Varanasi: जानिए क्यूं विश्वविख्यात है काशी विश्वनाथ मंदिर, हजारों साल पुराना विध्वंस और पुर्निनिर्माण का सनसनीखेज इतिहास

Varanasi News: मार्क टवेन ने कहा था कि काशी इतिहास की दंत कथाओं से भी प्राचीन है। जब रोम का अस्तित्व नहीं था तब भी काशी थी। काशी में 72000 मंदिर थे। काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है, ऐसी पौराणिक मान्यता है।

Update:2023-07-10 18:23 IST
Kashi Vishwanath Temple history (Photo-Social Media)

Varanasi News: 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग श्री काशी विश्वनाथ काशी क्षेत्र में स्थित है। श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग गंगा नदी के किनारे हजारों साल पहले से स्थित है। मार्क टवेन ने कहा था कि काशी इतिहास की दंत कथाओं से भी प्राचीन है। जब रोम का अस्तित्व नहीं था तब भी काशी थी। काशी में 72000 मंदिर थे। काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है, ऐसी पौराणिक मान्यता है।

भगवान शिव ने जब विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को यहां विराजमान कर लिया

पौराणिक लिखित वर्णन के अनुसार देवी पार्वती अपने पिता के घर हिमालय पर रहती थी। एक बार की बात है, माता पार्वती ने भगवान महादेव से कहा कि अब हमें अपने घर चलना है। इसके बाद भगवान महादेव ने माता पार्वती को अपने साथ लेकर काशी आए और भगवान विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को यहां विराजमान कर लिया। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती का आदि स्थान है। श्री काशी विश्वनाथ को आदि विश्वेश्वर भी कहा जाता है। श्री काशी विश्वनाथ का उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।

1194 में मुहम्मद गोरी ने मंदिर को तुड़वा दिया था

सम्राट विक्रमादित्य ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार राजा हरिश्चंद्र ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। 1194 में मुहम्मद गोरी ने मंदिर को तुड़वा दिया था। 1447 में जौनपुर के सुल्तान अमित शाह ने मंदिर को तोड़ दिया था। 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया। साल 1632 ईसवीं में शाहजहां ने सेना भेजकर तोड़ने का आदेश दिया था। शाहजहां ने काशी में सेना भेज दी लेकिन हिंदू राजाओं के प्रबल विरोध के चलते मुस्लिम सेनाओं ने श्री काशी विश्वनाथ के मुख्य मंदिर को नहीं तोड़ पाए। लेकिन काशी में कुल 63 अन्य मंदिरों को तोड़ दिया गया। 1777 से 1780 तक इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के जीर्णोद्धार हो जाने के बाद सोने का छत्र चढ़ाया। ग्वालियर की महारानी बजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी जी की प्रतिमा स्थापित करवाई थी।

1809 में मस्जिद पर हुआ था कब्जा

सन 1809 में काशी के हिंदुओं ने जबरदस्ती बनवाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया। यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मंडप का क्षेत्र था। 30 दिसंबर 1810 में उस समय के जिलाधिकारी वाटसन ने वाइस प्रेसिडेंट इन काउंसिल को पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर को हिंदुओं को सौंपने की मांग की थी। लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया। काशी विश्वनाथ मंदिर का क्षेत्र हिंदुओं के लिए पावन तीर्थ का क्षेत्र है।

काशी विश्वनाथ मंदिर में विराजमान हैं नंदी

काशी विश्वनाथ तीर्थ क्षेत्र में नंदी भी साक्षात् विराजमान हैं। नंदी महाराज का मुंह शिवलिंग के ठीक सामने होता है। ऐसा माना जाता है वर्तमान समय में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर ही भगवान विश्वेश्वर का शिवलिंग है। इसलिए नंदी भगवान का मुंह शिवलिंग की तरफ है।

दक्षिण भारत से सबसे ज्यादा आते हैं श्रद्धालु

दक्षिण भारत के श्रद्धालु सबसे ज्यादा वाराणसी आते हैं, मान्यताओं के अनुसार दक्षिण भारत के लोगों को बिना काशी आए मुक्ति नहीं मिलती है। वैसे काशी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। काशी में मृत्यु होने पर बाबा विश्वनाथ तारक मंत्र देकर यहां के लोगों को तारने का काम करते हैं। इसलिए काशी क्षेत्र को अविमुक्त क्षेत्र कहा गया।

कच्छ की रानी से दुर्व्यवहार के कारण टूटा था मंदिर

विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने संबंधी औरंगजेब के आदेश और उसकी वजह के बारे में डॉक्टर विश्वंभर नाथ पांडेय अपनी पुस्तक के 119 और 120 पृष्ठ में इसका जिक्र करते हैं। इसके अनुसार एक बार औरंगजेब बनारस के निकट से गुजर रहा था। हिन्दू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और विश्वनाथ दर्शन के लिए काशी आए। विश्वनाथ दर्शन कर जब लोग बाहर आए तो पता चला कि कच्छ के राजा की एक रानी गायब हैं। जब उनकी खोज की गई तो मंदिर के नीचे तहखाने में भय से त्रस्त रानी दिखाई पड़ीं। जब औरंगजेब को पंडों की यह काली करतूत पता चली तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ और बोला कि जहां मंदिर के गर्भ गृह के नीचे इस प्रकार की डकैती और बलात्कार हो, वो निस्संदेह ईश्वर का घर नहीं हो सकता। उसने मंदिर को तुरंत ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया।

औरंगजेब के आदेश का तत्काल पालन हुआ लेकिन जब यह बात कच्छ की रानी ने सुनी तो उन्होंने उसके पास संदेश भिजवाया कि इसमें मंदिर का क्या दोष है, दोषी तो वहां के पंडे हैं। रानी ने इच्छा प्रकट की कि मंदिर का पुनः निर्माण करवाया जाए। लेकिन औरंगजेब के लिए अपने धार्मिक विश्वास के कारण, फिर से नया मंदिर बनवाना असंभव था। इसलिए उसने मंदिर की जगह मस्जिद खड़ी करके रानी की इच्छा पूरी की।

इस बात की पुष्टि कई अन्य इतिहासकार करते हुए कह चुके हैं कि औरंगजेब का यह फ़रमान हिन्दू विरोध या फिर हिन्दुओं के प्रति किसी घृणा की वजह से नहीं बल्कि उन पंडों के खिलाफ गुस्सा था जिन्होंने कच्छ की रानी के साथ दुर्व्यवहार किया था।

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