CHILD LABOUR: न छीनों इन मासूमों का बचपन, लौटाओ हंसी, रोको बाल श्रम

Update: 2016-06-12 09:12 GMT

[nextpage title="NEXT" ]

लखनऊ: मां मुझे पढ़ना है.. पढ़कर मैं एक टीचर बनना चाहता हूं.. पापा आप मुझसे काम क्यों करवाते हैं? मैं होटल पर काम करके जो पैसे कमाता हूं, वह मैं अपनी फीस के लिए इकट्ठा करता हूं पर पापा आप मुझसे मेरे कमाए पैसे छीनकर दारु में उड़ा देते हैं? क्यों पापा क्यों? आपको पता है मां... मैं टीचर क्यों बनना चाहता हूं क्योंकि मैं अपने भाई बहनों को अपनी तरह छोटू नहीं बनने देना चाहता...मां मुझे पढना है...तभी छोटू को एहसास हुआ कि किसीने उसे जोर से लात मारी है। जल्दी से छोटू ने आंखें मली तो देखा कि ढाबे का मालिक उसके सामने खड़ा है और ढेर सारे बर्तन धुलने का हुक्म दे रहा है। छोटू ने अपने सपने को याद किया और एक बार फिर भीगी पलकें लेकर बर्तनों की धुलाई में जुट गया।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

पढ़ने में भले ही आपको ये एक स्टोरी लग रही हो, लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि ये हमारे देश तो क्या, पूरी दुनिया में गरीब बच्चों की जिंदगी का हर दिन का किस्सा है। हम भी अक्सर जब होटल पर चाय पीने जाते हैं, तो वहां पर खुद को किसी तानाशाह से कम नहीं समझते हैं। चाय मिलने पर जरा सी देरी होने पर हम छोटू पर चिल्लाना शुरु कर देते हैं। पर उस मासूम की आंखों में एक बार नहीं देखते। जो हमसे हर वक़्त मादा की गुहार लगाया करती हैं।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

आज पूरे विश्व में बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए विश्व बालश्रम निषेध दिवस मनाया जा रहा है। पर असल मायनों ये दिन मनाना हमारे लिए तब सार्थक होगा, जिस दिन हमारी वजह से किसी छोटू के चेहरे पर स्माइल आएगी। जब हम किसी छुटकी को बड़ी मेम साहब के गुस्से से बचाकर स्कूल भेजेंगे।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार भारत में भी 14 साल तक की उम्र के बच्चों से काम करवाना गलत है। ऐसा करने वाले को सजा का भी प्रावधान है पर पैसे की मज़बूरी के चलते हमारे शहर में ही चंद क़दमों की दूरी पर जगह जगह आपको छोटू काम करते हुए मिल जाएंगे। कहते हैं कि इंडिया में बच्चों को भगवान का रूप मन जाता है पर उन्हें पूजने वाले न जाने कहां गुम हो गए हैं। जहां भी नजर उठेगी, वहां गरीब बच्चों का शोषण होता नजर आएगा।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

फिर वह चाहे चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर पान मसाला बेंचते हुए कोई हो ... या फिर हजरतगंज में दौड़कर किसी वी आई पी गाड़ी का शीशा पोंछते हुए कोई पूजा हो या फिर किसी अस्पताल के बाहर जूता पोंछते हुए रमेश हो। हमारे देश में धड़ल्ले से इन मासूमों से काम लिया जा रहा है और नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और हां सबसे ज्यादा ख़ास बात तो यह है कि इन गरीब बच्चों की मासूमियत छीनने वाले न केवल अनपढ़ लोग हैं बल्कि पढ़े लिखे तो कुछ ज्यादा ही शुमार हैं।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। इन बालश्रमिकों में से 19 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं, ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में तथा कृषि क्षेत्र से लगभग 80% जुड़े हुए हैं। शेष अन्य क्षेत्रों में, बच्चों के अभिभावक ही बहुत थोड़े पैसों में उनको ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो अपनी व्यवस्था के अनुसार उनको होटलों, कोठियों तथा अन्य कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। वहां बच्चों को थोड़ा सा खाना देकर मनमाना काम कराते हैं।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

18 घंटे या उससे भी अधिक काम करना, आधे पेट भोजन और मनमाफिक काम न होने पर पिटाई यही उनका जीवन बन जाता है। केवल घर का काम नहीं इन बालश्रमिकों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना, खेतों में काम करना (बैल की तरह), कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, दवा उद्योग में तथा होटलों व ढाबों में झूठे बर्तन धोना आदि सभी काम मालिक की मर्जी के अनुसार करने होते हैं। इन सभी कामों के अलावा कूड़ा बीनना, पोलीथीन की गंदी थैलियां बीनना, आदि अनेक काम हैं जहां ये बच्चे अपने बचपन को नहीं जीते, नरक भुगतते हैं, परिवार का पेट पालते हैं। इनके बचपन के लिए न मां की लोरियां हैं न पिता का दुलार, न खिलौने हैं, न स्कूल न बालदिवस।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

इनकी दुनिया सीमित है तो बस काम काम और काम, धीरे धीरे बीड़ी के अधजले टुकड़े उठाकर धुआं उडाना, यौन शोषण को खेल मानना इनकी नियति बन जाती है। वेल्डिंग के कारण आँखें अल्पायु में गवां बैठना, फैक्ट्री के धुंए में निकलते खतरनाक धुंए को सांस के साथ शरीर का अंग बना लेना, जहरीली गैसों से घातक रोगों फेफड़ों का कैंसर, टीबी आदि का शिकार बनना, यौन शोषण के कारण एड्स या अन्य यौन रोगों के कारण सारा जीवन होम कर देना भरपेट भोजन व नींद न मिलने से अन्य शारीरिक दुर्बलताएं, कहां तक इनकी समस्याओं को गिना जाए ये तो अनगिनत हैं। ऐसा नहीं कि केवल लड़के ही बाल श्रमिक हैं लड़कियां भी इन कार्यों में लगी है।

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

पिछले कुछ सालों से भारत सरकार एवं राज्य सरकार ने बाल श्रम को रोकने की पहल की है। इस दिशा में इनका ये कदम सराहनीय है। उनके द्वारा बच्चों के उत्थान के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया गया हैं, जिससे बच्चों के जीवन व शिक्षा पर सकारात्मक प्रभाव दिखे। शिक्षा का अधिकार भी इस दिशा में एक सराहनीय कार्य है। इसके बावजूद बाल-श्रम की समस्या अभी भी एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है। इसमें कोई शक नहीं कि बाल-श्रम की समस्या किसी भी देश व समाज के लिए घातक है। बाल-श्रम पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए। बाल-श्रम की समस्या जड़ से ख़त्म होनी चाहिए।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ी हमारे देश में गरीब बच्चों की दयनीय दशा

[/nextpage]

[nextpage title="NEXT" ]

पर सच बात तो यह है कि केवल एक दिन विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाने से देश में छोटू और छुटकी जैसे बच्‍चों की संख्‍या कम नहीं हो जाएगी। जरूरत है सबको एक साथ इसके खिलाफ आवाज उठाने की ताकि फिर कोई बच्‍चा आपकी ओर जूता साफ करने के लिए न दौड़े, फिर कोई बच्ची आपके जूठे बर्तन न धुले..

[/nextpage]

 

Tags:    

Similar News