बिना दुर्भावना के शपथ-पत्र में आपराधिक इतिहास की जानकारी छिपाने पर विजयी प्रत्याशी होगा अयोग्य
53 साल पहले एक आपराधिक मुकदमे में दोषसिद्धि की जानकारी को नामांकन के दौरान जाने वाले शपथ-पत्र में खुलासा न किया जाना, चयनित ग्राम प्रधान पर भारी पड़ा है। हाईकोर्ट ने इस विषय पर स्पष्ट किया है कि बिना दुर्भावना के भी अगर नामांकन के दौरान भरे गए शपथ-पत्र में आपराधिक इतिहास संबंधी जानकारी छिपाई जाती है तो चयनित उम्मीदवार को अयोग्य ठहराया जा सकता है।;
लखनऊ: 53 साल पहले एक आपराधिक मुकदमे में दोषसिद्धि की जानकारी को नामांकन के दौरान जाने वाले शपथ-पत्र में खुलासा न किया जाना, चयनित ग्राम प्रधान पर भारी पड़ा है। हाईकोर्ट ने इस विषय पर स्पष्ट किया है कि बिना दुर्भावना के भी अगर नामांकन के दौरान भरे गए शपथ-पत्र में आपराधिक इतिहास संबंधी जानकारी छिपाई जाती है तो चयनित उम्मीदवार को अयोग्य ठहराया जा सकता है। हालांकि कोर्ट ने वर्तमान मामला चुनाव याचिका के रूप में विहित प्राधिकारी के समक्ष विचाराधीन होने के कारण ग्राम प्रधान को राहत देते हुए, डीएम द्वारा उसे अयोग्य ठहराए गए आदेश पर रोक लगा दी है और चुनाव याचिका पर छह महीने में फैसला करने का आदेश दिया है।
क्या है मामला ?
-गोंडा जनपद के ग्राम कोचवा से राम रंग प्रधान पद पर विजयी घोषित हुए थे।
-राम रंग को साल 1963 में आईपीसी की धारा- 148, 324 और 325 के तहत दर्ज मुकदमे में दोषी ठहराया गया था।
-इसका खुलासा राम रंग ने नामांकन के दौरान गए शपथ-पत्र में नहीं किया था।
-जिस पर ओम प्रकाश की ओर से विहित प्राधिकारी के समक्ष चुनाव याचिका दाखिल कर दी गई।
-जो वर्तमान में विचाराधीन है। इसी दौरान शिकायतकर्ता ने डीएम, गोंडा के समक्ष प्रार्थना पत्र दिया।
-जिस पर डीएम की ओर से राम रंग को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।
क्या थी दलील ?
-राम रंग की ओर से दलील दी गई कि आपराधिक मामला इतना पुराना है कि यह अब औचित्यहीन हो चुका है।
-वह साल 1970 के बाद पांच बार ग्राम प्रधान भी रह चुके हैं।
-उनकी ओर से यह भी कहा गया कि इस तथ्य का जिक्र न किए जाने के पीछे उसकी कोई दुर्भावना नहीं थी।
-उन्होंने चुनाव याचिका विचाराधीन होने के कारण नोटिस जारी करने पर भी प्रश्न उठाया।
-हालांकि डीएम ने उसके जवाब से संतुष्ट न होते हुए, 16 सितंबर 2016 को उसे पद से हटाने का आदेश जारी कर दिया।
-जिसके बाद डीएम के आदेश को चुनौती देते हुए राम रंग की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
छह महीने में फैसला करने के आदेश
याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस एआर मसूदी की बेंच ने याची को राहत देते हुए, वितीय और प्रशासनिक मामलों पर निर्णय के लिए डीएम को एक कमेटी का गठन करने के निर्देश दिए। जिसमें याची को भी सदस्य बनाया जाएगा। कोर्ट ने चुनाव याचिका को भी छह महीने में फैसला करने के आदेश दिए।
मतदाताओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन
कोर्ट ने ग्राम प्रधान को फिलहाल राहत जरूर दी है लेकिन यह स्पष्ट किया कि शपथ-पत्र में आपराधिक इतिहास की जानकारी न दिया जाना मतदाताओं के मौलिक अधिकार का हनन है। मतदाताओं को प्रत्याशियों के संबंध में जानकारी पाने का अधिकार है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह न सिर्फ मतदाताओं के मौलिक अधिकार का हनन है बल्कि संविधान के अनुछेद- 51 (ए) में वर्णित मूल दायित्वों का भी उल्लंघन है। भले ही जानकारी बिना किसी दुर्भावना के न दी गई हो। कोर्ट ने कहा कि लिहाजा इस आधार पर चयनित प्रत्याशी अयोग्य ठहराया जा सकता है।
अगली स्लाइड मं पढ़िए प्रयोगशाला सहायक की परीक्षा में कथित धांधली का मामले में प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य कोर्ट में हाजिर
एमसीएस कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराए जाने की दी जानकारी
लखनऊ: हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में प्रमुख सचिव चिकित्सा और स्वास्थ्य अरुण कुमार सिन्हा मंगलवार को कोर्ट के समक्ष हाजिर हुए। उन्होंने प्रयोगशाला सहायक की परीक्षा में ओएमआर शीट्स के गायब होने के मामले पर जवाब देते हुए कोर्ट को बताया कि इस संबंध में जिम्मेदार कंपनी मेसर्स मैनेजमेंट कंट्रोल सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करा दी है। जस्टिस शबीहुल हसनैन और जस्टिस आरएन मिश्रा (द्वितीय) की बेंच ने इस कार्रवाई को नाकाफी बताते हुए अग्रिम सुनवाई के लिए 16 दिसंबर की तारीख नियत की है।
क्या है मामला ?
बता दें कि 16 मई को मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि प्रयोगशाला सहायक पद के लिए हुई परीक्षा में अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट्स मिल नहीं पा रही है और न ही किसी अधिकारी को इसकी जानकारी है।
क्या है अपीलार्थियों की दलील ?
अपीलार्थियों की ओर से दलील दी गई कि मात्र उन 3,628 अभ्यर्थियों के ओएमआर शीट्स नहीं मिल पा रही है जो लिखित परीक्षा में सफल हुए थे। जबकि अन्य ओएमआर शीट्स उपलब्ध हैं।