हुनरमंद और ऊंची डिग्री वाले कर रहे मनरेगा में काम

रोजी रोटी व परिवार का पेट पालने के लिए बाहर कमाने गये मजदूरों को कोरोना महामारी ने कमाने खाने भी नहीं दिया।

Update:2020-06-12 15:39 IST
हुनरमंद और ऊंची डिग्री वाले कर रहे मनरेगा में काम

सुशील कुमार

मेरठ: रोजी रोटी व परिवार का पेट पालने के लिए बाहर कमाने गये मजदूरों को कोरोना महामारी ने कमाने खाने भी नहीं दिया। मजबूर हो वह फिर गांव लौट रहे हैं। अकुशल मजदूर हों या हुनरमंद सबको अब मनरेगा ही एक सहारा दिख रहा है। हालत यह है कि दिल्ली, मुंबई और वेस्ट यूपी के शहरों में अपनी कारीगरी का जलवा दिखाने वाले हुनरमंद अब गाँव में फावड़ा और गैंती पकड़कर दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। यहां तक की बीए,एमए करने वाले छात्र मनरेगा से जुड़कर घर चला रहे हैं।

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मेरठ में बने 47 हजार जॉब कार्ड

राजधानी दिल्ली से सटे मेरठ की बात करें तो चार जून तक यहाँ 47,724 जॉब कार्ड बन चुके हैं। इनमें से 8616 श्रमिकों को रोजगार मिला है। जनपद के 12 ब्लॉकों में 51,769 परिवार तथा उनके 61,932 सदस्य मनरेगा मजदूर के रूप में पंजीकृत हैं।

मनरेगा के तहत जिले में तालाब की खुदाई एवं सिल्ट सफाई, गांवों में पौधारोपण के लिए गड्ढों की खुदाई, नालों की सफाई, कच्चे रास्तों का निर्माण , नालों एवं नालियों की सिल्ट सफाई की जा रही है। परियोजना निदेशक भानू प्रताप सिंह कहते हैं कि मनरेगा के तहत 201 रुपये प्रति-दिन मजदूरी प्रदान की जाती है। अब तक 57 लाख रुपये से अधिक का भुगतान श्रमिकों को हो चुका है। भानू प्रताप सिंह का यह दावा भी है कि जिले में श्रमिकों का कोई भुगतान लंबित नहीं है। शायद यही वजह है कि मजदूर तो मजदूर, हाथों का हुनर रखने वाले युवक और बीए,एमए करने वाले छात्र भी मनरेगा की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।

पहले तो इन लोगों ने तसला उठाने, फावड़ा व गैंती चलाने में संकोच और हिचक महसूस की लेकिन समय के फेर ने इन्हें यह काम करना भी सिखा दिया। इनमें से एक युवक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह बीसीए कर रहा है। पढ़ाई के साथ वह मार्केटिंग का काम भी करता था लेकिन लॉकडाउन के कारण सब कुछ बंद हो गया। फिलहाल मुझे और मेरे परिवार को पैसों की हुत जरूरत थी सो सोचा कि क्यों न मनरेगा में जुड़कर कुछ कमा लूं। मुझे यह जानकारी भी मिली थी कि यहां मजदूरी का भुगतान सौ फीसदी और जल्दी होता है। इस युवक की मानिन्द ऐसे बहुत से उच्च शिक्षित युवक मनरेगा के तहत मजदूरी करते मिल जाएंगे।

हुनरमंद भी चला रहे गैंती

कारीगरी का जलवा दिखाने वाले हुनरमंद प्रवासी श्रमिक भी मनरेगा के तहत मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। गांव सिवालखास निवासी एक कारीगर का कहना है कि वह पंजाब के लुधियाना शहर में एक कारखाने में काम करता था। लेकिन कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण उसे अपना गांव वापस आना पड़ा। उन्होंने बताया कि मनरेगा से जुड़कर वह अपना परिवार चला रहा है।

अपने गांव लौटे प्रवासी मजदूरों का कहना है कि अब हम लोग दूर-दराज के बड़े शहरों में नहीं, अपने गांव में ही थोड़ा कमाएंगे, लेकिन यहीं रहेंगे। उन्होंने कहा कि आज हम लोग मनरेगा के तहत अपने गांव में मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं, हालांकि तालाबंदी के दौरान सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए काम करना कठिन हो रहा है, लेकिन भूखों मरने से अच्छा है काम कर अपने परिवार कि जिंदा रखा जाए।

मनरेगा बना वरदान

उत्तर प्रदेश के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री व श्रम कल्याण परिषद के अध्यक्ष पंडित सुनील भराला कहते हैं कि संकट की इस घड़ी में मनरेगा प्रवासी श्रमिकों के लिए वरदान से कम नहीं है। इसके जरिये उन्हें उस समय रोजगार की गारंटी मिली है जब उन्हें वाकई में इसकी बहुत जरूरत है। सुनील भराला कहते हैं कि सरकार का संकल्प यूपी आये सभी मजदूरों को हर हाल में काम देना है। सरकार ने मनरेगा श्रमिकों के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। जिसमें पूरे उत्तर प्रदेश में लाखों जरूरतमंद श्रमिकों को लाभ मिलेगा। पूरे भारत में अब तक 2 करोड़ 33 लाख श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार मिला है।

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मनरेगा पर एक नजर

  1. जिले में कुल ग्राम पंचायत - 479
  2. जिन ग्राम पंचायतों में मनरेगा कार्य चल रहा - 418
  3. रोजगार पाने वाले श्रमिक - 8616
  4. रोजगार में लगे प्रवासी -106

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