भ्रष्टाचारः आने से लेकर अंतिम बेला तक सुर्खियों में रहे प्रो. राजाराम
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर अपने पूरे कार्यकाल तक सुर्खियों में रहने वाले वर्तमान कुलपति प्रो.राजाराम यादव एक बार फिर अपने सेवा के अन्तिम दिनों में फर्जी नियुक्तियों को लेकर चर्चा में आ गये हैं।
जौनपुर: वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर अपने पूरे कार्यकाल तक सुर्खियों में रहने वाले वर्तमान कुलपति प्रो.राजाराम यादव एक बार फिर अपने सेवा के अन्तिम दिनों में फर्जी नियुक्तियों को लेकर चर्चा में आ गये हैं। हालांकि इस बार इनके साथ कुलसचिव नहीं खड़े हैं इसीलिए दोनों के बीच तलवारें खिंच गयी हैं। कुलसचिव अवकाश लेकर चले गये हैं।
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विश्व विद्यालय को भारी क्षति संभव
कुलसचिव के इस निर्णय के खिलाफ कुलपति यादव ने अपने खास सिपह सालार को विश्व विद्यालय का रजिस्ट्रार बना कर अपने फर्जीवाड़े को अमलीजामा पहनाने की जुगत में लग गये हैं। विश्वविद्यालय कर्मचारी संघ इससे खासा नाराज हैं, उनका मानना है कि कुलपति प्रो. राजा राम अपने सेवा काल के अन्तिम समय में विश्व विद्यालय पर अनावश्यक रूप से आर्थिक बोझ डाल रहे हैं। जिससे विश्व विद्यालय को भारी क्षति संभव है।
लॉकडाउन में भ्रष्टाचार को गति देने में और सक्रिय
बता दें कि कुलपति प्रो. राजा राम का कार्यकाल 1 मई को ही खत्म हो गया था लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन होने के कारण कुलाधिपति ने तीन महीनें तक इनका कार्यकाल बढ़ा दिया। इससे कुलपति के हौसले बुलंद हैं और भ्रष्टाचार को और भी गति देने के अभियान में सक्रिय हो गये हैं। इस बार इनके भ्रष्ट कारनामों में शासन से नियुक्त कुलसचिव सुजीत कुमार जायसवाल इनके साथी नहीं बने तो दोनों के बीच घोर टकराहट हो गयी है, जिससे उनको अवकाश लेना पड़ा है।
खबर यह भी मिली है कि राजभवन से नये कुलपति का आगमन इसी महीने कभी भी हो सकता है। ऐसे में वर्तमान में कुलपति प्रो.राजा राम यादव के पास अपना एजेंडा और तमाम फर्जी कार्यों को लागू किये जाने को लेकर समय बहुत कम बचा है इसलिए आजकल अनर्गल और अनीतिपूर्ण निर्णयों में वह फिर से सक्रिय हो गए हैं। फर्जी तरीके से अपने चहेतों को विश्व विद्यालय में नौकरी देने की फिराक में जुट गये हैं। ऐसे में रजिस्ट्रार के अचानक छुट्टी पर चले जाने से विश्वविद्यालय परिसर में कर्मचारियों और शिक्षकों के बीच अफवाहों का बाजार बहुत गर्म है।
विश्वविद्यालय के सूत्रों ने बताया कि इस समय रजिस्ट्रार के छुट्टी पर जाने के पीछे का मामला लॉकडाउन के दौरान पुरानी तारीखों में विभिन्न संस्थानों और विभागों में की गई अवैध नियुक्तियाँ और निर्माण एजेंसियों को मनमाने भुगतान को लेकर हैं। कुलपति प्रो. राजाराम यादव द्वारा लॉक डाउन में गोपनीय तथा नियम कानून को ताक पर रख कर अपने चहेतों और परिचितों की बड़े पैमाने पर नियुक्तियाँ कर दी गई हैं। यहां यह भी बता दें कि विश्वविद्यालय में कुलपति का कार्यभार ग्रहण करने के एक माह बाद अनावश्यक रूप से अपनो को लाभ पहुंचाने के लिए प्रो. राजाराम ने आधा दर्जन नियुक्तियां करके विश्वविद्यालय पर आर्थिक बोझ डाला।
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इसके बाद शिक्षकों की नियुक्ति के मामलेमें कार्यसमिति के विरोध के बावजूद जबरिया अपने चहेतों को शिक्षक पद पर नियुक्ति प्रदान कर ज्वाईन करा दिया। इसकी शिकायत कुलाधिपति तक की गयी थी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गयी, जिससे प्रो. राजाराम के हौसले बुलंद हैं और फिर जाने की बेला में एक फर्जी खेल कर धनोपार्जन कर लेना चाहते हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन इन नियुक्तियों को बिना रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर के जारी नहीं कर सकता था। क्योंकि नियमानुसार नियुक्तियों पर हस्ताक्षर तो रजिस्ट्रार के ही होते हैं। कुलपति ने हस्ताक्षर के लिए कुलसचिव सुजीत कुमार जायसवाल पर अधिक दबाव बना दिया था। कुलसचिव खुद को फंसता देख इस प्रकरण से किनारा करते हुए छुट्टी लेकर इस इन सभी प्रकरणों से पीछा छुड़ा लिया है।
इस फर्जी वाड़े के खेल में गत एक सप्ताह से रोज बदलते घटना क्रम में कुलपति ने अपनी मंशा को अंजाम देने के लिए अब इंजीनियरिंग विभाग के शिक्षक आकंठ भ्रष्टाचारी जिनका नाम पहले भी भ्रष्टाचार को लेकर सुर्खियों में रह चुका है, बीबी तिवारी को रजिस्ट्रार बना दिया गया है। रजिस्ट्रार बनाये जाने के तुरंत बाद ही बीबी तिवारी ने रजिस्ट्रार का कार्यभार भी ग्रहण कर लिया है।
कम्प्यूटर की खरीद एवं बी. टेक की फीस में बड़ा घोटाला
जहां तक भ्रष्टाचार का प्रश्न है तो इनके उपर इंजीनियरिंग विभाग में हेड आफ डिपार्टमेन्ट पद रहते हुए इन्होंने कम्प्यूटर की खरीद एवं बी. टेक की फीस में बड़ा घोटाला किया था, जिसमें कई सस्पेंड भी रहे हैं। सूत्र की माने तो शासनदेश है कि रजिस्ट्रार की अनुपस्थिति में किसी भी अधिकारी परिक्षा नियंत्रक, अथवा वित्त अधिकारी या फिर असिस्टेंट रजिस्ट्रार को चार्ज दिया जाना चाहिए। लेकिन कुलपति ने नया इतिहास बनाते हुए पहली बार एक प्रोफेसर को रजिस्ट्रार बना दिया है।
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विश्वविद्यालय के अर्थ व्यवस्था का हश्र जो भी हो लेकिन कुलपति एक बार फिर अपने फर्जी वाड़े को अंजाम तक पहुंचाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस भ्रष्टाचार की सूचना कुलाधिपति तक पहुंचा दी गयी है। जन चर्चा यह है कि यदि कुलाधिपति ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया तो पूर्वांचल विश्वविद्यालय को भारी आर्थिक क्षति पहुंचेगी।
रिपोर्ट: कपिलदेव मौर्या
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