ पेड़ों पर और एक पुलिस स्टेशन की खिड़की पर लटका मिला।
-खुशकिस्मती यह रही कि इनमें से एक भी फटा नहीं। इन जिंदा बमों के मिलने के बाद पूरे गुजरात में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया था।
-इसके बाद पुलिस ने इन दोनों शहरों में बम विस्फोट की साजिश के सिलसिले में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की थीं। इन गिरफ्तारियों के बाद टेरर स्लीपर सेल ने चुप्पी साध ली।
-इसके बाद 13 सितंबर 2008 की शाम दिल्ली में तीन जगहों पर महज 30 मिनट के अंतराल पर एक के बाद एक चार बम विस्फोट हुए।
-पहला धमाका करोल बाग इलाके के गफ्फार मार्केट में हुआ जहां विस्फोटक एक ऑटो में रखा था।
-इसके कुछ ही देर बाद कनाॅट प्लेस में दो धमाके हुए।
-जब तक इन इलाकों में बचाव दल पहुंचता दो और धमाके ग्रेटर कैलाश-1 के एम ब्लॉक में हुए, जहां विस्फोटक कूड़ेदान में रखे गए थे।
-सेंट्रल पार्क, रीगल सिनेमा और इंडिया गेट पर बम निष्क्रिय किए गए।
-इसके ठीक दो महीने पहले गुजरात के अहमदाबाद और सूरत में ब्लास्ट की साजिश को दिल्ली में हुए सीरियल ब्लास्ट के रिहर्सल के तौर पर देखा गया। इन सभी ब्लास्ट में यासीन भटकल का नाम आया।
बेंगलुरु में भी हुआ था ट्रायल रन
-साल 2008 में ही 25 जुलाई को बेंगलुरु में हुए सिलसिलेवार नौ बम विस्फोटों में एक महिला समेत कुल दो लोगों की मौत हुई थी।
-इस सीरियल ब्लास्ट को अंज़ाम देने से एक दिन पहले आतंकियों ने नज़दीक के चनपट्टना इलाके में धमाकों की रिहर्सल की थी।
-आतंकियों ने वहां सड़क किनारे ड्रेनेज़ में इस रिहर्सल को अंजाम दिया।
-इस धमाके में किसी के घायल न होने से लोगों का इस ओर ध्यान नहीं गया। ब्लास्ट में अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया।
जौनपुर में हुआ रिहर्सल, दिल्ली हाईकोर्ट में ब्लास्ट!
साल 2011 में आतंकियों ने दिल्ली हाईकोर्ट को दो बार निशाना बनाया पहले 25 मई 2011 को गेट नंबर-7 की पार्किंग में धमाका किया गया। इसमें कोई नुकसान नहीं हुआ।
-इसके बाद 7 सितंबर 2011 को दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नंबर-5 पर एक बार फिर जोरदार धमाका किया गया, इस बार आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब हो गए और 14 लोगों की मौत हो गई।
-मई 2011 को किए गए पहले ब्लास्ट में नाकाम होने के बाद आतंकियों ने 2 अगस्त को यूपी के जौनपुर जिले में रिहर्सल की।
-उन्होंने बेंगलुरु में किये गए ब्लास्ट के रिहर्सल की तर्ज पर ड्रेनेज की जगह नहर को चुना।
-बाकायदा एक प्लास्टिक के बोरे को नहर में बहाकर भीषण विस्फोट किया गया।
-विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि नहर के किनारे स्थित पेड़ों के पत्ते झड़ गए और पानी भी कई मीटर उपर तक उछला।
-दोनों ही जगह विस्फोट में पीईटीएन (पेन्टा इथ्रिटॉल टेट्रा नाइटे्रट) इस्तेमाल किए जाने की बात सामने आई।
-इस विस्फोटक की खासियत यह है कि इस पर पानी पड़ने के बाद भी कोई असर नहीं पड़ता।
-जिस समय दिल्ली हाईकोर्ट में यह ब्लास्ट हुआ था, उस दौरान आमतौर पर मानसून सक्रिय रहता है।
-आतंकियों ने बारिश की संभावना को देखते हुए इस विस्फोटक का इस्तेमाल किया।
एक दशक बाद फिर से बने वही खतरनाक हालात
खुफिया एजेंसी के एक अधिकारी ने बताया कि देश में गुजरात दंगों के बाद किसी ने आईएम के अस्तित्व में आने की उम्मीद नहीं की थी लेकिन वह अस्तित्व में आया और देश में अपनी मर्जी के मुताबिक़ तबाही मचाई।
-अधिकारी का कहना है कि उस समय कम्युनिकेशन के बहुत से साधन उपलब्ध नहीं थे, जबकि आज सोशल मीडिया जैसा सरल और सुगम साधन मौजूद हैं।
-इसका फायदा आतंकी जमकर उठा रहे हैं। एजेंसियां न केवल गुजरात दंगों बल्कि मुजफ्फरनगर दंगे के बाद युवाओं को भड़काने और देश के बाहर बैठे आतंकी संगठनों द्वारा अशांति फैलाने के प्रयास को भी जोड़कर देख रही हैं।
बीते साल इंटरसेप्ट ने की थी पुष्टि?
-बीते साल ख़ुफ़िया एजेंसियों ने एक पांच पेज का इंटरसेप्ट गृह मंत्रालय को भेजा था, इसमें उन लोगों के नाम हैं, जिन्हें आतंकी निशाना बनाना चाहते हैं।
-इनमें विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया जैसे लोग हैं। इंटरसेप्ट में दो लोग राज्य में स्लीपर सेल्स से जुड़ी बातें करते हैं।
-वे कई बार इलाहाबाद के एक शख्स का जिक्र करते हैं, जो आतंकी संगठनों से जुड़े लोगों को मदद करने के लिए जाना जाता है।
-बातचीत के दौरान एक शख्स दूसरे को भरोसा दिलाता है कि 'आतंकी ग्रुपों से जुड़े पुरुषों के झांसे में आई कुछ महिला पुलिस अफसर' भी साजिश में उनकी मदद करेंगी।
-प्रदेश में बेहद संवेदनशील माने जाने वाली जगह, मसलन काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि स्थान और अयोध्या के रामलला मंदिर को निशाना बनाने की बात कही गई है।