वाराणसी: काशी को यूं ही तीनों लोकों की न्यारी नगरी नहीं कहते हैं। यहां का हर अंदाज अलग होता है। चाहे खुशी हो या फिर गम। बाबा के भक्त, मस्ती में सराबोर दिखते हैं। होली में ये रंग तो और गाढ़ा हो जाता है। रंगभरी एकादशी से शुरू हुई होली अब यहां के लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है।
बाबा की नगरी में मंगलवार (27 फरवरी) को बेहद अनूठी होली मनाई गई। विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर धधकती चिताओं के बीच भक्तों ने भस्म की होली खेली। महाश्मशान पर डमरू और ढोल की थाप पर भक्तों ने एक-दूसरे के साथ होली खेली।
भस्म के साथ होली खेलने की ये है मान्यता
मान्यता है, कि अपने गौना के दूसरे दिन बाबा भक्तों और अपने 'गण' यानि भूतों व औघडों के बीच आते हैं और उनके साथ अलग उत्सव मनाते हैं। इसी परंपरा के निर्वहन में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भक्तों ने महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर भस्म व अबीर से होली खेली। परंपरा के अनुसार पहले शिव के ही अंश माने जाने वाले बाबा मसाननाथ को भस्म औऱ अबीर चढ़ाकर भक्तों ने एक दूसरे को भस्म लगाया।
आज इस अद्भुत होली में शव का अंतिम संस्कार करने आए लोग भी काफी खुश होकर शामिल हुए। मंगलवार दोपहर 12 बजे मणिकर्णिका घाट के महाश्मशान नाथ मंदिर में बाबा संग भक्तों ने चिता भस्म की होली खेली। एक तरफ चिताएं धधक रही थीं, तो वहीं दूसरी और हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ लोग शांत हुए चिता से भस्म उठाकर एक-दूसरे पर फेंक रहे थे। काशी एक ऐसा शहर है जहां मृत्यु का आलिंगन और मौत पर नृत्य होता है। ये एक ऐसा शहर है जहां श्मशान में भी फागुन मनाया जाता है।