UP News: आखिर बुलडोजर चलाने के लिए क्या हैं नियम-कानून? किसके संकते पर ढहा दी जाती करोड़ो की संपत्ति
UP News: बुलडोजन चलने के क्या नियम है। क्या प्रशासन किसी के भी मकान, दुकान पर बुलडोजर चलवा सकता है। तो चलिए आइए जातने हैं बुल्डोजर चलने के क्या हैं नियम-कानून?
UP News: उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के बुलडोजर का खौफ का खौफ समय-समय पर देखने को मिलता रहता है। यूपी में कई बार देखा गया कि अपराधियों ने बुलडोजर के खौफ के कारण खुद को सरेंडर कर दिया है। मालूम हो कि बुलडोजर चलाने के लिए भी कुछ नियम कानून तय किए गए हैं। बुलडोजर एक्शन अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 की कुछ धाराओं के तहत चलता है।
अब उत्तर प्रदेश के साथ साथ अन्य सरकारें भी बुलडोजर एक्शन पर काम करने लगी हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी बुलडोजर की खूब चर्चा हुई थी। इसीलिए उत्तर प्रदेश में बुल्डोजर को लेकर बढ़ रहे खौफ के बीच ये जानना ज्यादा जरुरी है कि बुल्डोजर चलता किसके आदेश पर है। बुल्डोजर चलने के क्या नियम है। क्या प्रशासन किसी के भी मकान, दुकान पर बुलडोजर चलवा सकता है। तो चलिए जानते हैं बुल्डोजर चलने के क्या हैं नियम-कानून?
जानें बुल्डोजर चलाने के क्या हैं नियम?
उत्तर प्रदेश में विकास प्राधिकरण के द्वारा जो भी घर, दुकान या अवैध संपत्तियां गिरायी जाती हैं उसके लिए अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 कानून बना हुआ है। जिसमें एक धारा 27 है, जिसके तहत प्रशासन को अवैध संपत्तियों को गिराने का अधिकार मिला हुआ है। अवैध संपत्ति को गिराने से पहले विकास प्राधिकरण के चेयरमैन और वाइस चेयरमैन नोटिस जारी कर सकते हैं। इसमें विकास प्राधिकर की राजस्व विभाग के अधिकारी भी उनकी मदद करते हैं।
अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 की धारा 27 के अंतर्गत यदि विकास प्राधिकरण ने अवैध संपत्ति गिराने का आदेश जारी कर दिया है तो प्रशासन को 40 दिनों को अंदर अवैध संपत्ति को जरुर गिराना होगा। इसके अलावा इस नियम में ये भी लिखा हुआ है कि संपत्ति के मालिक को अपना पक्ष रखने का एक मौका दिए बिना उसकी संपत्ति को नहीं गिरा सकते हैं। जारी आदेश के 30 दिन के भीतर घर का मालिक प्राधिकरण के चेयरमैन के सामने घर नहीं गिराए जाने की अपील कर सकता है। चेयरमैन अपील पर सुनवाई करने के बाद आदेश में कुछ बदलाव या फिर उसे रद्द भी कर सकता है। आपको बता दें कि हर हाल में चेयरमैन का फैसला ही अंतिम माना जाता है। साथ ही चेयरमैन के फैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।