कुलपति ने भीख मांगने को बताया रोजगार, कर दी यूनिवर्सिटी से मदद की पेशकश

खुद उच्च शिक्षा हासिल कर प्रोफेसर बने और अब कुलपति की कुर्सी का आनंद उठा रहे हैं । लेकिन अपने विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले युवाओं को भीख मांगने को रोजगार बनाने का सुझाव दे रहे हैं। शायद ऐसे ही लोगों के लिए बाबा तुलसीदास ने कहा है कि -"पर उपदेश कुशल बहुतेरे।"

Update: 2020-06-26 13:30 GMT

सरकार भले ही भीख मांगने को अपराध मानती हो, इसके लिए दंड का प्रावधान करती हो लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति ने भीख मांगने को भी रोजगार मानते हुए लोगों को इस पर अमल करने का एक नायाब नुस्खा सुझाया है।

पहले वह अपने विश्वविद्यालय के छात्रों को वीर रहने की सलाह देते हुए मर्डर करके आने तक की बात कह चुके हैं। यह विवादित बयान उन्होंने डेढ़ साल पहले दिया था। यह कुलपति की सरकार में मज़बूत पैठ का ही नतीजा है कि उनका बाल बाँका नहीं हुआ। यही नही, सरकार उनका विकल्प तलाश नहीं पायी है। तभी तो कार्यकाल पूरा होने के बाद भी वह बने हुए हैं।

डफली बजाओ आत्मनिर्भर बनो

इस बार उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा है कि जब वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहे थे तब ट्रेन से स्कूल जाना पड़ता था उस समय एक अंधा भिखारी डफली बजा कर 1 दिन में एक से दूसरे स्टेशन के बीच में 2 दिन की जरूरत भर की कमाई कर लेता था ।

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आज दुनिया के पैमाने पर भारत में बेरोजगारी का हव्वा खड़ा करके देश को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने एक सार्वजनिक समारोह में यह कहा कि अगर किसी के पास डफली खरीदने के पैसे ना हों तो उनका विश्वविद्यालय डफली खरीद कर दे देगा । इस विश्वविद्यालय के कुलपति राजाराम यादव पहले भी तमाम तरह के ऐसे विवादों में चर्चित रह चुके हैं।

पीटकर आएं मर्डर कर दें रोएं नहीं

दिसंबर दो हजार अट्ठारह में उन्होंने उच्च शिक्षा में चुनौतियों पर केंद्रित एक व्याख्यानमाला में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि पूर्वांचल विश्वविद्यालय का जो छात्र है वह संघर्ष का राही है। उन्हें ऐसा छात्र पसंद नहीं है जो रोता हुआ उनके पास आए।

उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि अगर उनका किसी से झगड़ा हो जाए तो रोते हुए उनके पास आने के बजाय उसे पीट कर आएं, जरूरत पड़े तो उसका मर्डर भी कर दें। बाद में जो होगा वह खुद देख लेंगे। उनके इस बयान पर तब खूब हंगामा मचा था । सरकार की छीछालेदर भी हुई थी ।

सरकार मेहरबान

लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से निकटता उनके काम आई। वह बीते 3 साल से विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर जमे हुए हैं।

सरकार व राजभवन की उन पर हो रही मेहरबानी के आलम को इसी से समझा जा सकता है कि उनके इतने विद्वत्तापूर्ण सुझाव पर सरकार ना तो अमल करने का फैसला कर पा रही है और ना ही उनके खिलाफ किसी कार्रवाई का साहस । लगातार विवादित बयानों के बाद भी उनका कोई विकल्प अभी तक खोजा नहीं जा सका है ।

शायद सरकार में उनके समर्थक यह मानते है कि भीख मांगने का जो रोजगार कुलपति जी सिखा रहे हैं वह देर -सवेर भारत के नागरिकों के लिए कारगर सिद्ध हो सकता है। उनकी इस शिक्षा का वैश्विक स्तर पर भी उपयोग हो सकता है। कुलपति जी से शिक्षा ग्रहण करने वाले भारत के बेरोजगार युवा रोजगार की नवीन संभावनाओं का अनंत आकाश छू सकेंगे।

यह अलग बात है कि कुलपति जी ने अपने लिए रोजगार की तलाश में कभी भीख मांगने के विकल्प को नहीं आजमाया। खुद उच्च शिक्षा हासिल कर प्रोफेसर बने और अब कुलपति की कुर्सी का आनंद उठा रहे हैं । लेकिन अपने विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले युवाओं को भीख मांगने को रोजगार बनाने का सुझाव दे रहे हैं। शायद ऐसे ही लोगों के लिए बाबा तुलसीदास ने कहा है कि -"पर उपदेश कुशल बहुतेरे।"

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