Kanshi Ram Death Anniversary: खत्म हो रही है कांशीराम की बसपा, अब सिर्फ नाम भुनाया जा रहा, बसपा पुरोधा रहे अनिल कुमार मौर्य की दो टूक
Kanshi Ram Death Anniversary: कांशीराम की बसपा और अब की बसपा में बहुत बड़ा फर्क आ गया है। काशीराम के समय आदर्शों की बात होती थी।
Kanshi Ram Death Anniversary: बसपा संस्थापक कांशीराम की आज पुण्यतिथि (Kanshi Ram ki punyatithi) है जिसे जोर शोर से मनाने की तैयारी है। बसपा इस कार्यक्रम के जरिए पूरे यूपी में पार्टी का जनाधार दिखाने की तैयारी कर रही है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस कांशीराम ने बसपा की स्थापना की थी (bahujan samaj party ki sthapna) और पार्टी मुखिया सहित बसपा के अन्य दिग्गजों की तरफ से जिनके आदर्शों की दुहाई दी जाती है उस कांशीराम की बसपा और आज की बसपा में क्या मूलभूत अंतर आया है? कांशीराम के न रहने पर क्यों दलित आंदोलन की धार कुंद पड़ती चली गई।
'न्यूजट्रैक' ने इस बारे में पूर्व में बसपा के कद्दावर नेता की पहचान रखने वाले भाजपा के घोरावल विधायक अनिल कुमार मौर्य की राय जाननी चाही तो उनका सीधा सा जवाब था कि कांशीराम की बसपा खत्म हो रही ( Kanshi Ram Ki BSP Khatam) है। अब सिर्फ उनका नाम भुनाया जा रहा है।
कांशीराम के समय की और अबकी बसपा में आप क्या फर्क हैं?
कांशीराम की बसपा और अब की बसपा में बहुत बड़ा फर्क आ गया है। काशीराम के समय आदर्शों की बात होती थी। सिद्धांतों की बात होती थी। दलितों के, वंचितों के और समाज के दबे कुचले वर्ग के उद्धार की बात होती थी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। अब काशीराम के आदर्शों सिद्धांतों की बात नहीं होती बल्कि उनके नाम की आड़ में सिर्फ वोटरों को बहलाने की कोशिश की जाती है। तब की और अब की बसपा को लेकर सीधे शब्दों में कहें तो कांशीराम की बसपा खत्म हो चुकी है और उनकी जगह दलितों की जगह दौलत से प्रेम करने वाली बसपा (मायावती) ने ले ली है। सिर्फ वोटरों को गुमराह करने के लिए कांशीराम के नाम को भुनाया जा रहा है।
आप की गणना बसपा के मजबूत नेताओं में होती थी, ऐसा क्या हो गया कि उसी बसपा से दूरियां बन गईं?
जिस समय मैंने बसपा ज्वाइन की थी। उस समय कांशीराम के आदर्शों की बात होती थी। सर्व समाज की बात होती थी। वंचित तबके के उत्थान की बात होती थी लेकिन अब दलितों के उद्धार की जगह दौलत हासिल करने पर ध्यान दिया जाने लगा है। वंशवाद का पुरजोर विरोध करने वाले कांशीराम के आदर्शों को दरकिनार कर पार्टी सुप्रीमो और बसपा में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सतीश चंद्र मिश्रा दोनों वंशवाद को पल्लवित करने में लग गए हैं। 2022 के चुनाव को लेकर पार्टी सुप्रीमो मायावती के भतीजे आनंद और आकाश तथा सतीश चंद्र मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा को सौंपी जाती अहम जिम्मेदारी इस बात का प्रत्यक्ष सबूत है।
आप भाजपा को बसपा से किस रूप में बेहतर समझते हैं?
भाजपा और बसपा में बहुत फर्क है। भाजपा जहां सबका साथ सबका विकास की बात कर रही है। वहीं बसपा सर्व समाज को साथ लेकर चलने का ढोंग रच रही है। सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला तभी याद आता है, जब चुनाव शुरू होता है। चुनाव खत्म होते ही इसे भुला दिया जाता है।
2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा की निगाहें भाजपा के परंपरागत वोटों पर हैं और इसे अपने पाले में करने की हर संभव कोशिश भी की जा रही है। इसे आप किस रूप में देखते हैं?
जनता सब जानती है। सब समझती है। पिछली बातों को लोग भूले नहीं हैं। रही भाजपा के परंपरागत वोटरों की बात तो वह पिछले चुनाव में भी भाजपा के साथ थे और इस बार भी वह भाजपा के साथ ही हैं।
एक आखिरी सवाल, भाजपा के कार्यक्रमों में उमड़ती भीड़ को आप किस रूप में देखते हैं?
कई बार भीड़ आती नहीं, लाई भी जाती है। पहले भी बसपा के कार्यक्रमों में भीड़ दिखती थी। सपा बसपा दोनों ने मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। इसके बावजूद जनता ने उन्हें ठुकरा दिया।
कौन हैं अनिल कुमार मौर्य (Kaun Hain Anil Kumar Maurya)
सजातीय वोटरों के मजबूत वोट बैंक के चलते घोरावल विधानसभा पर अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले अनिल कुमार 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए थे। 52 वर्षीय अनिल कुमार मौर्य का वर्तमान निवास शाहगंज थाना क्षेत्र के भगवास में स्थित है। वह 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में राजगढ़ विधानसभा सीट से बीएसपी कैंडिडेट के रूप में विधायक निर्वाचित हुए थे।
2012 में हार के बाद बढ़ गई बसपा से दूरी
लगातार दो बार विधायक निर्वाचित होने के बाद अनिल कुमार मौर्य की बसपा में इस कदर मजबूत पकड़ बन गई कि आम बोलचाल में उन्हें पूर्वांचल का मिनी चीफ मिनिस्टर कहा जाने लगा था। 2012 के चुनाव में राजगढ़ विधानसभा में शामिल रही जनपद की एरिया स्वतंत्र रूप से घोरावल विधानसभा के रूप में सामने आई। इस विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने बसपा उम्मीदवार के रूप में भागीदारी की लेकिन सपा के विधायक कैंडिडेट रहे रमेश कुमार दुबे से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद के वर्ष में बदले घटनाक्रम ने उन्हें बसपा से दूर कर दिया।
भाजपा का साथ कुछ ऐसे पकड़ा
2016 में बसपा से नाता टूटने के बाद उन्होंने भाजपा का दामन थामा। घोरावल विधानसभा में उनके मजबूत जनाधार को देखते हुए भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बना कर, घोरावल से विधायक प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतार दिया और एक बार फिर अनिल कुमार मौर्या जिताऊ कैंडिडेट साबित हुए और सपा विधायक रहे रमेश दुबे को 57654 मतों से हराकर घोरावल सीट हथिया ली।