Badrinath Temple: पुराणों और महाभारत में है बद्रीनाथ का जिक्र, भगवान विष्णु हैं यहां विराजमान

Badrinath Temple: हिंदुओं के लिए बद्रीनाथ पवित्रतम तीर्थस्थलों में से एक है। यही वजह है कि ये देश दुनिया के व्यस्ततम मंदिरों में शुमार है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2022-10-21 07:12 GMT

बद्रीनाथ मन्दिर: Photo- Social Media

Badrinath Temple : हिंदुओं के लिए बद्रीनाथ (Badrinath) पवित्रतम तीर्थस्थलों में से एक है। यही वजह है कि ये देश दुनिया के व्यस्ततम मंदिरों में शुमार है। बद्रीनाथ मन्दिर (Badrinath Temple) का उल्लेख विष्णु पुराण (Vishnu Purana), तथा  स्कन्द पुराण समेत कई प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। विष्णु को समर्पित यह मंदिर सनातन धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र चार धामों, में से एक यह एक है जिसका निर्माण 7वीं-9वीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बद्रीनाथ तथा इसके आस-पास का पूरा क्षेत्र किसी समय शिव भूमि (केदारखण्ड) के रूप में अवस्थित था। जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह बारह धाराओं में बँट गई। इस स्थान से होकर बहने वाली धारा अलकनन्दा के नाम से विख्यात हुई। मान्यतानुसार भगवान विष्णु जब अपने ध्यानयोग हेतु उचित स्थान खोज रहे थे, तब उन्हें अलकनन्दा के समीप यह स्थान बहुत भा गया।

नीलकण्ठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने बाल रूप में अवतार लिया, और क्रंदन करने लगे। उनका रूदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा, और उन्होंने बालक के समीप उपस्थित होकर उसे मनाने का प्रयास किया, और बालक ने उनसे ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। यही पवित्र स्थान वर्तमान में बद्रीविशाल के नाम से सर्वविदित है।

धर्म के दो पुत्र हुए- नर और नारायण

विष्णु पुराण में इस क्षेत्र से संबंधित एक अन्य कथा है, जिसके अनुसार धर्म के दो पुत्र हुए- नर और नारायण जिन्होंने धर्म के विस्तार हेतु कई वर्षों तक इस स्थान पर तपस्या की थी। अपना आश्रम स्थापित करने के लिए एक आदर्श स्थान की तलाश में वे वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों में घूमे। अंततः उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे एक गर्म और एक ठंडा पानी का चश्मा मिला, जिसके पास के क्षेत्र को उन्होंने बद्री विशाल नाम दिया।

- यह भी माना जाता है कि व्यास जी ने महाभारत इसी जगह पर लिखी थी, और नर-नारायण ने ही अगले जन्म में क्रमशः अर्जुन तथा कृष्ण के रूप में जन्म लिया था।

- महाभारतकालीन एक अन्य मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर पाण्डवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी कारण से बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का पिंडदान करते हैं।

- वराहपुराण के अनुसार मनुष्य कहीं से भी बद्री आश्रम का स्मरण करता रहे तो वह पुनरावृत्तिवर्जित वैष्णव धाम को प्राप्त होता है, यथा : "श्री बदर्याश्रमं पुण्यं यत्र यत्र स्थित: स्मरेत। स याति वैष्णवम स्थानं पुनरावृत्ति वर्जित:॥"

- सातवीं से नौवीं शताब्दी के बीच आलवार सन्तों द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध ग्रन्थ में भी इस मन्दिर की महिमा का वर्णन है।

- सन्त पेरियालवार द्वारा लिखे 7 स्तोत्र, तथा तिरुमंगई आलवार द्वारा लिखे 13 स्तोत्र इसी मन्दिर को समर्पित हैं। यह मन्दिर भगवन विष्णु को समर्पित 108 दिव्यदेशम् में से भी एक है।

इतिहास में वर्णन

बद्रीनाथ मन्दिर की उत्पत्ति के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार, यह मन्दिर आठवीं शताब्दी तक एक बौद्ध मठ था, जिसे आदि शंकराचार्य ने एक हिन्दू मन्दिर में परिवर्तित कर दिया। इस तर्क के पीछे मन्दिर की वास्तुकला एक प्रमुख कारण है, जो किसी बौद्ध विहार के सामान है। इसका चमकीला तथा चित्रित मुख-भाग भी किसी बौद्ध मन्दिर जैसा ही प्रतीत होता है।

अन्य स्रोत बताते हैं कि इस मन्दिर को नौवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा एक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया गया था। एक अन्य मान्यता यह भी है कि शंकराचार्य छः वर्षों तक (814 से 820 तक) इसी स्थान पर रहे थे। इस स्थान में अपने निवास के दौरान वह छह महीने के लिए बद्रीनाथ में, और फिर शेष वर्ष केदारनाथ में रहते थे।

ये भी कहा जाता है कि बद्रीनाथ की मूर्ति देवताओं ने स्थापित की थी। जब बौद्धों का पराभव हुआ, तो उन्होंने इसे अलकनन्दा में फेंक दिया। शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी में से बद्रीनाथ की इस मूर्ति की खोज की, और इसे तप्त कुंड नामक गर्म चश्मे के पास स्थित एक गुफा में स्थापित किया। कालांतर में मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।

मंदिर के भीतर

बद्रीनाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान बद्रीनारायण की 1 मीटर ऊंची शालीग्राम  से निर्मित मूर्ति है जिसे बद्री वृक्ष के नीचे सोने की चंदवा में रखा गया है। बद्रीनारायण की इस मूर्ति को विष्णु के आठ स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। मूर्ति में भगवान के चार हाथ हैं - दो हाथ ऊपर उठे हुए हैं: एक में शंख, और दूसरे में चक्र है, जबकि अन्य दो हाथ योगमुद्रा में भगवान की गोद में उपस्थित हैं। मूर्ति के ललाट पर हीरा भी जड़ा हुआ है।

गर्भगृह में धन के देवता कुबेर, देवर्षि  नारद, उद्धव, नर और नारायण की मूर्तियां भी हैं। मन्दिर के चारों ओर पंद्रह और मूर्तियों की भी पूजा की जाती हैं। इनमें लक्ष्मी, गरुड़ और नवदुर्गा की मूर्तियां शामिल हैं। इनके अतिरिक्त मन्दिर परिसर में गर्भगृह के बाहर लक्ष्मी-नृसिंह और संत आदि शंकराचार्य, नर और नारायण, वेदान्त देशिक,  रामानुजाचार्य  और पांडुकेश्वर क्षेत्र के एक स्थानीय लोकदेवता घण्टाकर्ण की मूर्तियां भी हैं। बद्रीनाथ मन्दिर में स्थित सभी मूर्तियां शालीग्राम से बनी हैं।

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